22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

UP News: वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को खोजेगा IIT कानपुर, वैज्ञानिक जीपीएस और जीआईएस तकनीक से बनाएंगे डिजिटल मैप

वक्फ बोर्ड की संपत्ति कानपुर समेत अन्य जिलों में भी हैं, जिन्हें सर्वे के साथ में तलाशना शुरू कर दिया गया है. इन जमीनों को डिजिटल मैप में सर्वे के साथ फीड किया जाएगा. पहले चरण में मेरठ, कानपुर, आगरा, प्रयागराज, अयोध्या, झांसी, मीरजापुर और चित्रकूट में डिजिटल मैप तैयार किया जाएगा.

Kanpur News: उत्तर प्रदेश में भी वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को खोजने के लिए अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IIT Kanpur) की मदद ली जाएगी. संस्थान के वैज्ञानिक पूरे प्रदेश में जीआईएस (ज्योग्राफिकल इंफार्मेशन सिस्टम) व जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) तकनीक की मदद से सर्वे कर एक डिजिटल मैप तैयार करेंगे.

इससे इन संपत्तियों पर भविष्य की कार्ययोजना तैयार हो सकेगी और उन्हें कब्जामुक्त रखा जा सकेगा. यह सर्वे उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ कमेटी के निर्देश पर चल रहा है. प्रदेश के कई जिलों में सर्वे का काम भी शुरू हो चुका है.

उत्तर प्रदेश में वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जा

उत्तर प्रदेश भर में हजारों संपत्तियां वक्फ की हैं. कुछ पर अवैध कब्जा है तो कुछ खाली पड़ी हैं. लेकिन, पर्याप्त जानकारी नहीं होने के कारण इन संपत्तियों का उपयोग समाज की मदद और अतिरिक्त आय के लिए नहीं हो पा रहा है.

इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड एक डिजिटल मैप तैयार करवा रहा है. इस मैप को बनाने की जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रोफेसर जावेद मलिक व उनकी टीम को सौंपी गई है. टीम डिजिटल मैप में मस्जिद, दुकान, घर और कृषि भूमि आदि को चिह्नित करेगी.

कानपुर समेत अन्य जिलों में शुरू हुआ सर्वे

बताते चलें कि वक्फ बोर्ड की संपत्ति कानपुर समेत अन्य जिलों में भी हैं, जिन्हें सर्वे के साथ में तलाशना शुरू कर दिया गया है. इन जमीनों को डिजिटल मैप में सर्वे के साथ फीड किया जाएगा. आईआईटी के प्रोफेसर जावेद मलिक के अनुसार पहले चरण में मेरठ, कानपुर, आगरा, प्रयागराज, अयोध्या, झांसी, मीरजापुर और चित्रकूट में मौजूद वक्फ की संपत्तियों को जीआईएस व जीपीएस तकनीक से तलाश कर डिजिटल मैप तैयार किया जाएगा.

आंध्र प्रदेश और हिमाचल में पहले हो चुका सर्वे

आईटी कानपुर के वैज्ञानिक के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पहली बार डिजिटेल मैप के जरिए सर्वे हो रहा है. इसे जीआईएस व जीपीएस तकनीक से तैयार किया जा रहा है. वैज्ञानिक इस तकनीक से गुजरात, पंजाब, आंध्र प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में पहले ही डिजिटल मैप तैयार कर चुके हैं.

डिजिटल मैपिंग तकनीक का होता है इस्तेमाल

वैज्ञानिकों के अनुसार जीआईएस तकनीक में रिमोट सेंसिंग, डिजिटल के साथ एरियल फोटोग्राफी व डिजिटल मैपिंग तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसमें गणित, भूगोल, सांख्यिकी के अलावा कंप्यूटर ग्राफिक्स, प्रोग्रामिंग डेटा प्रोसेसिंग का प्रयोग किया गया हैं. वहीं जीपीएस तकनीक में सेटेलाइट के जरिए लोकेशन पता चलती है. इसमें वेलोसिटी व टाइम सिंक्रनाइजेशन की भी जानकारी मिलती है. इसी तकनीक पर पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश में डिजिटल मैपिंग तैयार कर चुके हैं.

आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी मिलकर करेंगे काम

इस बीच आईआईटी कानपुर ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने और विभिन्न उत्पादों के लिए बाजार में मांग बढ़ाने के मकसद से भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान, जयपुर (आईआईसीडी) के साथ मिलकर काम करेगा. इसे लेकर एमओयू पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं. एमओयू स्थानीय कारीगरों को डिजाइन की समझ विकसित करने और बाजार की जरूरतों के अनुसार अपने उत्पादों की मांग बढ़ाने में मदद करेगा.

आईआईटी कानपुर की ओर से, रंजीत सिंह रोजी शिक्षा केंद्र (आरएसके) इस काम को देखेगा. आरएसके आईआईटी कानपुर कई वर्षों से ग्रामीण समुदायों और कारीगरों के साथ काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य उनकी आजीविका का उत्थान करना है. ये केंद्र आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करता है और ग्रामीण युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है. जिससे वे उच्च गुणवत्ता वाले परिधान, बैग, पोटली और पाउच, मिट्टी के बर्तन और खाने के लिए तैयार स्नैक्स का उत्पादन करने में सक्षम होते हैं.

आईआईटी कानपुर ने स्थानीय और ग्रामीण उत्पादों की बाजार अपील को बढ़ाने में डिजाइन इनपुट के महत्व को ध्यान में रखते हुए आईआईसीडी के साथ इस सहयोग की शुरुआत की है. आईआईसीडी का भारत में एक प्रसिद्ध शिल्प और डिजाइन संस्थान होने के नाते पूरे देश में शिल्प क्षेत्र को सशक्त बनाने का एक समृद्ध इतिहास है. यह सहयोग कारीगरों के उत्पादों की अपील बढ़ाने के लिए उनकी विशेषज्ञता को उनके करीब लाएगा.

इस सहयोग का प्राथमिक उद्देश्य पारंपरिक कला और शिल्प रूपों को संरक्षित करना उन्नत प्रक्रियाओं को विकसित करना और स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों के लिए अभिनव डिजाइन तैयार करना है. जिससे कारीगरों, शिल्प समुदायों और उपभोक्ताओं के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित हो सके.

आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी ने इन उत्पादों को अधिक उपयोगी और विपणन योग्य बनाने के उद्देश्य से शिल्प क्षेत्र के भीतर अनुसंधान डिजाइन और विकास पर सहयोगात्मक रूप से काम करने की योजना बनाई है.

आईआईटी कानपुर के डीन ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रोफेसर ए.आर. हरीश के मुताबिक शिल्प और डिजाइन क्षेत्र में आईआईसीडी की समृद्ध विरासत के साथ अनुसंधान डिजाइन और विकास में हमारी विशेषज्ञता को जोड़कर काम किया जाएगा. इसके तहत पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित करते हुए विपणन योग्य उत्पाद बनाने और ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने का लक्ष्य है. हमें उम्मीद है कि यह साझेदारी उत्तर प्रदेश में सामाजिक-आर्थिक विकास में बड़े पैमाने पर योगदान देगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें