महंगाई दर का घटना कितनी बड़ी राहत
महंगाई की खुदरा दर के निर्धारण का तरीका बहुत जटिल है. इसमें विभिन्न उपयोग की वस्तुओं को कुल छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है तथा उन्हें प्रति व्यक्ति उपभोग व क्रय क्षमता के अनुसार तुलनात्मक रूप से वेटेज भी दिया गया है. ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में इस दर की अलग-अलग गणना की जाती है.
बीते दिनों जब भारत सरकार की ओर से खुदरा महंगाई के आंकड़े घोषित किये गये, तो सभी ने राहत महसूस की कि आखिर अब एक लंबे अरसे के बाद महंगाई कम होना शुरू हो गयी है. आंकड़ों के मुताबिक मई, 2023 के अंतर्गत खुदरा महंगाई दर 4.25 प्रतिशत दर्ज की गयी. पिछले वर्ष मई, 2022 में यह 7.04 प्रतिशत पर थी, यानी पिछले एक वर्ष में खुदरा महंगाई की दर 2.79 प्रतिशत कम हुई है. यह बताना भी आवश्यक है कि जनवरी 2023 के बाद से खुदरा महंगाई की दर में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है. इन दिनों मोदी सरकार अपने कार्यकाल के नौ वर्ष पूरे होने पर अपनी उपलब्धियों का लेखा-जोखा रख रही है. लगातार कम हो रही खुदरा महंगाई ने सरकार को और उत्साहित कर दिया है तथा उसने चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 व आगामी वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए महंगाई की दर 5.1 प्रतिशत तथा 4.8 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान भी व्यक्त किया है.
यह एक हकीकत है कि आम उपभोक्ता को महंगाई की गिरावट के आंकड़े व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रभावित नहीं करते हैं. इसके विपरीत महंगाई की बढ़ोतरी के आंकड़ों से समाज में अर्थव्यवस्था को लेकर एक नकारात्मक सोच पनपती है. ऐसा इसलिए है कि महंगाई की दर का निर्धारण वास्तव में आंकड़ों की जादूगरी है. इस परिप्रेक्ष्य में अगर मई, 2023 की खुदरा महंगाई दर की ही बात की जाए, जो कि 4.25 प्रतिशत दर्ज हुई है, तो उसके आंकड़े खुद यह बताते हैं कि मई के महीने में सिर्फ सब्जियां और खाद्य तेल ही सस्ते हुए हैं. सब्जियों में इस दौरान 8.18 प्रतिशत की गिरावट तथा खाद्य तेलों पर लगभग 16 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी है. मांस और मछली पर 1.29 प्रतिशत की न्यूनतम गिरावट भी दर्ज हुई है. इसके अतिरिक्त, अन्य सभी आवश्यक सामग्रियां महंगी हुई हैं.
उदाहरण के तौर पर दूध 8.9, दालें 6.56, मिठाइयां 6.36, कपड़े 6.64, घरेलू सामान छह तथा दवाइयां 6.25 प्रतिशत महंगी हुई हैं. मसाले तो सबसे अधिक 17.9 प्रतिशत महंगे हुए हैं. दरअसल, महंगाई की खुदरा दर के निर्धारण का तरीका बहुत जटिल है. इसमें विभिन्न उपयोग की वस्तुओं को कुल छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है तथा उन्हें प्रति व्यक्ति उपभोग व क्रय क्षमता के अनुसार तुलनात्मक रूप से वेटेज भी दिया गया है. ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में इस दर की अलग-अलग गणना की जाती है. यह बताना भी आवश्यक है कि भारत के सभी राज्यों की महंगाई की खुदरा दर में वेटेज एक समान नहीं है. मसलन, आंध्र प्रदेश के लिए यह 4.58 प्रतिशत है, तो अरुणाचल के लिए 0.10, बिहार के लिए 5.14, तो मध्य प्रदेश के लिए 4.48 प्रतिशत है. महाराष्ट्र का 13.18 प्रतिशत है, जो सबसे अधिक है. उसके बाद उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल हैं.
महंगाई के आंकड़ों में कमी का बहुत बड़ा श्रेय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीतियों को जाता है. पिछले वर्ष कोरोना महामारी जैसे घरेलू और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक कारणों से महंगाई आसमान पर थी. दूसरी ओर, डॉलर की मजबूती से आयात लगातार महंगा हो रहा था और महंगाई बढ़ रही थी. हालांकि रिजर्व बैंक द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में लगातार चार दफा रेपो रेट में बढ़ोतरी करने से वित्तीय तरलता घटी. इससे प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता कम हो गयी, जिसका नकारात्मक प्रभाव 2022-23 के जीडीपी के आंकड़ों में विनिर्माण क्षेत्र के विकास दर में देखने को मिला है, जो कि मात्र 1.3 प्रतिशत रही. वर्ष 2022-23 के जीडीपी के आंकड़ों ने यह भी बताया है कि उस दौरान प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता में मात्र 2.8 प्रतिशत की वृद्धि ही देखी गयी, मगर यह आंशिक वृद्धि आरबीआइ की सख्त ब्याज की नीतियों के कारण वित्तीय तरलता की कमी से हुई थी. इसलिए यह समझना होगा कि वर्तमान में खुदरा महंगाई दर में कमी भी प्रति व्यक्ति क्रय क्षमता में हुई आंशिक बढ़ोतरी से ही संबंधित लगती है.
यह भी बहुत बड़ी विडंबना है कि वर्तमान समय में 2012 के समय के उपभोक्ता की खरीदारी के विभिन्न आधारों को मापदंड बना कर चला जा रहा है. क्या पिछले 10 वर्षों में भारतीय उपभोक्ता की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है? राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा उपभोक्ता की क्रय क्षमता के विभिन्न आधारों के मापदंडों का निर्धारण 2017-18 में किया जाना था, जो अब तक नहीं हुआ है और इस कारण आज भी 10 वर्ष पुराने आधारों को लेकर महंगाई की दर की गणना की जा रही है. गौरतलब है कि मोदी सरकार ने वर्ष 2016 में भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई की दर के पूर्वानुमान तथा उसके नियंत्रण के लिए आरबीआइ अधिनियम में परिवर्तन कर मौद्रिक नीति समिति का गठन किया था तथा इसके प्रावधानों के तहत आरबीआइ को भारत में महंगाई की दर को चार प्रतिशत तक नियंत्रित रखना होता है. हालांकि, विभिन्न वैश्विक तथा घरेलू आर्थिक परिस्थितियों के कारण इस दर में दो प्रतिशत की कमी या वृद्धि को स्वीकार किया जा सकता है. इसलिए यह जरूर कहा जा सकता है कि महंगाई की दर में पिछले चार महीनों से लगातार हो रही कमी संतोषजनक व सकारात्मक है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)