19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारतीय टीम से 47 बरस बाद फिर हॉकी वर्ल्ड कप जीतने की उम्मीद : अशोक कुमार सिंह

हॉकी वर्ल्ड कप 1975 में विजेता टीम के सदस्य रहे अशोक कुमार सिंह का मानना है कि भारत इस साल ओडिशा में होने वाले वर्ल्ड कप में जरूर चैंपियन बनेगा. उन्होंने कहा कि 47 साल बाद इस बार हम जरूर जीतेंगे. उन्होंने हॉकी में आये बदलाव के बारे में भी विस्तार से बात की.

अपने जमाने के बेहतरीन लेफ्ट इन रहे हॉकी खिलाड़ी अशोक कुमार सिंह ने अपने पिता हॉकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद की हॉकी विरासत को सही मायनों में आगे बढ़ाया. दरअसल अशोक कुमार राइट इन थे लेकिन टीम की जरूरत के मुताबिक वह भारत के लिए डेढ़ दशक से भी अधिक लेफ्ट इन के रूप में ही खेले. अशोक कुमार सिंह हॉकी विश्व कप में भारत की कदम ब कदम आगे बढ़ 1971 में कांसा,1973 में रजत और अंतत: 1975 में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के अहम सदस्य रहे. भारत ने अब तक हुए हॉकी विश्व कप के 14 संस्करणों में 1975 में इसके तीसरे संस्करण में मात्र एक बार स्वर्ण पदक अशोक कुमार सिंह के पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में विजयदाई गोल से ही जीता है.

47 साल बाद वर्ल्ड कप जीतने का मौका

भारत को अपना आखिरी हॉकी विश्व कप जीते अब 47 बरस हो जायेंगे. अशोक कुमार सिंह की हसरत है कि भारत 2023 में भुवनेश्वर और राउरकेला में 15वें पुरुष हॉकी विश्व कप में अपने घर में फिर से खिताब जीते. भारत के लिए सबसे पहले शुरू के चार हॉकी विश्व कप खेलने और 1972 की म्युनिख ओलंपिक में कांस्य जीतने वाली टीम के सदस्य रहे अशोक कुमार सिंह कहते हैं, ‘हमारी 1975 के हॉकी विश्व कप में खिताबी जीत का सबब बतौर टीम बेहतरीन प्रदर्शन रहा. तब हमारी अग्रिम पंक्ति मध्यपंक्ति और रक्षापंक्ति बतौर टीम एक मजबूत इकाई के रूप में खेली और हम अंतत: अपने तीसरे प्रयास में हॉकी विश्व कप जीतने में आखिरकार कामयाब हुए थे.

1975 में ऐसी थी टीम

उन्होंने कहा कि आप भारत की 1975 में हॉकी विश्व कप जीतने वाली टीम पर निगाह डालेंगे तो पायेंगे कि तब हमारे पास गोलरक्षक अशोक दीवान, रक्षापंक्ति में बेहतरीन फुलबैक और पेनल्टी कॉर्नर लगाने में माहिर स्वर्गीय सुरजीत सिंह व माइकल किंडो के साथ अहम वक्त पर पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करने में सक्षम असलम शेर खान, मध्यपंक्ति में हमारे कप्तान अजित पाल सिंह, हरचरण सिंह, अग्रिम पंक्ति में मेरे साथ बीपी गोविंदा, शिवाजी पवार यानी एक से एक अपने दम पर गोल करने का दम रखने वाले बेहतरीन स्ट्राइकर रहे. बेशक हमारे जमाने की हॉकी आज की हॉकी से एकदम अलग थी.

