मजबूत बनी रहेगी भारतीय अर्थव्यवस्था
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार विगत 23 वर्षों में भारत में 919 अरब डॉलर का एफडीआइ आया है, जिसमें से 65 प्रतिशत निवेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आया है. भारत में बैंक खाताधारकों की संख्या 50 करोड़ हो गयी है, जो 2014 में महज 15 करोड़ थी.
विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को 6.4 प्रतिशत पर यथावत रखा है. अपनी रिपोर्ट में विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के दौरान भी भारत की जीडीपी वृद्धि दर के 6.5 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान जताया है. विश्व बैंक ने यह भी कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती रहेगी. इस अनुमान के आधार घरेलू मांग में वृद्धि, सार्वजनिक आधारभूत संरचनाओं पर अधिकतम खर्च, क्रेडिट वृद्धि में तेजी आदि हैं. वैश्विक रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ग्लोबल ने 2023-24 के लिए वृद्धि दर के अनुमान को छह प्रतिशत से बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है, लेकिन 2024-25 के लिए अनुमान को 6.9 से घटाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है. एजेंसी का मानना है कि दूसरी छमाही में वृद्धि दर में कमी आयेगी, लेकिन अगर महंगाई नियंत्रण में रहती है और आर्थिक गतिविधियों में तेजी बनी रहती है, तो वृद्धि दर अनुमान से ज्यादा रहेगी. रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की ‘बीबीबी’ की रेटिंग को बरकरार रखा है. इसका यह अर्थ हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी रहेगी. इस एजेंसी के अनुसार भारत की जीडीपी 2024 में 6.9 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और आगामी कुछ सालों तक दुनिया की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक बनी रहेगी.
फिच का यह भी मानना है कि भारत में महंगाई स्थिर बनी हुई है और वित्त वर्ष 2024 के अंत तक यह घटकर 4.7 प्रतिशत के स्तर पर रह सकती है. साथ ही, यहां देशी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) और विदेशी संस्थागत निवेशक (एफपीआइ) बदस्तूर निवेश करते रहेंगे. इसके अलावा, खपत में भी वृद्धि होगी, जिससे मांग और आपूर्ति में तेजी आयेगी और आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार विगत 23 वर्षों में भारत में 919 अरब डॉलर का एफडीआइ आया है, जिसमें से 65 प्रतिशत निवेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आया है. भारत में बैंक खाताधारकों की संख्या 50 करोड़ हो गयी है, जो 2014 में महज 15 करोड़ थी. इससे पता चलता है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में वित्तीय समावेशन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य हुआ है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर सात प्रतिशत रहेगी, जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान से कुछ अधिक है. प्रति व्यक्ति नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. वित्त वर्ष 2023 में यह बढ़कर प्रति व्यक्ति 47 हजार रुपये हो गया है. सेवा क्षेत्र में 9.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2022 के दौरान इस क्षेत्र में 8.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी. सेवा क्षेत्र के अंतर्गत होटल, परिवहन, संचार आदि में तेज वृद्धि दर्ज की गयी है.
रियल एस्टेट, वित्त एवं पेशेवर सेवा क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023 के दौरान 6.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की संभावना है. वित्त वर्ष 2022 से मांग और खर्च में तेजी देखी जा रही है. समग्र रूप से वित्त वर्ष 2022 और 2023 में उपभोग या खपत की वृद्धि दर सात प्रतिशत रही है, जिसमें निजी खपत वृद्धि दर 2023 में 7.7 प्रतिशत रही है, जबकि सरकारी खपत वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत रही है. आयात और निर्यात में कमी दर्ज हुई है, लेकिन आयात में पहले की तुलना में बढ़ोतरी हुई है. चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही तक कर संग्रह 12.24 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो बजट अनुमान का 63.3 प्रतिशत है. वहीं, गैर कर राजस्व संग्रह 1.98 लाख करोड़ रुपये रहा, जो बजट अनुमान का 73.5 प्रतिशत है. राजस्व संग्रह और खर्च में वृद्धि से राजकोषीय घाटा में मामूली बढ़ोतरी की आशंका है. फिर भी उम्मीद है कि अगर राजस्व संग्रह में बजट अनुमान के अनुसार वृद्धि होती है, तो सरकार के पास वित्त वर्ष 2023 में लगभग 85,939 करोड़ रुपये खर्च करने की गुंजाइश होगी, जिसका इस्तेमाल विकासात्मक कार्यों में किया जा सकता है.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और निफ्टी में बीते दिनों ऐतिहासिक बढ़त के बाद 17 जनवरी को कुछ गिरावट आयी, पर भारत के साथ-साथ दुनिया के अधिकतर शेयर बाजारों में उस दिन गिरावट दर्ज की गयी थी, जिसके कारण अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती करने की उम्मीद का कम होना, डॉलर इंडेक्स में तेजी और बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी आदि हैं. भारत में बैंकिंग क्षेत्र के शेयरों के लुढ़कने का कारण बैंकों के नतीजे और उनके प्रदर्शन का आशा के अनुरूप नहीं रहना है. सूचकांक में गिरावट के बाद भी भारतीय शेयर बाजार में मजबूती बरकरार है और जल्द ही इसमें फिर तेज उछाल का दौर शुरू हो जायेगा क्योंकि शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों की बैलेंस शीट अभी भी बहुत अच्छी है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के ठोस होने का संकेत है. कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख मानक मजबूत बने हुए हैं और आगामी सालों में भी विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारतीय अर्थव्यवस्था होगा, जिसकी पुष्टि वैश्विक एजेंसियां भी आज कर रही हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)