इस वर्ष जन्माष्टमी का बेहद खास है, क्योंकि इस बार कान्हा का जन्मोत्सव दो दिन तक मनाया जाएगा. ऐसे में कान्हा की पूजा के कुछ खास नियम है, इनका पालन करने वाले व्रतधारियों को व्रत का पूर्ण फल मिलता है. आइए जानते हैं जन्माष्टमी पर हमें क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए.
जन्माष्टमी के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन कुछ व्रतधारी पूरे दिन फलाहार या एक समय भोजन करते हैं. इसलिए व्रत का संकल्प अपनी क्षमता अनुसार ही लें और उसे नियमानुसार पूरा करें.
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को शंख के माध्यम से ही जल या दूध से स्नान कराएं. इस दिन पूजा से पहले सुगंधित फूलों से भगवान कान्हा की झांकी सजाएं. कान्हा को झूले में विराजमान करें. पालने के पास बांसुरी, मोरपंख अवश्य रखें.
श्रीकृष्ण के अभिषेक के बाद उन्हें स्वच्छ कपड़े, आभूषण, मुकुट, पहलनाएं. श्रृंगार करें, काजल जरुर लगाएं, क्योंकि यशोदा मैय्या कान्हा को तैयार करने के बाद उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए काजल लगाती थीं.
रात में 12 बजे खीरा काटकर कान्हा का जन्म कराएं. जन्माष्टमी के दिन खीरे को उसके तने से काटकर अलग किया जाता है. इसे श्री कृष्ण का माता देवकी से अलग होने का प्रतीक माना गया है.
पूजा में बाल गोपाल को माखन, मिश्री, धनिए की पंजीरी, मखाने की खीर, मिठाई का भोग लगाएं. इसके बिना कान्हा की पूजा अधूरी है. भोग में तुलसी दल जरुर डालें, इसके बिना कान्हा भोग स्वीकार नहीं करते है.
जन्माष्टमी व्रत में पूजा के बाद ही व्रत खोलने चाहिए, कुछ लोग रात्रि में ही व्रत पारण कर लेते हैं तो कुछ अगले दिन सूर्योदय के बाद या फिर अष्टमी तिथि के समापन के पश्चात व्रत खोलते हैं. ध्यान रहें आपने जैसा व्रत का संकल्प लिया है उसी के अनुसार व्रत का पारण करें.