बरसात के मौसम में अगर आप भी मटन खाने के शौकीन है लेकिन आपको इसका जायका शाकाहारी व्यंजन में लेना है तो आपके लिए रांची के बाजारों में एक खास प्रोडक्ट आ चुका है. ऐसे तो यह झारखंड के लोगों के लिए कोई नया खाद्य पदार्थ नहीं है लेकिन यहां के लोग इसका बेसर्बी से इंतजार करते है.
मटन वह भी वेज! सुनने में जितना अच्छा लगता है उससे कई ज्यादा बेहतर होता है इसका जायका. दरअसल झारखंड में रुगड़ा इसी रूप में जाना जाता है. झारखंड के जंगल में पायी जाने वाली ये मशरूम की प्रजाति मानसून की बारिश के बाद बाजारों में दिखने लगी है. आइए जानते है इसकी खासियत…
इस झारखंडी मशरूम का टेस्ट बिल्कुल मटन की तरह ही होता है. साथ ही इसमें भरपूर मात्र में प्रोटीन होता है. कैलोरी और फैट की मात्र बहुत ही कम होती है. रुगड़ा दिखने में छोटे-छोटे आलू की तरह होते है. रुगड़ा मशरूम प्रजाति का होता है.
बता दें कि रुगड़ा आम मशरूम के विपरीत जमीन के भीतर पैदा होता है। साथ ही यह किसी भी जगह नहीं होता केवल साल के पेड़ के नीचे ही होता है. बरसात के मौसम में जंगलों में साल के पेड़ के नीचे दरारों में पानी पड़ते ही रुगड़ा पनपना शुरू हो जाता है.
स्थानीय लोग विशेष तौर पर ग्रामीण इसे वहां से चुनकर ले आते है और बाजारों में बेचते है. बता दें कि रांची में रुगड़ा करीब 300 से लेकर 1000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. हालांकि, यह तीन से चार दिनों में ही खराब हो जाता है.
रांची में रुगड़ा का क्रेज है. हालांकि, कई जगहों पर इसे पुट्टू भी कहते हैं. इसकी मांग ज्यादातर बरसात के शुरुआत और मध्य तक राहत है. जैसे-जैसे यह बूढ़ा होता जाता है इसकी कीमत कम होती जाती है.
हालांकि यह तो तय है कि यहां के लोग इस देशी शाकाहारी मटन का इंतजार साल भर करते है तब जाकर एक बार यह मिलता है वह भी बहुत ही कम समय के लिए. कहा जाता है कि कैंसर और अस्थमा जैसे बीमारी के लड़ने में भी यह फायदेमंद साबित होता है.