कभी माओवादियों की थी दहशत, झारखंड के बूढ़ा पहाड़ पर पहली बार शान से लहराया तिरंगा, ग्रामीणों के खिले चेहरे
वर्ष 1994-95 से माओवादियों के कब्जे में रहा बूढ़ा पहाड़ माओवादियों का ट्रेनिग कैंप था. यहां से ट्रेनिंग लेकर युवा माओवादी नेताओं के आदेश पर झारखंड, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ के इलाकों में घटनाओं को अंजाम देते थे. इन तीन दशकों में इस क्षेत्र में भी माओवादियों ने बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया.
रमकंडा (गढ़वा), मुकेश तिवारी: करीब तीन दशक से माओवादियों के कब्जे में रहे बूढ़ा पहाड़ पर आज मंगलवार को पहली बार आजादी का तिरंगा लहराया. इसे लेकर बूढ़ा पहाड़ कैंप पर पूरी तैयारी की गयी थी. बूढ़ा पहाड़ पर बसने वाले लोगों ने पहली बार आजाद भारत का जश्न मनाया. तिरंगे को सलामी दी. स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम को लेकर बूढ़ा पहाड़ पर बसे लोगों के चेहरे पर मुस्कान दिखी. सुरक्षा को लेकर सीआरपीएफ के जवान पूरी तरह चौकस दिखे. कभी इस बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों की दहशत थी. पूरा इलाका गोलियों की गूंज से गूंजती रहती थी. इनका इलाके में काफी खौफ था. इनके इशारे के बिना एक पत्ता नहीं हिलता था, लेकिन ऑपरेशन ऑक्टोपस के जरिए इनका कैंप ध्वस्त कर इस इलाके को नक्सलमुक्त कराया गया. इस इलाके में विकास की किरणें दिखने लगी हैं. धीरे-धीरे हो रहे विकास कार्यां से ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगी है. वे भी खुली हवा में सांस ले रहे हैं.
माओवादियों का ट्रेनिग कैंप था बूढ़ा पहाड़
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1994-95 से माओवादियों के कब्जे में रहा बूढ़ा पहाड़ माओवादियों का ट्रेनिग कैंप था. यहां से ट्रेनिंग लेकर युवा माओवादी नेताओं के आदेश पर झारखंड, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ के इलाकों में घटनाओं को अंजाम देते थे. इन तीन दशकों में इस क्षेत्र में भी माओवादियों ने बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. इनमें अक्टूबर 2001 में बड़गड़ के सालो जंगल में बारूदी सुरंग विस्फोट की घटना में डीएसपी अमलेश कुमार, जवान कन्हैया प्रसाद सिंह, शिवकुमार दास व चालक वीरेंद्र रजक शहीद हो गये थे. नक्सलियों के इस कालखंड के दौरान अन्य बड़ी घटनाएं भी घटित हुई हैं.
ऑपरेशन ऑक्टोपस से नक्सल मुक्त हुआ इलाका
ख़ौफ इतना था कि पहले खुलेआम नक्सली जन अदालत लगाकर इन क्षेत्रों के विभिन्न मामलों पर अपना फैसला सुनाते थे. लोग उनके फैसलों को मानने पर मजबूर थे. खासकर गढ़वा जिले के रमकंडा, भंडरिया और बड़गड़ प्रखंड काफी प्रभावित रहा, लेकिन समय बीतने के साथ साथ माओवादियों की टीम में नये सदस्यों की भर्ती में कमी आने लगी. सदस्यों के कमजोर होने के बाद पुलिस की ओर से शुरू किये गये ऑपरेशन ऑक्टोपस के जरिये बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों से मुक्त कराने का प्रयास सफल रहा.
लौटने लगी खुशी, पहुंचने लगी विकास की किरण
माओवादी मुक्त होने के बाद सरकार ने इस क्षेत्र को विकसित करने के लिये बूढ़ा पहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसका फायदा यहां के लोगों को मिलेगा, लेकिन इसके पहले यहां बसे लोगों को मूलभूत सुविधाओं से जोड़ने का काम जिला प्रशासन कर रहा है. सड़कें सुनसान, डरावने घनघोर जंगल, जहां विकास की किरण भी नहीं पहुंचती थी, लेकिन अब नक्सलियों का सफाया होने के बाद आज इन्हीं क्षेत्रों में विकास की योजनाएं तेजी से चल रही है. इन क्षेत्रों में काम करने वाले संवेदक से लेकर मजदूर व मुंशी की टीम जंगली क्षेत्रों में ही आराम से रहकर योजनाओं के निर्माण में भूमिका निभा रहे हैं. उन्हें अब तनिक भी नक्सलियों का भय नहीं है. स्थानीय ग्रामीण भी सरकारी योजनाओं से लाभान्वित होने के कारण उनके चेहरे पर मुस्कान है. इन क्षेत्रों की सड़कों से आम नागरिक के अलावा दूसरे क्षेत्र के लोग भी आवागमन कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को लेकर प्रशासन को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. बावजूद इसके प्रशासनिक टीम काम करने में जुटी है.
बूढ़ा पहाड़ पर तेजी से हो रहा विकास कार्य
नक्सल मुक्त होने के बाद बूढ़ा पहाड़ पर बसे लोगों तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने का कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे बड़गड़ बीडीओ विपिन कुमार भारती बताते हैं कि बूढ़ा पहाड़ पर बसे लोगों में जागरूकता लाने का काम हो रहा है. उन्हें शिक्षा से जोड़ने के अलावा मूलभूत सुविधाओं से जोड़ने का तेजी से प्रयास चल रहा है. हालांकि वहां तक योजनाओं के कार्यान्वयन में अन्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है.
Also Read: Independence Day 2023: 77वें स्वतंत्रता दिवस पर वीर शहीदों को नमन, झारखंड में ऐसे शान से फहरा तिरंगा