Also Read: FIH Hockey World Cup 13 जनवरी से, एशियाई चुनौती की अगुआई करेगा भारत, पाकिस्तान नहीं कर सका है क्वालिफाइ
हरमनप्रीत सिंह की तारीफ की

श्री सिंह ने कहा कि दुनिया के बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत सिह की अगुआई में राउरकेला और भुवनेश्वर में 2023 में मुझे भारतीय टीम से 47 बरस बाद फिर हॉकी विश्व कप जीतने की उम्मीद है. मेरा मानना है कि हमारी मौजूदा टीम 1975 की तरह- रक्षापंक्ति, मध्यपंक्ति और अग्रिम पंक्ति, हर लिहाज से एकदम संतुलित है. बेशक बहुत कुछ भारतीय टीम के मैच विशेष के दिन प्रदर्शन पर पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. हॉकी विश्व कप जीतने के लिए हमारी टीम को एक इकाई के रूप में लय-ताल से खेल खुद पर भरोसा कायम होगा. हमारी टीम को हर मैच में मैदान पर मारक क्षमता दिखानी होगी. अपने पूल डी में हमारे सामने स्पेन, इंग्लैंड और वेल्स की टीमें होंगी. मुझे अपनी भारतीय टीम से इन तीनों से पार पाने में सक्षम नजर आती है.

घरेलू मैदान पर भारत को होगा फायदा

वह कहते हैं, बेशक हमारे कप्तान ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत सिंह पेनल्टी कॉर्नर पर भारतीय टीम के लिए सबसे बढ़िया बात है कि उसे अपने घर में राउरकेला और भुवनेश्वर में अपने दर्शकों का हॉकी विश्व कप में अपने दर्शकों का लाभ मिलेगा. हरमनप्रीत सिंह बेशक 2023 में हॉकी विश्व कप में बेशक भारत की तुरुप के इक्के साबित होंगे. इसके जरूरी है कि भारत की अग्रिम पंक्ति और मध्यपंक्ति मिलकर उसे बराबर पेनल्टी कॉर्नर दिलाए, जिससे कि हरमनप्रीत अपने ‘हथियार’ ड्रैग फ्लिक का इस्तेमाल कर प्रतिद्वंद्वी टीम का किला बिखेर पाएं. भारत के अनुभवी मनदीप सिंह और ललित उपाध्याय के साथ नौजवान अभिषेक और सुखजीत सिंह के रूप में ऐसे बेहतरीन स्ट्राइकर जो खुद गोल करने के साथ उसे बराबर पेनल्टी कॉर्नर दिलाना जानते हैं. मध्यपंक्ति मे अनुभवी मनप्रीत सिंह के साथ नीलकांत शर्मा, विवेक सागर प्रसाद के साथ लिंकमैन के रूप में आकाशदीप और शमशेर हैं.

टीम को खुद पर भरोसा रखना होगा

उन्होंने कहा कि भारतीय हॉकी टीम को खुद पर भरोसा कायम रखते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाना होगा. भारत का चार दशक से ज्यादा के बाद विश्व कप में स्वर्ण पदक तो छोड़ ही दीजिए पदक न जीत पाने का कारण मेरी निगाह में बड़ी हद तक यह रहा कि उसके कोच कमोबेश डिफेंडर ही रहे. एक और बड़ा कारण हॉकी का घास की बजाय एस्ट्रो टर्फ पर खेला जाना और हॉकी के नियमों में बदलाव रहा. हमारे जमाने में भारतीय हॉकी टीम कलाई से हॉकी खेलती थी आज हॉकी कंधे की हॉकी हो गयी है. आज की हॉकी में नजाकत की जगह ताकत ने ली है. हमारे जमाने में तो फॉरवर्ड को जरा सा आगे निकलने पर अंपायर सीटी बजा कार्ड दिखा बाहर भेज देता था. आज की जमाने की हॉकी में स्कूप और लंबे पास के साथ पेनल्टी कॉर्नर पर ड्रैग फ्लिक अहम हो गये हैं. ‘डॉज’ और हॉकी की कलाकारी की गुंजाइश ही कम हो गई है.

