Jaya Ekadashi Katha: जया एकदाशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है. पूजन में भगवान विष्णु को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों अर्पित करना चाहिए. जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है. मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार 31 जनवरी 2023 को रात 11 बजकर 53 मिनट पर जया एकादशी तिथि शुरू होगी और इसका समापन 1 फरवरी 2023 को दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार 1 फरवरी को जया एकादशी का व्रज रखा जाएगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर शुरू होगा और दिन भर रहेगा. बता दें कि दक्षिण भारत में जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी नाम से जाना जाता है.
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और वंदना की जाती है. इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए.
2. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए.
3. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए.
4. द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये.
धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर श्रीकृष्ण ने खुद जया एकदाशी व्रत की कथा सुनाई थी
इंद्र की सभा में था उत्सव
इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. देवगण, संत, दिव्य पुरुष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं. उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे.
श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था. दोनों बहुत दुखी थे. एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए.
जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए.