कुल्लू: कुल्लू दशहरा देव परंपराएं जीवंत हो उठीं हैं. श्रद्धालुओं में भारी जोश है. हांलाकि 360 साल के इतिहास में पहली बार सबसे कम देवता आए हैं. पहले 300 से अधिक देवी देवता दशहरे में शिरकत करते थे. इस बार सिर्फ 11 देवताओं की हाजिरी हुई है. न्योता सात देवताओं को था, लेकिन ट्रैफिक के देवता धूमल नाग समेत चार और देवता समारोह में बिना बुलाए पहुंचे. कोरोना के कारण भीड़भाड़ कम है लेकिन उत्साह चरम पर है.
वर्ष 1660 से शुरू हुए कुल्लू दशहरा महोत्सव के इतिहास में पहली बार कोरोना के चलते भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में मात्र आठ देवी-देवता और 200 देवलुओं, कारकूनों और राज परिवार के सदस्यों ने भाग लिया. सोमवार को दशहरे के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने पंरपरागत तरीके से शिरकत की. हर साल हजारों की संख्या में लोग और 300 के करीब देवी-देवता शिरकत करते थे.
रघुनाथ की यात्रा के दौरान ‘अठारह करडू की सौह’ जय श्रीराम के उद्घोष लगे. मान्यता है कि भगवान रघुनाथ का रथ खींचने से पापों से मुक्ति मिलती है. अगले पांच दिन तक रोजाना दशहरे की परंपराएं निभाई जाएंगी.
भगवान रघुनाथ की मूर्ति को सन 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया है. लेकिन कुल्लू दशहरा उत्सव का आयोजन 1660 से किया जा रहा है. लेकिन इस बीच करीब 300 साल तक अंग्रेजों के शासन के दौरान भी देवी-देवताओं के महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में सैकड़ों की संख्या में देवी-देवता भाग लेते आए हैं.
कोरोना काल ने 360 सालों के इतिहास को बदल कर रख दिया है. 2020 के दशहरा को जिला कुल्लू के साथ प्रदेश व देश के लोग कई सदियों तक याद रखेंगे. दशहरा में देव परपंरा को निभाने के लिए मात्र सात देवी देवताओं को बुलाया गया था.
जिला देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व जिला अध्यक्ष दोत राम ठाकुर ने कहा कि अंग्रेजो के समय में भी देव पंरपरा को नहीं छेड़ा गया और सैकड़ों की संख्या में देवी देवताओं की भागीदारी रही है. उन्होंने कहा कि ढालपुर में जब से दशहरा का आयोजन होता आया है, तब से लेकर अबतक में सिर्फ इस बार ही इतने कम देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया है.
Posted by : Pritish sahay