भारतीय टीम संतुलित

अशोक कुमार कहते हैं, ‘2018 के विश्व कप में हमारी टीम में विवेक सागर प्रसाद जैसा नौजवान सेंटर हाफ जगह बनाने से चूक गया था. विवेक सागर एक खास प्रतिभा वाले खिलाड़ी हैं जो कि टीम को खिताब जिताने में अहम योगदान कर सकते हैं. मैं अपनी भारतीय हॉकी के चीफ कोच ग्राहम रीड की इस बात से सहमत हूं कि 2023 विश्व कप के लिए चुनी गयी टीम हर लिहाज से संतुलित है. टीम को हर खिलाड़ी को उसे हॉकी कौशल के साथ पूरे कौशल को जेहन में रख कर चुना गया है.

1975 हॉकी विश्व कप जीतने पर जब दद्दा ने पीठ थपथपाई तो मैं धन्य हो गया

अशोक कुमार सिंह कहते हैं, ‘बाउजी (पिता दद्दा ध्यानचंद) के सामने मेरी क्या हम भाईयों में कोई भी जाने की हिम्मत कम करता था. बाउजी का रौब ही इतना था कि हममें से कोई उनके सामने जाता ही नहीं था. दद्दा ने ओलंपिक में हॉकी में भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक जिताये थे. ऐसे में उनके सामने विश्व कप या फिर ओलंपिक में अपने रजत या कांसे को किस मुंह से दिखाते. जब 1975 में पहली बार हॉकी विश्व कप जीत कर घर लौटा तो दद्दा ने पीठ क्या थपथपाई मैं धन्य हो गया. दद्दा पहली बार मेरी किसी बड़ी उपलब्धि से दिल से खुश नजर आए. मैं मानता हूं कि पिता ध्यानचंद के तमगो के सामने मेरी उपलब्धियां कहीं ठहरती ही नहीं थी. दरअसल जब हम 1975 के हॉकी विश्व कप में शिरकत करने के लिए क्वालालंपुर पहुंचे तो सामने शोकेस में इसकी ट्रॉफी सजी थी. मैंने कुछ क्षण ठहर कर विश्व कप की इस ट्रॉफी को निहारा तो 1973 विश्व कप में नीदरलैंड से फाइनल में सडनडेथ में हार की टीस ताजा हो गई. बस तभी मैंने खुद से वादा किया कि मैं भारतीय टीम को 1975 हॉकी विश्व कप में खिताब जिताने में कसर नहीं छोडूंगा. मुझे खुशी है कि हमने पाकिस्तान से फाइनल में पिछड़ने के बाद सुरजीत सिंह के पेनल्टी कॉर्नर पर दागे गोल से बराबरी पाई और मेरे गोल से भारत ने 2-1 से जीत के साथ क्वालांलपुर में1975 में पहली बार आखिरकर हॉकी विश्व कप जीतने का अपना सपना सच कर दिया. हमारी टीम ने पिछडऩे के बाद इससे पहले मेजबान मलयेशिया से सेमीफाइनल में असलम शेर खान के गोल से वापसी करने के बाद जीत दर्ज कर लगातार दूसरी बार विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई थी. फाइनल से पहले हमारे मैनेजर बलबीर सिंह सीनियर साहब हमारी पूरी टीम को मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे ले गये. तब पाकिस्तान ने 17 वें मिनट में गोल से खाता खोल 1-0 की बढ़त ली थी. 44वें मिनट में सुरजीत सिंह ने पेनल्टी कॉर्नर पर गोल कर एक की बराबरी दिलाई. सात मिनट बाद मैंने गोल कर भारत को 2-1 से आगे कर दिया. हमने यह बढ़त कायम रखते हुए इसी अंतर से जीत के साथ हॉकी विश्व कप जीता. फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ हमारे फुलबैक असलम शेर खान ने पाकिस्तान के सभी हमले नाकाम किए ही हमारे गोलरक्षक अशोक दीवान ने कई यादगार बचाव कर भारत को अंतत: खिताब जिताया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें