झारखंड : नदियों में घाघ है बूढ़ा नदी, जानें क्या है इसके पीछे का कारण?
पहाड़ी रास्ते पर उछलती-कूदती एक नदी जिसने परष को काटने का सघन अनुभव लेकर एक पुरुष नाम लिया बूढ़ा, जब वो जलप्रपात बनाती है तब हो जाती है बूढ़ा घाघ. जानें क्यों कहा जाता है इसे नदियों में घाघ...
कुशाग्र राजेन्द्र और विनीता परमार
नदी खुद से ही बहती है, धरती के ढाल के सहारे और बिन नक्शे मंजिल पा लेती है. नदी अक्सर पठार की बनावट के अनुरूप छोटे-छोटे भ्रंश के बीच से बहती है, पर कभी-कभी पठार को क्या ऊपर उठती हिमालय तक को सीधे काट कर अपने बहाव को अक्षुण्ण रखती है. पहाड़ी रास्ते पर उछलती-कूदती एक नदी जिसने परष को काटने का सघन अनुभव लेकर एक पुरुष नाम लिया बूढ़ा, जब वो जलप्रपात बनाती है तब हो जाती है बूढ़ा घाघ. सचमुच यह नदी घाघ ही है इसके आने-जाने के रास्ते को चट्टान तक नहीं जान पाते. बूढ़ा नदी की तीव्रता, फुर्तीलापन और चतुराई की दाद उत्तर कोयल नदी भी देती है. कहते हैं अपने सुरीले कंठ सी धार से बहती कोयल नदी जब पलामू के पठार से गुजरने लगी तो पत्थरों को चीरते हुए वो लगभग हाँफने लगी. इन ऊँची पहाड़ियों को देखकर लगभग ठिठक कोयल नदी अपनी धारा बदलने के फ़िराक में ही थी कि तभी उसके पीछे से आती उसकी सहायक नदी ने हौसला बढाया और खुद आगे बढ़कर चट्टान को काटते हुए रास्ता बनाई, जिससे कोयल नदी भी होकर गुजरी. इस साथ ने कोयल नदी को इतनी हिम्मत दी कि पहाड़ों को काटती सीधे समकोण बनाती हुई उत्तर की ओर अपनी मंजिल सोन से मिलने निकल पड़ी. और तत्पश्चात उत्तरी कोयल ने अपनी घाघ सहायक नदी को ‘बूढाघाघ’ का नाम दिया. अपने नाम के अनुसार यह नदी खुद में छोटानागपुर के पाट प्रदेश का ढेर सारा जल छेछारी घाटी में समेटकर उत्तर कोयल नदी में समाहित हो जाती है.
उत्पति से लेकर लगभग आधी दूरी तक का बहाव असल में पाट प्रदेश से उत्तर कोयल नदी के संघर्ष की कहानी है, और फलस्वरूप बने अनेक घाटियों की कहानी है. उन्हीं घाटियों में से एक है छेछारी घाटी. छोटानागपुर पठार का पश्चिमी भाग आम पठार से अलग पाटलैंड के रूप वे व्यस्थित है जिसमें उच्च अनियमित समतल पठार तीखी ढलान वाली घाटियों से एक-दूसरे से अलग-थलग होते हैं, जिसे पाट प्रदेश कहते हैं. पाट प्रदेश की औसत ऊँचाई 1000 मीटर है वहीं घाटियाँ 600-700 मीटर ऊँचाई वाली हैं. पाट प्रदेश में उच्च भूमि कहीं गोलाकार है, जैसे नेतरहाटपाट, तो कहीं दूर तक फैला हुआ समतल है जैसे ओरसापाट, तो कहीं अनियमित रूप से रैखिक रूप में फैला है जैसे पकरीपाट. वहीं तीन प्रमुख घाटियाँ है, छेछारी घाटी, बरवे घाटी और बाहरी बरवे घाटी जिनसे क्रमशः बूढा/बोहता/बरवौ नदी, शंख नदी और उत्तर कोयल नदी बहती है. बूढा नदी का जल संग्रहण क्षेत्र यही छेछारी घाटी है, जो शायद अपने किस्म का एक अनोखा भौगोलिक क्षेत्र है.
पलामू क्षेत्र का दक्षिणी हिस्सा चारों तरफ पहाड़ी से बंद लगभग 14 किलोमीटर व्यास और 150 वर्ग किलोमीटर में फैली एक कटोरेनुमा गोलाकार घाटी है, जो अनायास ही किसी ज्वालामुखी के क्रेटर या उल्कापिंड के धरती से टकराने से बनी विशाल गड्ढे का अहसास कराती है. पर भूगर्भीय अध्ययन पाट पठार का लम्बे समय से नदियों द्वारा अपरदन से इस घाटी के निर्माण की ओर इशारा करती है. जिसका एक सिरा हिमालय के बनने के दौरान बड़े पैमाने पर हुए भूगर्भीय हलचल से निवर्तमान भूमि के ऊपर उठने और उस समय के नदियों के पुनर्जीवन से भी जुड़ता है. नदियों के पुनर्जीवन से बने पूरे छोटानागपुर पठार में यह एक अद्भुत घाटी है. इसमें छेछारी घाटी के पश्चिम में उत्तर से दक्षिण तक फैले जमीरापाट, दक्षिण के अपेक्षाकृत पतले पाट भूमि, पूरब के पकरीपाट व नेतरहाटपाट और उत्तर के बूढा पठार से अनगिनत नदियों का पानी छेछारी घाटी में चारों तरफ से बहकर, घाटी की पूरी लम्बाई में दक्षिण से उत्तर बह रही बोहता नदी में मिलती है. यह घाटी औसतन दक्षिण से उतर दिशा की ढाल लिए हुए औसतन 620-640 मीटर ऊँची समतल प्रदेश है.
एक बड़ी नदी को रास्ता बता खुद ही उसी नदी में समा जानेवाली इस नदी को अपनी उत्पति स्थान की सच्चाई अवगत कराने के पहचान का संकट है. आने-जाने वाले लोग लोध नदी (बूढ़ा नदी की सहायक नदी) के जलप्रपात के रूप में भयंकर गर्जना की आवाज़ वाले स्थान को ही बूढ़ा नदी की उत्पति का स्थान मान लेते हैं. जबकि यह नदी बोहता के नाम से छोटानागपुर की रानी नेतरहाट और वीरपोखर के दक्षिण-पश्चिम भाग से निकलती है. उत्पति स्थान पर बोहता कही जाने वाली बूढ़ा नदी उत्तरी कोयल की एकमात्र दक्षिणगामी सहायक घर्घरी नदी के जलभरण क्षेत्र के पश्चिमी भाग से निकलती है.
बोहता पाट प्रदेश से उतर कर जैसे-जैसे आगे बढती जाती है उसकी बाईं और दाईं तरफ से छोटी-छोटी नदियाँ मिलती जाती हैं और नदी शंख जैसा आकार लेती जाती है. बोहता के बाईं ओर से ओरसापाट से निकलकर रामपुर, बेर, नकटी नदियाँ अनेक छोटी-छोटी पठारी जल स्रोतों का जल लेकर मिलती हैं, तो दाईं तरफ से बहेरा अपनी सहायक घघरी और बरौंधी नदी पकरीपाट और नेतरहाटपाट के अनेक पठारी स्रोतों का जल बोहता में डालती हैं. ऊँचे पाट से निकल कर घाटी में चारो तरफ से आई नदियाँ साइकल के पहिए की स्पोक/तीलियों की तरह बीचो-बीच बहती बोहता नदी में मिलती है. एक गोल पहिए के केंद्र और चारों ओर फैली यह आकृति एक रोमांच पैदा करती है. नदी और छोटी- छोटी नदियों के संगम का यह दृश्य निश्चित ही कुछ क्षण के लिए विस्मित करता है. घाटी के उत्तरी भाग में लोध नदी, जिस पर प्रसिद्ध लोध जलप्रपात है, और सेरे नदी बोहता में क्रमशः बाये और दाहिने से संगम करती हैं और उसके बाद नदी बूढा नदी बन कर सारी नदियों का जल समेट सुग्गा बांध से होकर घाटी से बाहर निकल कर उत्तर में छत्तीसगढ़ के जमीरापाट से बहने वाली टेडू नदी को आत्मसात कर उतरी कोयल नदी में संगम करती है.
