झारखंड : शिक्षक और प्रधानाध्यापक ने जैक को नहीं भेजा था छात्रा का आवेदन पत्र, अदालत ने सुनायी 3 साल की सजा

परीक्षा की तिथि निकलने के बाद जब वह विद्यालय में प्रवेश पत्र लेने गयी, तो उसे बताया गया कि झारखंड एकेडेमिक काउंसिल (जैक) से उसका प्रवेश पत्र आया ही नहीं है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 1, 2023 6:38 AM
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गढ़वा व्यवहार न्यायालय के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश (पीडीजे) की अदालत ने 10वीं की छात्रा संजू कुमारी का परीक्षा फॉर्म भरने में लापरवाही बरतने के आरोप में राजकीयकृत बालिका उच्च विद्यालय के तत्कालीन हेडमास्टर हरिनाथ सिंह व शिक्षक राकेश कुमार को तीन-तीन साल की जेल एवं 10-10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनायी है. पीडीजे ने सीजेएम अदालत की सजा को बरकरार रखा है. विदित हो कि गढ़वा के विशुनपुर मुहल्ला निवासी काशीनाथ शुक्ला की पुत्री संजू कुमारी ने वर्ष 2007 में मैट्रिक की परीक्षा के लिए फॉर्म भरा था.

परीक्षा की तिथि निकलने के बाद जब वह विद्यालय में प्रवेश पत्र लेने गयी, तो उसे बताया गया कि झारखंड एकेडेमिक काउंसिल (जैक) से उसका प्रवेश पत्र आया ही नहीं है. वह दूसरे दिन भी विद्यालय गयी, तो उसे यही बताया गया. इस पर उसने तत्कालीन उपायुक्त को आवेदन देकर परीक्षा देने की अनुमति मांगी थी. इस पर उपायुक्त ने संजू को परीक्षा देने की अनुमति देने के साथ ही इस संबंध में जांच का निर्देश दिया.

इसके बाद छात्रा संजू ने दो पेपर की परीक्षा दी. इस बीच मामला प्रकाश में आया कि संजू का परीक्षा फॉर्म जैक को भेजा ही नहीं गया है. इसके बाद संजू फिर आगे की परीक्षा नहीं दे सकी. इससे उसका एक साल बर्बाद हो गया. इसके विरोध में संजू के पिता काशीनाथ शुक्ला ने प्रधानाध्यापक और परीक्षा नियंत्रक के खिलाफ थाना में मामला दर्ज कराया.

प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जांच में दोनों दोषी पाये गये. इसमें कहा गया कि विद्यालय द्वारा संजू का परीक्षा प्रपत्र झारखंड एकेडेमिक काउंसिल को भेजा ही नहीं गया है. यह रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत होने के बाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत ने संजू कुमारी का एक साल का समय बर्बाद करने के लिए प्रधानाध्यापक हरिनाथ सिंह एवं राकेश कुमार को दोषी मानते हुए सजा सुनायी.

दोनों आरोपी शिक्षक ने सीजेएम की अदालत के इस निर्णय के खिलाफ प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में आवेदन दिया. यहां सुनवाई के बाद प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश शरण सिंह की अदालत ने निचली अदालत की सजा बरकरार रखते हुए अपना फैसला सुनाया है. इसमें कहा गया है कि शिक्षकों की लापरवाही के कारण छात्रा का जो एक साल बर्बाद हुआ है, उसकी किसी भी परिस्थिति में क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती है.

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