भोगनाडीह (साहिबगंज), विकास जायसवाल : हूल विद्रोह (Hul Diwas 2023) के नायक सिदो-कान्हू के खानदान में 80 लोग हैं. इनमें से 6 सरकारी नौकरी में हैं. झारखंड की अब तक की सरकारों ने सिदो-कान्हू के वंशजों को कई सुविधाएं दी हैं. सरकारी आवास बनाकर भी दिया है. सरकारी नौकरी भी दी है. फिर भी उनकी कुछ मांगें हैं. सिदो-कान्हू के वंशजों में इस वक्त सबसे बुजुर्ग एक महिला है, जिसका नाम बिटिया हेम्ब्रम है. बिटिया हेम्ब्रम बताती हैं कि सिदो-कान्हू उनके दादा ससुर थे.
सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों-महाजनों के खिलाफ किया था विद्रोह
बिटिया हेम्ब्रम कहती हैं कि सिदो-कान्हू के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानतीं. उनके पति होपना मुर्मू ने उन्हें बताया था कि उनके दादा सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों एवं महाजनों के खिलाफ आंदोलन किया था. दोनों भाईयों ने मिलकर जंग लड़ी और उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज एकजुट हुआ. सबने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया. उनके आंदोलन में उनके भाईयों चांद-भैरव और बहनों फूलो-झानो ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
बंगाल, ओडिशा, बिहार में भी होती है सिदो-कान्हू की पूजा
सिदो-कान्हू और उनके भाईयों एवं बहनों की वीरता की वजह से ही आज झारखंड ही नहीं, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार के लोग भी सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो की पूजा करते हैं. 11 अप्रैल और 30 जून को पंचकठिया (क्रांति स्थल) पर जाकर लोग उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं. इस बार भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भोगनाडीह आ रहे हैं.
शहीद स्थल पर आज भी होती है पूजा-अर्चना
शहीद स्थल पर आज भी सिदो-कान्हू के वंशज उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. वंशजों का कहना है कि जब वे वहां पूजा-अर्चना करने जाते हैं, तो उनमें एक नयी ऊर्जा का संचार होता है. बिटिया हेम्ब्रम पहले लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाती थी. अब वह एलपीजी सिलेंडर से खाना पकाती हैं.
होपना मुर्मू की पत्नी हैं बिटिया हेम्ब्रम
सिदो-कान्हू के वंशजों में सबसे बुजुर्ग 90 साल की बिटिया हेम्ब्रम, सिदो-कान्हू के वंशज होपना मुर्मू की पत्नी हैं. होपना मुर्मू की मौत हो चुकी है. उनके तीन भाई छोटो मुर्मू, मंडल मुर्मू और बाबूलाल मुर्मू भी अब इस दुनिया में नहीं हैं.
सिदो-कान्हू के 6 वंशज सरकारी नौकरी में
सिदो-कान्हू के 6 वंशज सरकारी नौकरी करते हैं. अर्चना सोरेंग बोरियो में कर्मचारी हैं, साहेबराम मुर्मू बरहरवा में राजस्व कर्मचारी हैं, नैना हेम्ब्रम पतना में लिपिक के पद पर कार्यरत हैं, एंजिली सोरेंग बरहरवा में लिपिक हैं, भादो मुर्मू साहिबगंज कॉलेज में चपरासी हैं, तो भागवत मुर्मू बरहेड के केजीबीयू में काम करते हैं.
सिदो-कान्हू के वंशजों की सरकार से ये हैं मांगें
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सिदो-कान्हू, चांद-भैरव हॉस्पिटल का निर्माण कराया जाये.
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सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो की प्रतिमा एक साथ स्थापित की जाये.
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उनके परिवार के सदस्यों को शहीद परिवार पेंशन मिले.
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सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो की याद में म्यूजियम और संग्रहालय बनाया जाये.
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सिदो-कान्हू पार्क में लाइट एंड साउंड सिस्टम के जरिये वीर शहीद सिदो-कान्हू की जीवनी प्रदर्शित की जाये.
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एनसीईआरटी की किताबों में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो की जीवनी को शामिल किया जाये.
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सिदो-कान्हू के वंशजों को हेल्थ कार्ड दिया जाये.
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सिदो-कान्हू के वंशजों को शहीद पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलता.
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सिदो-कान्हू के जिन वंशजों के पास नौकरी नहीं है, उन्हें सरकारी नौकरी मिले, क्योंकि वे आज भी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं.
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सिंचाई के लिए उन्हें डीप बोरिंग उपलब्ध करवाया जाये.
सरकारों से सिदो-कान्हू के वंशजों को क्या-क्या मिला?
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सिदो-कान्हू के वंशजों को वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के जरिये एक ट्रैक्टर दिया था.
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वर्ष 2016 में तब के मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार ने सिदो-कान्हू के वंशजों को पक्का मकान बनाकर दिया. रघुवर दास की सरकार ने 11 आवास बनाकर दिये थे. प्रत्येक आवास का खर्च करीब 16 लाख रुपये था. इस तरह सिदो-कान्हू के वंशजों के आवास के निर्माण पर झारखंड सरकार ने 176 लाख रुपये खर्च किये.
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हेमंत सोरेन की सरकार ने सिदो-कान्हू के परिवार के 2 सदस्यों को नौकरी दी.
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ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी के नेता सुदेश महतो ने सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू की पढ़ाई में मदद की. मंडल मुर्मू ने सिंदरी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.
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वर्ष 2020 से सिदो-कान्हू के वंशजों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिला है.