छेछारी घाटी और आसपास ऊँची पाट क्षेत्र में औसत सालाना बारिश लगभग 1500 मिलीमीटर होती है जिसका अधिकांश हिस्सा जुलाई-अगस्त में बरस जाता है और नतीजा बारिश के दिनों में अचानक ही सारी नदियाँ उफनकर बीचोबीच बहती बोहता नदी में अभिसारित होती हैं. इस वजह से घाटी का केन्द्रीय भाग बाढ़ प्रभावित रहता है. आबादी के बसावट की दृष्टि से सम्पूर्ण घाटी अंगूठी की भाँति दिखाई देती है जिसके बीच का हिस्सा आबादी मुक्त और घाटी के चारों तरफ ढलान के पास के पाद भूमि पर आबादी नज़र आती है, जहाँ सालो भर झरनों के रूप में पानी उपलब्ध रहता है. पर अब जंगल के कटाव और उनके प्राकृतिक स्वरुप में आये बदलाव से झरने मानसून के बहुत पहले ही सूखने लगे हैं. आज भी बोहता नदी के उद्गम के पास चांपीचुआ पहाड़ जो जलपहाड़ के रूप में प्रसिद्ध है, जिसकी तलहटी से हमेशा पानी रिसता रहता है. यह जल पहाड़ चंपीपाठ गांव के आदिम जनजाति कोरवा परिवारों की प्यास बुझाता है.
ऊँचे पठारों से निकलती-चीरती नदियाँ जो छेछारी घाटी के चारों तरफ कई जलप्रपातों का निर्माण करती हैं. इन नदियों के जल-प्रपात बरसात के दिनों में खूबसूरत दृश्य बनाते हैं. झारखण्ड का गौरव बूढ़ाघाघ या लोध जलप्रपात, एक समय ब्रिटिश ‘लाट साहबों’ के आरामगाह के रूप में प्रसिद्ध था. लोध नदी (बूढ़ा की सहायक नदी) विस्तृत ओरसापाट के छतीसगढ़ वाले हिस्से से निकलकर दोनों राज्यों की सीमा बनाते हुए कुकुदपाट के दक्षिण से छेछारी घाटी की ओर प्रयाण करती है और इसी क्रम में लगभग 468 फीट की ऊँचाई से गिरकर झारखण्ड का सबसे ऊँचा जलप्रपात का निर्माण करती है. जिसकी गर्जना छेछारी घाटी के बीच तक सुनाई पड़ती है. बूढाघाघ के अलावा बूढ़ा नदी पर सुग्गा बाँध जलप्रपात है तो बेर नदी पर सुरकई घाघरी जलप्रपात है.
सुग्गा बाँध छेछारी घाटी का वह हिस्सा है जहाँ से सारी नदियाँ बूढ़ा नदी के साथ बाहर निकलती हैं अर्थात छेछारी घाटी है नदियों का निष्क्रमण स्थल. पहले बूढा नदी बेसिन चारों तरफ से घने जंगल से घिरा था, और महुआ के लंबे और घने वृक्षों की अच्छी खासी उपस्थिति की वजह से यहाँ का मुख्य वाणिज्यिक क़स्बा महुआडांड़ कहलाता हो. आज महुए के बूढ़े पेड़ हमेशा-हमेशा के लिए इस जंगल से विदा हो रहे हैं. दूसरी तरफ इस घने जंगली क्षेत्र की एक नियति है जहाँ झारखण्ड का राजकीय वृक्ष साल खुद-ब-खुद नहीं उग पाता है. साल की प्राकृतिक उत्पति के लिए बीजों को मानसून पूर्व बारिश की आवश्यकता होती है, लेकिन इस क्षेत्र में मानसून पूर्व की बारिश नहीं होती है. आज विभिन्न कारणों से जब जंगल की सघनता कम हो गई तब वन विभाग द्वारा उगाए गए चीर व सरू के पेड़ हैं और दोनों प्रजातियाँ बहुत ही अच्छी तरह इधर की मिट्टी को आत्मसात कर ली हैं.
इतनी सारी नदियों का केंद्र रही बूढ़ा नदी कभी आदिम जनजातियों के प्रारंभिक प्रवास का रास्ता रही है. पलामू जिले पर खारवार जनजाति और गुमला जिले पर मुंडा राजा का वर्चस्व था. मुंडा जनजातियों का छतीसगढ़ जाने तथा एक जत्थे के गुमला आगमन का रास्ता बूढ़ा नदी का ही किनारा रहा है. अपनी खूबसूरती और ठसक के साथ बहती यह नदी उत्तर की ओर बहती कोयल को प्राणवान करती है. बूढ़ा नदी अपने घाघपन से लाखों सालों से विशाल चट्टानों के बीच से बहती रही लेकिन आज मनुष्य के घाघपन के आगे वह टिक पायेगी या नहीं यह समय के गर्त में है. आज के दौर में सचमुच नदियों को भी अपने रास्तों पर घाघ होना पड़ेगा.