Janaki Jayanti 2022: इस दिन मनाई जाएगी जानकी जयंती, जानें-पूजा की विधि और महत्व
Janaki Jayanti 2022: जानकी जयंती 23 फरवरी 2022 को मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता है कि माता सीता की पूजा करने से जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है. वहीं, रोग, शोक और संताप से मुक्ति मिलती है.
Janaki Jayanti 2022: माना जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता प्रकट हुई थीं. इसलिए इस दिन को जानकी जयंती (Janaki Jayanti 2022) के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि माता सीता की पूजा करने से जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है. वहीं, रोग, शोक और संताप से मुक्ति मिलती है. वहीं, नेपाल में भी जानकी जयंती के दिन उत्स्व जैसा माहौल रहता है. इस मौके पर देशभर में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते है.
Janaki Jayanti 2022: मुहूर्त
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 23 फरवरी को शाम 04 बजकर 56 मिनट पर.
व्रत रखने का सही समय : 24 फरवरी 2022.
अष्टमी तिथि का समापन- 24 फरवरी को रात 03 बजकर 03 मिनट पर.
Janaki Jayanti 2022: पूजा विधि
इस दिन प्रात:काल उठकर सबसे पहले मर्यादा पुरूषोत्तम राम और माता सीता को प्रणाम करें. इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें. फिर आमचन कर स्वंय को पवित्र करें. अब लाल रंग के कपड़े धारण करें. तंदोपरांत, पूजा गृह में चौकी पर भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर उनकी पूजा भक्तिभाव से करें। माता को श्रृंगार की चीजें अवश्य अर्पित करें। माता सीता की पूजा फल, पुष्प, धूप-दीप, दूर्वा आदि चीजों से करें. अंत में आरती अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें। साधक अपनी इच्छानुसार दिनभर व्रत कर सकते हैं. संध्याकाल में आरती अर्चना के पश्चात फलाहार करें.
Janaki Jayanti 2022: सीता जयंती का महत्त्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सीता अष्टमी का व्रत रहने से विवाह में आने वाली अड़चने दूर हो जाती हैं. जीवन साथी को लंबी आयु प्राप्त होती है. सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है. इसके साथ ही इस व्रत को रखने से समस्त तीर्थों के दर्शन करने जितना फल भी प्राप्त होता है.
Janaki Jayanti 2022: कैसे हुआ माता सीता का जन्म
रामायण के अनुसार, एक समय की बात है जब मिथिला के राजा जनक यज्ञ के लिए खेत को जोत रहे थे. उसी समय एक क्यारी में दरार पड़ गई और उसमें से एक नन्ही बच्ची प्रकट हुईं. उस समय राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, उन्होंने कन्या को गोद में ले लिया. आपको बता दें हल को मैथिली भाषा में सीता कहा जाता है और यह कन्या हल चलाते हुए ही मिलीं, इसीलिए इनका नाम सीता रखा गया.