20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की राह पर भारतीय रुपया

यह भविष्य ही बतायेगा कि कच्चे तेल की अधिक खरीद का भुगतान रुपये में लाभ देगा या नहीं. फिर भी, अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के रुपये में भुगतान के लिए यदि कुछ विकसित देशों के साथ भारत के पारस्परिक गठजोड़ होते हैं, तो यह भारत के लिए एक बड़ी सफलता होगी.

इन दिनों इस बात की चर्चा है कि भारत रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास कर रहा है. ऐसे कयास भी लगाये जा रहे हैं कि अगर रुपया अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित होता है, तो भारत को बहुत आर्थिक लाभ होंगे तथा आने वाले समय में भारत बड़ी तेजी से आगे बढ़ सकेगा. इसकी शुरुआत पिछले वर्ष एक औपचारिक चर्चा में भारत के केंद्रीय बैंक के यह कहने से हुई कि विश्व के सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में अपनी पसंद की मुद्रा के उपयोग का अधिकार होना चाहिए. फिर, ब्रिक्स मुल्कों के सम्मेलन में जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के विकेंद्रीकरण के लिए आर्थिक विकेंद्रीकरण का मुद्दा उठाया, तो इन कयासों को और बल मिला कि संभवत: मोदी सरकार रुपये को भारत के सभी अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में उपयोग का मन बना रही है. भारत ने एक और पहल करते हुए श्रीलंका जैसे कई छोटे मुल्कों के साथ गठजोड़ को आगे बढ़ाते हुए भारतीय मुद्रा को आपसी लेनदेन का आधार बनाया.

इस संदर्भ में भारत के केंद्रीय बैंक ने अपने नागरिकों को एक विशेष तरह की बैंकिंग सुविधा देनी भी शुरू की, जिसके अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय लेनदेन की डॉलर में निकासी न होकर उस विशेष बैंकिंग खाता (वोस्ट्रो अकाउंट) से भारतीय रुपये में करनी शुरू कर दी. क्या यह इस बात की भी शुरुआत है कि अब डॉलर का वैश्विक दबदबा कम होना शुरू हो गया है? इसके विश्लेषण से निकले तथ्य इस बात का समर्थन करते हैं कि डॉलर के वैश्विक दबदबे के विरुद्ध विश्व के कई मुल्कों में अब एक राय बनती दिख रही है. आइएमएफ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 1999 में वैश्विक मुद्रा संग्रहण में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी से अधिक थी, जो 2022 में घट कर 59 फीसदी रह गयी. इस गिरावट के पीछे जहां एक ओर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति काम कर रही है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका की कुछ ऐसी आर्थिक नीतियां भी जिम्मेदार हैं, जो अनावश्यक रूप से उसकी बादशाहत को विश्व के दूसरे मुल्कों पर थोपती हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां रूस और चीन ने मिल कर अमेरिकन डॉलर के विरुद्ध चीनी मुद्रा युआन को बड़ी मजबूती से अंतरराष्ट्रीय पटल पर उभारा है.

कोरोना महामारी के बाद घरेलू स्तर पर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज नीतियों में परिवर्तन से डॉलर बहुत मजबूत हो गया और सभी बड़े विकसित मुल्कों तथा भारत जैसे अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं डॉलर के विरुद्ध कमजोर होती चली गयीं. कोरोना महामारी से पहले दिसंबर 2019 तक भारतीय रुपया डॉलर के विरुद्ध 70 रुपये के आसपास था, जो दिसंबर 2022 में 83 रुपये पर आ गया. इससे भारत के आयात लगातार महंगे होते चले गये और घरेलू बाजार में महंगाई भी अधिकतम स्तर पर देखने को मिली. डॉलर के वैश्विक दबाव को कम करने के लिए इन दिनों वैश्विक बाजार में सभी बड़े देशों द्वारा सोने की ताबड़तोड़ खरीदारी को भी एक आधार बनाया जा रहा है.

वर्ष 2023 के पहले तीन महीनों में चीन ने अकेले 58 मीट्रिक टन सोना खरीदा है. रूस भी पिछली तिमाही में 32 मीट्रिक टन सोना खरीद चुका है. वर्ष 2010 के बाद आज विश्वभर में सोने का संग्रह अपने अधिकतम स्तर पर है. इससे पहले विश्व में सोने की अधिकतम खरीदारी 2007 की अमेरिकी मंदी के दुष्प्रभाव के कारण एकाएक बढ़ी थी. तब यह चिंता हो गयी थी कि अमेरिकी मंदी के कारण डॉलर की अनुपलब्धता या विदेशी मुद्रा संग्रहण की कमी की वजह से मुल्कों को आयातों के भुगतान में मुश्किल न आने लगे. इसी कारण डॉलर के विकल्प के रूप में सोने की खरीद की सोच मजबूत हुई. वही सोच फिर से वैश्विक पटल पर अपनी जगह बना रही है. हालांकि, भारत ने सोने की खरीदारी में इतनी हड़बड़ाहट नहीं दिखायी है तथा औसतन प्रति तिमाही 10 मीट्रिक टन सोना ही खरीदा है.

आइएमएफ की ताजा रिपोर्ट में भारतत के वर्ष 2028 तक तकरीबन छह ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होने का अनुमान जताया गया है, पर आर्थिक स्तर पर तेजी से आगे बढ़ने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में व्यापार घाटा भारत के लिए एक बड़ी समस्या है. इसमें मुख्य बाधा डॉलर में आयातों का भुगतान किया जाना है, जो रुपये के विरुद्ध बहुत महंगा पड़ता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने कच्चे तेल को जब रूस से खरीदा और रूस के साथ पारस्परिक लेनदेन रुपये में करने पर सहमति बनायी, तो यह रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने की तरफ भारत की एक कूटनीतिक सफलता थी. हालांकि इसे अभी पूर्ण सफलता इसलिए नहीं माना जा सकता ,क्योंकि रूस डॉलर में भुगतान से मिलने वाले लाभ को भारत से अधिक मात्रा में कच्चा तेल बेच कर वसूलना चाहता है. इसलिए यह भविष्य ही बतायेगा कि कच्चे तेल की अधिक खरीद का भुगतान रुपये में लाभ देगा या नहीं. फिर भी, अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के रुपये में भुगतान के लिए यदि कुछ विकसित देशों के साथ भारत के पारस्परिक गठजोड़ होते हैं, तो यह भारत के लिए एक बड़ी सफलता होगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें