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कोलकाता में कैसे खिलेगा कमल? भाजपा में हावी है गुटबाजी, बंसल की बढ़ी मुश्किलें

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव (West Bengal Election 2021) जैसे-जैसे करीब आ रहा है, पार्टियों की गुटबाजी सतह पर आती जा रही है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (All India Trinamool Congress) के नेता पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो रहे हैं, तो भाजपा में भी असंतोष और गुटबाजी चरम पर है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 8, 2021 9:50 PM

कोलकाता (नवीन कुमार राय) : पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, पार्टियों की गुटबाजी सतह पर आती जा रही है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं, तो भाजपा में भी असंतोष और गुटबाजी चरम पर है.

बंगाल में जब कहीं भाजपा का नाम-ओ-निशान नहीं हुआ करता था, उस वक्त उत्तर कोलकाता में पार्टी को अच्छा-खासा वोट मिलता था. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में मोदी की लहर चल रही थी, अमित शाह खुद उत्तर कोलकाता में प्रचार करने पहुंचे, लेकिन भाजपा उम्मीदवार को जिता नहीं पाये.

सूत्रों का कहना है कि 18 सीटों पर जीत का ऐसा खुमार पार्टी के बड़े नेताओं पर छाया कि कोलकाता में मिली हार की समीक्षा तक नहीं हुई. सिर्फ कुछ औपचारिक बैठकें हुईं. संगठन में छोटा-मोटा फेरबदल हुआ और कुछ भी नहीं. केंद्रीय नेतृत्व ने स्थिति को भांपते हुए अमित शाह और जेपी नड्डा के सबसे भरोसेमंद और आजमाये हुए सिपाही सुनील बंसल को स्थिति को संभालने के लिए भेजा है.

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उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल को कोलकाता जोन की जिम्मेदारी दी गयी है. तृणमूल कांग्रेस के हेवीवेट नेता शोभन देव चटर्जी को अपने पाले में करने के बावजूद भाजपा की स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा. दक्षिण कोलकाता में ही शोभन और उनकी महिला मित्र बैसाखी का जमकर विरोध हो रहा है.इन दोनों की कार्यशैली और व्यवहार से निचले स्तर के कर्मियों में नाराजगी है.

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जिला भाजपा नेताओं और पुराने कार्यकर्ताओं की मानें, तो कुछ लोग संगठन को ताक पर रखकर एक केंद्रीय नेता की छत्रछाया में मनमानी कर रहे हैं. भाजपा कार्यकर्ता कह रहे हैं कि ममता बनर्जी की नीतियों से परेशान होकर लोग भाजपा के साथ आ रहे हैं. यही वजह है कि तृणमूल के कई नेता भाजपा का दामन थाम रहे हैं.

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे बयान लगातार देखे जा रहे हैं. एक तरफ उत्तर कोलकाता के जिलाध्यक्ष शिवाजी सिंघोराय हैं, तो दूसरी ओर जिला महासचिव शरद सिंह. विवाद नये जिलाध्यक्ष की नियुक्ति और उसके बाद कमेटी गठन से ही शुरू हो गया था.

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लॉबी तैयार कर रहे हैं भाजपा नेता

महामंत्री शरद सिंह पर आरोप है कि वह पार्टी में अपनी एक अलग लॉबी तैयार कर रहे हैं. हिंदी भाषी बहुल ये जिला शुरू से ही भाजपा का मजबूत किला रहा है. नगर निगम में भी कमल इसी जिले में खिलता रहा है.

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वर्ष 2016 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन, कमजोर बूथ गठन, सत्तारूढ़ दल के नेताओं से अंदर खाने तालमेल, प्रोमोटिंग और गुटबाजी को बढ़ावा देने के आरोप के कारण पार्टी ने सुधार के लिए कांग्रेस से आये शिवाजी सिंघोराय को इस जिले की बागडोर सौंपी थी. अब हालत और बिगड़ रही है.

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कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा में सक्रिय नेताओं और स्थानीय पार्षदों को तवज्जो नहीं मिल रही. प्रदेश के एक कद्दावर महामंत्री और महिला मोर्चा अध्यक्ष को कारण बताओ नोटिस के बाद प्रदेश स्तरीय नेता अपने जिलों की सांगठनिक स्थिति पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

तृणमूल के दो विधायक पाला बदलने की तैयारी में

पुराने कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जिला सचिव मंडली में अनुभवहीन, चाटुकारों और तोलाबाजों का बोलबाला है. बूथ का काम ठप है. बताया जा रहा है कि सत्तारूढ़ दल के उत्तर कोलकाता के दो विवादित विधायक पाला बदलने की तैयारी में हैं. कहा जा रहा है कि अगर ये नेता भाजपा में आ गये, तो पार्टी के हाथ से वो तमाम मुद्दे निकल जायेंगे, जिसको लेकर तृणमूल और ममता बनर्जी सरकार को घेरा जा सकता है.

उत्तर कोलकाता में कमल खिलाने की चुनौती

ऐसे में बंसल के सामने कड़ी चुनौती यही है कि वह कोलकाता में संगठन को संवारते हुए कमल कैसे खिलायेंगे. उल्लेखनीय है कि अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है. भाजपा ने 294 सदस्यीय विधानसभा में 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. अगर गुटबाजी इसी तरह जारी रही, तो पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.

Posted By : Mithilesh Jha

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