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जबलपुर में सैकड़ों वर्षों से लकड़ी पर टिका है प्राचीन मंदिर, जानें राधा-कृष्ण की प्रतिमा के पीछे के रहस्य

जबलपुर में करीब सैकड़ों वर्ष पुराना मंदिर है. लेकिन मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की प्रतिमा लगभग 500 वर्ष से अधिक पुरानी है. यह प्राचीन मंदिर होने के कारण यहां पर देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते है.

By Radheshyam Kushwaha | February 1, 2024 9:39 AM
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जबलपुर के संस्कारधानी कोतवाली थाना क्षेत्र में स्थित प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर सैकड़ों वर्षों पुरानी है. यह राधा कृष्ण मंदिर सैकड़ों वर्षों से लकड़ियों पर टिका हुआ है, इस मंदिर के कई पौराणिक महत्व भी हैं. जबलपुर के संस्कारधानी स्थित प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर की छत लकड़ी के मोटे-मोटे गाटर पर टिकी है. जानकारी के अनुसार संस्कारधानी में मौजूद गोंडकालीन पचमठा मंदिर भी लघुकाशी सूक्ष्म वृंदावन माना गया है. यह प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर संस्कारधानी कोतवाली थाना से महज 100 मीटर की दूरी पर स्थित है. जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक कुमार मिश्र ने बताया कि इस मंदिर की पुजारी अनिमेष पटेरिया है. इस मंदिर को संभाल रहे पुजारी अपने वंश की पांचवीं पीढ़ी से बताए जाते हैं.

1918 में उनके वंश के लोगों ने श्रीराधा-कृष्ण के इस मंदिर की सेवा शुरू की थी. जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक कुमार मिश्र ने कहा कि मंदिर करीब सैकड़ों वर्ष पुराना है, लेकिन मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की प्रतिमा लगभग 500 वर्ष से अधिक पुरानी है. इस मंदिर से पहले इसी जगह के पास ही एक और मंदिर बना था, जहां पर श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित थी. हालांकि मंदिर की हालत जर्जर हो जाने के कारण श्रीकृष्ण की प्रतिमा भी इस मंदिर में स्थापित कर दिया गया. यह प्राचीन स्थान जबलपुर के कोतवाली क्षेत्र में स्थिति है. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जवाली ऋषि की तपोभूमि होने के कारण इस जगह को पहले जवाली पूरम के नाम से जाना जाता था. वर्तमान में जबलपुर के नाम से जाना जाता है.

यह प्राचीन मंदिर होने के कारण यहां पर देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते है. कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यहां पर विशेष आयोजन प्रतिवर्ष कराया जाता है. श्री राधा-कृष्ण की यह प्रतिमा गोंडवाना काल की है. इस प्रतिमा की पूजा खुद रानी दुर्गावती करने यहां पर आती थी. मंदिर में लगी श्री कृष्ण और राधा की मूर्ति करीब सैकड़ों वर्ष पुरानी है. मान्यता है कि 500 वर्ष पुरानी यह प्राचीन और दैविक प्रतिमा जिनके दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.

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ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक कुमार मिश्र ने बताया कि यहां पर श्री राधा-कृष्ण की बाल सेवा की जाती है, इस मंदिर के नियम भी अन्य मंदिरों से अलग हैं. यहां पर सुबह-सुबह आरती के बाद 10 बजे राजभोग तत्पश्चात उसके बाद शाम 5 मंदिर के पट ठंड के दिनों में बंद कर दिए जाते हैं. फिर गर्भगृह के निकट जाने की किसी को इजाजत नहीं दी जाती है. ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक कुमार मिश्र के अनुसार जबलपुर के पचमठा में मुरलीधर और राधा की प्रतिमा विराजमान है, यह संत गिरधरलाल को यमुना में स्नान करते वक्त मिली थी. गिरधरलाल व दामोदर लाल दो संत थे. जो दीक्षा लेने के लिए वृंदावन गए थे. गिरधरलाल को यमुना में मुरलीधर की प्रतिमा मिली थी. गुरू की प्रेरणा से उन्होंने विक्रम संवत 1660 में पचमठा में उक्त प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी. जिसका शिलालेख आज भी मौजूद है.

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