International Human Rights Day: डिजिटल मानवाधिकारों का हनन है डीपफेक
International Human Rights Day How Deepfake is a violation of digital human rights - आज हर व्यक्ति को अपने डिजिटल मानवाधिकार के प्रति जागरूक होना बेहद जरूरी है. समझते हैं डिजिटल मानवाधिकार के प्रति कैसे जागरूक बनें और ऑनलाइन हिंसा, उत्पीड़न से स्वयं को सुरक्षित रखें.
How Deepfake Violates Digital Human Rights : इंटरनेट क्रांति के बाद मौजूदा दौर में डिजिटल दुनिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है, जिसे हम सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक जीते हैं. इसने हमारे जीवन को उन्नत तो बनाया है, मगर साथ ही डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, निजी पहचान आदि कई मुद्दे हैं, जिसे लेकर आये दिन ‘ऑनलाइन सेंधमारी’ ने सबकी चिंता भी बढ़ायी है. ऐसे में आज हर व्यक्ति को अपने डिजिटल मानवाधिकार के प्रति जागरूक होना बेहद जरूरी है. समझते हैं डिजिटल मानवाधिकार के प्रति कैसे जागरूक बनें और ऑनलाइन हिंसा, उत्पीड़न से स्वयं को सुरक्षित रखें.
डिजिटल मानवाधिकारों का हनन है डीपफेक
पिछले कुछ हफ्तों में कई भारतीय अभिनेताओं और राजनीतिक हस्तियों के डीपफेक वीडियो ने इंटरनेट पर तूफान ला दिया है. यह केवल मशहूर हस्तियों तक ही यह सीमित नहीं. कोई भी इसका शिकार हो सकता है, क्योंकि दुनियाभर में हर रोज एआइ के नये-नये टूल आ रहे हैं, जो ऐसी सामग्री तैयार करने की सहूलियत देते हैं.
नयी डिजिटल चुनौती है डीपफेक
इंटरनेट क्रांति के बाद इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हमारी दुनिया को बहुत हद तक बदला है, लेकिन यह बदलाव इतना गहरा हो गया है कि कई बार हमने वास्तविक और आभासी दुनिया में भेद करना छोड़ दिया है. बीते कुछ दिनों में मोर्फ की गयी डीपफेक तस्वीरों या वीडियो को वायरल करने का सिलसिला चल पड़ा है. स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने भी डीपफेक को देश के लिए सबसे बड़े खतरों में से बताया है और लोगों में जागरूकता फैलाने का संदेश दिया है.
जागरूकता व सतर्कता जरूरी
डीपफेक का इस्तेमाल खासकर किसी भी व्यक्ति के प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने, अफवाह फैलाने या देश-समाज की शांति/संप्रभुता भंग करने के लिए किया जा सकता है. यहीं नहीं, अश्लील वीडियो या सामग्री बनाकर ब्लैकमेल करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. एक सर्वे में शामिल 32,000 भारतीयों में 30 फीसदी के अनुसार, उनके द्वारा देखे गये सभी वीडियों में 25 प्रतिशत नकली थे. 43 प्रतिशत नागरिक इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लैटफॉर्मों पर हर दिन औसत तीन या उससे अधिक डीपफेक वीडियो देखते हैं. जाहिर है डिपफेक चुनौती से लड़ने के लिए डिजिटल मानवाधिकार पर गंभीरता से सोचने, नागरिकों को जागरूक करने के साथ सतर्कता बरतने की सख्त जरूरत है.
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शिकार होने से कैसे बचें
इस तरह की घटना अगर किसी के साथ होती है, तो सबसे पहले साइबर क्राइम की साइट CYBERCRIM.GOV.IN पर जाएं और तुरंत इस पर अपनी शिकायत दर्ज कराएं. साथ ही साथ REPORT.STOPNICII.ORG पर जाएं और जो भी आपके पास तस्वीर है या उससे जुड़े स्क्रीन शॉर्ट या जो वीडियो है, उसको यहां अपलोड करें. त्वरित कारवाई के बाद यह तस्वीर या वीडियो सभी जगहों से हट जाएगी. हां, इस कानूनी प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है. इस तरह की किसी घटना के बाद स्वयं शर्मिंदगी में कोई गलत फैसला लेने के बजाय इससे डटकर लड़ने की आवश्यकता है. साथ ही, अपने किसी वीडियो को किसी भी प्लैटफॉर्म पर अपलोड करने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इसका गलत इस्तेमाल होने पर इस चुनौती से निबटने के लिए क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं. इसके खिलाफ खुद भी सतर्क रहें और दूसरों को भी सतर्क करें.
पुलिस में शिकायत के बाद कार्रवाई
एक सर्वेक्षण के अनुसार, डीपफेक वीडियो पर पुलिस शिकायत दर्ज करने के बाद इसे निष्क्रिय करने में सात से 10 दिन लग सकते हैं. जबकि सरकार ने डीपफेक वीडियोज को हटाने के लिए तमाम डिजिटल प्लैटफॉर्म को 36 घंटे की समय-सीमा का प्रस्ताव दिया हुआ है. एक सर्वेक्षण में 56 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इसे घटाकर 24 घंटे किया जाना बहुत जरूरी है.
अमिताभ बच्चन ने उठायी आवाज
हाल ही में एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना का एक मॉर्फ्ड वीडियो वायरल होने पर अमिताभ ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर कानूनी कार्रवाई की मांग की. बॉलीवुड के स्टार ने कहा कि भारत में डीपफेक से निबटने के लिए एक प्रभावी कानूनी और नियामक ढांचे की तुरंत जरूरत है.
आसान शिकार बनती हैं महिलाएं
महिलाओं को बॉडी शेमिंग के वीडियो या तस्वीरों द्वारा सोशल मीडिया पर अपमानित करने का आसान जरिया शुरुआत से ही बनाया जाता रहा है, जिसके कारण कई महिलाओं ने तो सोशल मीडिया से दूरी बना ली है. ब्रिटिश थिंक टैंक के एक अध्ययन के अनुसार, 96 प्रतिशत डीपफेक वीडियो अश्लील होते हैं और महिलाएं उसका आसान शिकार बनायी जाती हैं. इसका ताजा उदाहरण, पिछले दिनों रश्मिका मंदाना, कैटरीना कैफ, आलिया भट्ट, प्रियंका चोपड़ा, काजोल आदि अभिनेत्रियों का डीपफेक का निशाना बनना है. ऐसे में जरूरी है कि डर या अपमान के भय से अपनी बात रखने से हिचकना नहीं चाहिए. चूंकि डर और अपमान के भय से सामान्यत: महिलाएं मौन रहती हैं, इसलिए वह ऐसी चीजों का आसान शिकार बनती हैं. अवसाद या डिप्रेशन में चले जाने से या स्वयं को ही कसूरवार मान कर इस चुनौती से लड़ा नहीं जा सकता. जिस तरह डीपफेक से बॉलीवुड अभिनेत्रियों को बदनाम करने की कोशिश की गयी, उन्होंने मुखर होकर इसके खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज की और इसके खिलाफ लड़ने के लिए कानून को प्रभावी बनाने के साथ-साथ गतिशील बनाने की मांग रखी, उसी तरह ही इस नयी डिजिटल चुनौती का सामना किया जा सकता है.