Hul Diwas 2022: संताल हूल के महानायक वीर शहीद सिदो कान्हू मुर्मू के छठे वंशज मंडल मुर्मू ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की पढ़ाई की है, लेकिन नौकरी के अभाव में वे खेतीबाड़ी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने पर मजबूर हैं. झारखंड के साहिबगंज जिले के बरहेट स्थित भोगनाडीह गांव में हर हूल दिवस पर शहीद सिदो कान्हू मुर्मू को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. शहीद परिवार को कई आश्वासन दिए जाते हैं, लेकिन परिवार आज भी खेतीबाड़ी करने पर विवश है. क्या इस बार सीएम हेमंत सोरेन इस हूल दिवस पर मंडल मुर्मू की मांग पूरी करेंगे.
नौकरी की जगह मिला सिर्फ आश्वासन
हूल दिवस (30 जून) पर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का साहिबगंज के भोगनाडीह में कार्यक्रम प्रस्तावित है. ऐसे में शहीद परिवार के मंडल मुर्मू को सीएम से काफी उम्मीदें हैं कि शायद इस बार उनकी मांग पूरी हो जाए. शहीद परिवार के छठे वंशज मंडल मुर्मू बताते हैं कि परिवार में वे इकलौते सदस्य हैं, जिन्होंने सत्र 2013-16 में सिल्ली पॉलिटेक्निक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की पढ़ाई की है. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से नौकरी देने की मांग की थी. हर साल हूल दिवस पर सीएम से मिलकर ज्ञापन सौंपकर मंडल मुर्मू नौकरी देने की मांग करते हैं, लेकिन अब तक सिर्फ उन्हें आश्वासन ही मिला है.
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हेमंत सोरेन सरकार में भी सिर्फ आश्वासन
शहीद सिदो कान्हू मुर्मू के छठे वंशज मंडल मुर्मू ने बताया कि हेमंत सोरेन सरकार बनने के बाद 4-5 बार मिलकर नौकरी की मांग की है, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला है. इस वर्ष भी हूल दिवस पर सीएम हेमंत सोरेन से मिलकर नौकरी देने की मांग करेंगे.
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खेतीबाड़ी कर करते हैं गुजारा
मंडल मुर्मू कहते हैं कि उनकी दादी बिटिया हेम्ब्रम 70 वर्ष की हैं. शहीद के छठे वंशज में चुंडा मुर्मू, लीला मुर्मू, भादो मुर्मू, बेटाशन मुर्मू सहित अन्य हैं. हूल के महानायक सिदो कान्हू मुर्मू के वंशज में अभी कुल 87 सदस्य हैं. इनमें बच्चे, वयस्क व बुजुर्ग शामिल हैं. परिवार के पास करीब 30 बीघा जमीन है. इसमें खेतीबाड़ी करके ज्यादातर परिवार के सदस्य अपना भरण-पोषण करते हैं.
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इस हूल दिवस पर ये भी है मांग
मंडल मुर्मू कहते हैं कि इस बार हूल दिवस पर वे शहीद के गांव भोगनाडीह में बड़ा अस्पताल, बोर्डिंग स्कूल एवं सिदो कान्हू मुर्मू म्यूजियम बनाने की मांग करेंगे. झारखंड में सिदो कान्हू मुर्मू की प्रतिमा में चेहरे का आकार अलग-अलग है. वे इसमें एकरूपता की मांग करेंगे. मंडल बताते हैं कि शहीद के परिजनों को शहीद पेंशन का लाभ भी नहीं मिलता है. बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जाए.
रिपोर्ट : गुरुस्वरूप मिश्रा, रांची