सैलानी पक्षियों और प्राकृतिक सौंदर्य का उठाना चाहते हैं लुत्फ तो जरूर घूमें सुरहा ताल, जानें कैसे पहुंचे

Surha Tal: बलिया का नाम पौराणिक समय से ही है. यहां के संत दर्दर मुनि और भृगु मुनि का नाम बड़े तपस्वियों में लिया जाता है. इसी जिले में स्थित है एक प्राकृतिक झील ‘सुरहा ताल’. चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

By Shweta Pandey | October 4, 2023 1:46 PM
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Surha Tal: उत्तर प्रदेश और बिहार का सीमावर्ती जिला बलिया आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. ‘बागी बलिया’ के नाम से मशहूर यह जिला 1857 की क्रांति के महानायक मंगल पांडेय, स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडेय समेत कई क्रांतिवीरों की जन्मस्थली है. इतना ही नहीं, बलिया का नाम पौराणिक समय से ही है. यहां के संत दर्दर मुनि और भृगु मुनि का नाम बड़े तपस्वियों में लिया जाता है. इसी जिले में स्थित है एक प्राकृतिक झील ‘सुरहा ताल’. चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

सुरहा ताल की प्राकृतिक छटा और दूर-दूर से आने वाले देशी-विदेशी पक्षियों की कलरव सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है. सर्दियों के दिनों में यहां लाखों की संख्या में सैलानी पक्षी आते हैं, जिन्हें देखने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं.    

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दरअसल, सुरहा ताल गंगा और सरयू के दोआब में स्थित एक प्राकृतिक झील है, जो गंगा नदी द्वारा निर्मित है. यह उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे बलिया जनपद के मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा की ओर बसंतपुर नामक गांव में स्थित है. करीब 2549 वर्ग हेक्टेयर में फैला प्राकृतिक झील ‘सुरहा ताल’ अपने अंदर अपार संभावनाओं को समेटे हुए हैं.

सुरहा ताल की खासियत

सुरहा ताल की खासियत यह है कि यहां हर साल बड़ी मात्रा में सैलानी पक्षियों का जमावड़ा लगता है. शीत ऋतु के दस्तक होते ही लालसर और साइबेरियन पक्षियों का आगमन शुरू होता जाता है. इसके अलावा पिहुला, कर्मा, पटियारी, कसई, सारस, वोदरटीका, अंजना, जाघिल, गिरना आदि प्रवासी पक्षियों की जल क्रीड़ा देखने के लिए पर्यटक ताल के किनारे पहुंचते हैं. बरसात के दिनों में ताल में पानी भर जाने के बाद तो यहां का नजारा और  भी मनोरम और सुरम्य हो जाता है.

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प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर रोमांचित हो उठेगा आपक मन

सुरहा ताल पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है. जमाने से सुरहा ताल के नाम से मशहूर इस झील का नाम अब बदलकर ‘लोकनायक जयप्रकाश नारायण पक्षी अभ्यारण्य’ कर दिया गया है. इस अभ्यारण्य की देखरेख का जिम्मा अब काशी वन्य जीव प्रभाग वाराणसी को सौंप दिया गया है. जब कभी आप यहां पर जायेंगे, तो सुरहा ताल के विशाल जल क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में लोग अपनी-अपनी छोटी नावों से मछली पकड़ते और कमल पत्ता तोड़ते दिख जायेंगे. वहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर आपका मन रोमांचित हो उठेगा. मन करेगा बस इस मनोरम दृश्य को घंटों निहारते रहें. ताल के किनारे पर ही वहां के खूबसूरत नजारे को देखने के लिए वॉच टावर बनाया गया है. वहीं, उसके पास ही कंक्रीट का घाट बनाया गया, जहां आप बोटिंग का लुत्फ उठा सकते हैं.

सुरहा ताल पक्षी महोत्सव

सुरहा ताल बलिया के लिए इसलिए खास है, क्योंकि यह शहर के एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है. इस झील के एक छोर पर एक विशाल फव्वारा बना हुआ है. यह फव्वारा उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी है. अगर आप झील की गहराई में जायेंगे, तो आपको भारी मात्रा में शैवाल मिलेंगे. वहीं, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार अब हर साल सुरहा ताल पक्षी महोत्सव का आयोजन करती है. इसे देखने के लिए देशभर के विभिन्न जगहों से लोग पहुंचते हैं.  

सुरहा ताल घूमने कब जाना चाहिए

वैसे तो सुरहा ताल पूरे वर्ष खुला रहता है, लेकिन गर्मियों के दौरान इस जगह पर जाना उचित नहीं है, क्योंकि सूरज की चिलचिलाती गर्मी को सहन करना बहुत मुश्किल हो जाता है. बारिश के दौरान इस अभयारण्य में जाना थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए सुरहा ताल घूमने के लिए अक्तूबर से लेकर फरवरी तक का समय सबसे अच्छा है. इस दौरान यहां का मौसम काफी सुहावना हो जाता है और सर्दियों के दौरान आपको कई सैलानी पक्षी भी देखने को मिल सकते हैं. साथ ही आप उन्हें अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं.

कैसे पहुंचे सुरहा ताल

अगर आप सुरहा ताल देखना चाहते हैं, तो यह स्थान बलिया-सिकंदरपुर मुख्य मार्ग से होते  हुए बसंतपुर जाना होगा. बलिया शहर से इसकी कुल दूरी करीब 9 किलोमीटर है. अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं, तो बलिया स्टेशन पर आना होगा. यहां से ऑटो या ई-रिक्शा से आप आसानी से यहां आ सकते हैं. अगर हवाई मार्ग की बात करें, तो नजदीकी एयरपोर्ट वाराणसी है, जो यहां से करीब 150 किलोमीटर दूर है.

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