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Independence Day : सरकारी दस्तावेजाें में बंद हैं आजादी के गुमनाम नायक

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के सैकड़ाें वीराें ने शहादत दी. कुछ काे काला पानी की सजा दी गयी. अनेक वीराें ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जेलाें में बिताया, लेकिन उनके नाम अब भी सरकारी दस्तावेजाें में ही हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 15, 2020 3:20 AM

अनुज कुमार सिन्हा

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के सैकड़ाें वीराें ने शहादत दी. कुछ काे काला पानी की सजा दी गयी. अनेक वीराें ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जेलाें में बिताया, लेकिन उनके नाम अब भी सरकारी दस्तावेजाें में ही हैं. ये दस्तावेज भी अब धीरे-धीरे नष्ट हाेते जा रहे हैं. अंगरेजाें के खिलाफ झारखंड में ताे बाबा तिलका माझी ने 18वीं शताब्दी में विद्राेह का बिगुल फूंका था.

अंगरेजाें ने उन्हें फांसी पर लटका दिया. उनके बाद सिदाे-कान्हू, चांद-भैरव, बिरसा मुंडा, विश्वनाथ शाही, पांडेय गणपत राय, उमरांव सिंह टिकैत, नीलांबर-पितांबर, जग्गू-दीवान, अर्जुन सिंह व शेख भिखारी जैसे वीराें ने अंगरेजाें के खिलाफ संघर्ष किया आैर अपनी शहादत दी. इन नायकाें काे हर काेई जानता है. इन्हें याद करता है. लेकिन देश की आजादी के लिए संघर्ष करनेवाले हजाराें नायकाें-वीराें के बारे में उनके गांव-शहर के लाेग भी विस्तार से नहीं जानते. ऐसे नायकाें का नाम सामने लाने का काेई गंभीर प्रयास भी नहीं हुआ है. यह उनके साथ अन्याय है.

1857 के विद्राेह के दाैरान छाेटानागपुर के कई वीर विद्राेही गिरफ्तार कर लिये गये थे. पहले इन्हें अलीपुर जेल भेजा गया. फिर छाेटानागपुर के 37 कैदियाें काे पाेर्ट ब्लेयर, माेलमीन सैंडवे भेजा गया था. इनमें से अधिकतर 14 साल या उम्र कैद की सजा पाये हुए कैदी थे.

छाेटानागपुर के कमिश्नर डाल्टन ने 22 अप्रैल, 1863 काे बंगाल सरकार के सचिव काे पत्र भेज कर बताया था कि लाेहरदगा से 29 कैदी भेजे गये थे,जिनमें दाे की माैत हाे गयी थी. दाे फरार हाे गये थे. अन्य 25 कैदियाें काे पाेर्ट ब्लेयर भेज दिया गया था. दाे बड़े आदिवासी वीर थे.एक थे सूरज माझी आैर दूसरा साेना माझी. सूरज माझी विद्राेहियाें के नेता थे. उन पर भाषण के माध्यम से उत्तेजना फैलाने का आराेप लगाकर 13 नवंबर, 1857 काे उम्र कैद की सजा सुनायी गयी थी.

3 सितंबर, 1858 काे उन्हें अलीपुर जेल से अंडमान जेल यानी काला पानी भेजा गया था. साेना माझी संथाल विद्राेहियाें के नेता थे. उन्हें 13 अप्रैल, 1858 काे सश्रम कारावास की सजा सुनायी गयी थी. उन्हें भी अंडमान जेल भेजा गया था. सूरज माझी आैर साेना माझी जैसे नायकाें की भूमिका लाेग नहीं जानते. 1857 में झारखंड क्षेत्र में विद्राेह की शुरुआत देवघर के पास राेहिणी नामक स्थान से हुई थी. इस विद्राेह में भाग लेने के कारण 16 जून, 1857 काे सलामत अली, अमानत अली आैर शेख हारूण काे अंगरेजाें ने फांसी दे दी थी.

