Loading election data...

पेसा एक्ट लागू करना स्वागत योग्य कदम

ग्रामसभाएं ही संविधान के अनुच्छेद-275(1) के तहत मिलनेवाले अनुदान और जिला खनिज विकास निधि से की जाने वाली योजनाओं का फैसला करेंगी. योजना के लाभुकों का चयन ग्रामसभा के माध्यम से किया जायेगा. विभाग द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं के लिये ग्रामसभा के द्वारा विचार-विमर्श करना होगा.

By पद्मश्री अशोक | November 16, 2023 10:02 AM

आगामी वर्ष में लोकसभा चुनाव की आहट के बीच पेसा एक्ट को लागू करने में राज्यों द्वारा रुचि लिया जाना एक स्वागत योग्य कदम है. वर्षों से अनुसूचित क्षेत्र में निवास कर रहे जनजातीय समुदाय एवं अन्य लोग अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं तथ पेसा एक्ट के प्रावधानों को इसकी मूल भावना के अनुरूप लागू किये जाने का बाट जोह रहे हैं. ऐसे में चुनावी वर्ष में राज्य सरकारों की पहल से उम्मीद की नयी किरण व ऊर्जा का संचार जनमानस में हुआ है. पेसा एक्ट के लागू होने की चर्चा ने वंचित समुदाय को उद्वेलित कर दिया है. ऐसे में राज्य सरकारों को इसकी अंतरात्मा को बिना छेड़े वास्तविक रूप में लागू किये जाने पर बल देने की जरूरत है. झारखंड के पेसा कानून में कुल 17 अध्याय और 36 धाराएं हैं. सरकार द्वारा लागू किये गये पेसा रूल में ग्रामसभाओं को शक्तिशाली और अधिकार संपन्न बनाने की बात कही गयी है. इसके तहत ग्रामसभा की बैठकों की अध्यक्षता मानकी, मुंडा आदि पारंपरिक प्रधान ही करेंगे. पंचायत सचिव ग्रामसभा सचिव के रूप में काम करेंगे. बैठकों में कोरम पूरा करने के लिए 1/3 सदस्यों की मौजूदगी जरूरी होगी. कोरम पूरा करने के लिए निर्धारित इस संख्या में 1/3 महिलाओं की उपस्थिति भी जरूरी है.

जारी पेसा कानून में साफ तौर पर कहा गया है कि ग्रामसभा की सहमति के बिना जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा. आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री मामले में भी ग्रामसभा की सहमति की बाध्यता होगी. ग्रामसभा गांव में विधि-व्यवस्था बहाल करने के उद्देश्य से आइपीसी की कुल 36 धाराओं के तहत अपराध करने वालों पर न्यूनतम 10 रुपये से अधिकतम 1000 रुपये तक का दंड लगा सकेंगी. दंड की अपील पारंपरिक उच्च स्तर के बाद सीधे हाइकोर्ट में की जायेगी. पेसा रूल में पुलिस की भूमिका निर्धारित करते हुए किसी की गिरफ्तारी के 48 घंटे के अंदर गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी ग्रामसभा को देने की बाध्यता तय की गयी है. ग्रामसभा में कोष स्थापित करने का प्रावधान किया गया है. इसे अन्न कोष, श्रम कोष, वस्तु कोष, नकद कोष के नाम से जाना जायेगा. नकद कोष में दान, प्रोत्साहन राशि, दंड, शुल्क, वन उपज से मिलने वाले रॉयल्टी, तालाब, बाजार आदि के लीज से मिलने वाली राशि रखी जायेगी. ग्रामसभा में बक्से में बंद कर अधिकतम 10 हजार रुपये ही रखे जायेंगे. इससे अधिक जमा हुई राशि बैंक खाते में रखी जायेगी.

ग्रामसभाएं ही संविधान के अनुच्छेद-275(1) के तहत मिलनेवाले अनुदान और जिला खनिज विकास निधि से की जाने वाली योजनाओं का फैसला करेंगी. योजना के लाभुकों का चयन ग्रामसभा के माध्यम से किया जाएगा. विभाग द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं के लिये ग्राम सभा के द्वारा विचार-विमर्श करना होगा. पेसा रूल के प्रावधानों के सामाजिक, धार्मिक और प्रथा के प्रतिकूल होने की स्थिति में ग्रामसभा को इस पर आपत्ति दर्ज करने का अधिकार होगा. इस तरह के मामलों में ग्रामसभा प्रस्ताव पारित कर उपायुक्त के माध्यम से राज्य सरकार को भेजेगा. सरकार 30 दिनों के अंदर एक उच्चस्तरीय समिति बनायेगी. यह समिति 90 दिनों के अंदर सरकार को अपनी रिपोर्ट देगी. रिपोर्ट के आधार पर सरकार फैसला करेगी और ग्रामसभा को सूचित करेगी. ग्रामसभा अपनी पारंपरिक सीमा के अंदर प्राकृतिक स्रोतों का प्रबंधन करेगी. ग्रामसभा को वन उपज पर अधिकार दिया गया है. वन उपज की सूची में पादक मूल के सभी गैर-इमारती वनोत्पाद को शामिल किया गया है. ग्रामसभा को लघु खनिजों का अधिकार दिया गया है. ग्रामसभाएं सामुदायिक संसाधनों का नियंत्रण समुदाय के पारंपरिक पद्धति और प्रथाओं से करेंगी. हालांकि, इस दौरान विल्किंसन रूल्स, छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम व संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सहित अन्य कानूनों का ध्यान रखा जायेगा.

पेसा एक्ट में ग्रामसभा की भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है. ग्रामसभा की सीमा क्या होगी, उसका आधार क्या होगा, उसके लिए राज्य सरकार ने कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिया है. झारखंड पेसा कानून में सरकार ने ग्रामसभा के अधिकार को सीमित करते हुए उसे पंचायतों के अंदर की संस्था के रूप में चिह्नित कर दिया है. साथ ही उसके लिए पंचायत सचिव को ही ग्रामसभा सचिव का दायित्व सौंप दिया है. इससे पेसा अधिनियम की मूल आत्मा ही मर जायेगी. सरकार ने ग्रामसभा को आदिवासी पारंपरिक सभा के रूप में न मानकर पंचायती राज व्यवस्था में जो नियम हैं, उसी आधार पर परिभाषित कर दिया है. इससे ग्रामसभा की ताकत कम हो जायेगी. झारखंड में पहले से आदिवासियों की पारंपरिक सरकार रही है. केंद्रीय पेसा अधिनियम में साफ तौर पर कहा गया है कि ग्रामसभा के कार्यों के लिए कोई समिति की आवश्यकता नहीं है. पेसा के तहत ग्रामसभा का मतलब आदिवासी पारंपरिक ग्रामसभा से है, जो उनकी संस्कृति और परंपरा के आधार पर गठित हो. ऐसे में पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को खत्म कर दिया जाना चाहिए. केंद्रीय पेसा अधिनियम के अनुरूप राज्य सरकारों द्वारा पेसा एक्ट लागू किये जाने में पूरी ईमानदारी बरतने की आवश्यकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version