कैसे संवरेगा बच्चों का भविष्य? घर की माली हालत सुधारने के लिए जलावन की लकड़ी बेचने को हैं मजबूर
पूरा दिन मेहनत करने के बाद शाम तक दो सौ से तीन सौ रुपये तक मिलते हैं. छात्र-छात्राओं का कहना है कि जब हमें काम से मौका मिलता है, तब स्कूल चले जाते हैं. लकड़ी लाने के दौरान जंगली जानवरों के हमले का भी डर रहता है.
देश के बच्चों के बीच शिक्षा की ललक जगाने के लिए एक ओर जहां सरकार लाखों रुपये खर्च कर कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चलायी जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर स्कूल जाने की उम्र में लोहरदगा जिले के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के बच्चे घर की माली स्थिति को देख कर कम आयु में ही उनके कंधों पर कमाने की बोझ पड़ गयी है. ऐसी स्थिति में लोहरदगा जिले के किस्को व पेशरार प्रखंड के दर्जनों गांवों के बच्चे जंगलों से लकड़ी काट कर शहर और ग्रामीण हाट -बाजारों में बेचने को मजबूर हैं. घरों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण पढ़ाई -लिखाई की उम्र में यह बच्चे घरों की अतिरिक्त जिम्मेवारी उठाने के लिए लाचार हैं. उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र बगड़ू पंचायत के कोरगो, चापी गांव एवं हिसरी पंचायत, रंगड़ा, खंभन गांव के अलावा पेशरार प्रखंड के कई गांवों के बच्चे अपनी विवशता के कारण जंगलों से लकड़ी लाकर उसे बाजार में बेचते हैं. सीजन में आम, जामुन व महुवा तोड़ कर बाजार में बेचते हैं. इन छात्रों पर प्रखंड, जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नजर कभी भी नहीं पड़ती है. जिस समय छात्रों को स्कूल में होना चाहिए, उस समय यह छात्र-छात्राएं जंगलों से जलावन की लकड़ी काट कर बाजार व होटल में बेचने को मजबूर हैं. इधर, इस संबंध में छात्र-छात्राओं ने बताया कि लकड़ी काटने के लिए हमें जंगलों में जाना पड़ता है. कई घंटे जंगल में बिताने के बाद लकड़ी जमा करते हैं और उसे बाजार में ले जाकर बेचते हैं. पूरा दिन मेहनत करने के बाद शाम तक दो सौ से तीन सौ रुपये तक मिलते हैं. छात्र-छात्राओं का कहना है कि जब हमें काम से मौका मिलता है, तब स्कूल चले जाते हैं. लकड़ी लाने के दौरान जंगली जानवरों के हमले का भी डर रहता है.
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गांव के कई बच्चे इस काम में लगे हैं
प्रतिदिन यह बच्चे गांव से 25 से 30 किलोमीटर पैदल पहाड़ी रास्तों से सफर कर लकड़ी बेचने जाते हैं. गांव के कई बच्चे जंगल से लकड़ी काट कर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. सरकार द्वारा बच्चों के हित के लिए चलायी जा रही योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है.