पलामू में विद्राेह के बाद शिवचरण माझी काे फांसी दे दी गयी, जबकि रतन शाह, भूखा साह, नारायण काे आजीवन निर्वासन की सजा सुनायी गयी थी. इसी आसपास संथाल विद्राेह ने अंगरेजाें काे तबाह कर दिया था. उस दाैरान भी सैकड़ाें संथाल शहीद हुए थे. विद्राेह के दाैरान गाेला, चितरपुर, पेटरवार, चास क्षेत्र में संथालाें का नेतृत्व रूपु माझी ने किया था. अंगरेजाें ने उन पर साै रुपये का इनाम रखा था, लेकिन उन्हें कभी पकड़ा नहीं जा सका.

सिंहभूम में विद्राेह के दाैरान जग्गू दीवान काे फांसी दी गयी थी. अर्जुन सिंह, बैजनाथ सिंह, माेरा काेल, बया काेल, कानू काेल, दर्गे काेल, दाेले काेल, जर्का काेल, सुंदर काे आजीवन निर्वासन की सजा दी गयी. दुमा काे 14 साल की सजा मिली. रघु देव आैर किशुन श्याम करण महथी काे अंगरेज कभी गिरफ्तार नहीं कर सके. उसी प्रकार रामगढ़ बटालियन के देशप्रेमी सिपाहियाें की भूमिका भी जाेरदार रही थी.

सूबेदार जयमंगल पांडे आैर सूबेदार नादिर अली काे चतरा में फांसी दे दी गयी थी. जमादार माधव सिंह अंत तक पकड़े नहीं गये. सूबेदार गरदाैरी सिंह, सूबेदार शेख डाेमन, जमादार कलुबली खां, हवलदार रामबख्श सिंह, हवलदार पहलवान सिंह, जिया सिंह, आेनास पांडेय, कुमुद सिंह आदि विद्राेह के प्रमुख नेता थे. सरकारी दस्तावेज ताे वीराें के नाम से भरे पड़े हैं.

बिरसा मुंडा के उलगुलान में भी अंगरेजाें के साथ संघर्ष करते हुए अनेक वीर मारे गये. कुछ की माैत जेल में हुई. डेमखानेल के धेरेया मुंडा की जेल में माैत हुई. गया मुंडा काे पुलिस ने मार डाला. गुटुहुट्टु के हरि मुंडा , हति राम मुंडा, माल्का मुंडा, नरसिंह मुंडा, सांडे मुंडा, साेंब्राय मुंडा, सुखा राम मुंडा ने भी अपनी शहादत दी. महात्मा गांधी के झारखंड दाैरे के बाद इस पूरे इलाके में स्वतंत्रता संग्राम में तेजी आयी.

इसमें गैर-आदिवासियाें की भागीदारी तेजी से हुई. यही कारण था कि 1942 के भारत छाेड़ाे आंदाेलन में झारखंड क्षेत्र के लाेगाें ने बड़ी संख्या में भाग लिया. जेल गये. पुलिस की मार खायी, कई ने शहादत दी. 14 अगस्त, 1942 काे रांची के जिला स्कूल के पास से जुलूस निकला था. जानकी बाबू, देवेंद्र कुमार, गणपत खंडेलवाल, मथुरा प्रसाद, गंगा महाराज, गाेविंद भगत आैर लड्डू महाराज काे गिरफ्तार कर लिया गया था. नवंबर आते-आते यह आंदाेलन रांची के आसपास तेजी से फैल गया था.

इनमें विमल दास गुप्ता, सुनील कुमार राय, डॉ यदुनाथ मुखर्जी, केशव दास गुप्ता, रामरक्षा उपाध्याय, सत्यदेव साहू, नारायणजी, नंद किशाेर भगत आदि काे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. जमशेदपुर में रामानंद तिवारी के नेतृत्व में विद्राेह हुआ था. हजाराें लाेग गिरफ्तार हुए थे. ऐसा झारखंड के अन्य जिलाें में भी हुआ था. जिन लाेगाें ने आजादी की लड़ाई में शहादत दी, उम्र कैद की सजा भुगती या जिनका बड़ा याेगदान रहा, उन नायकाें की वीर गाथा जरूर लिखी जानी चाहिए. अभी अधिकतर उपेक्षित हैं आैर फाइलाें में कैद हैं.

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