विनोद पाठक, गढ़वा :
गढ़वा जिला मुख्यालय के बीच शहर में स्थित मां गढ़देवी मंदिर की महिमा न सिर्फ झारखंड, बल्कि आसपास के राज्यों में भी विख्यात है. मां गढ़देवी मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. यहां विराजमान शक्ति स्वरूपा माता को गढ़वा ‘गढ़’ की देवी और यहां आसपास की आबादी की ‘कुलदेवी’ के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन मांगी गयी हर मनोकामना पूरी होती है. यही वजह है कि यहां पूरे साल मां के दर्शन-पूजन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते रहते हैं.
श्रद्धालुओं की इस भीड़ में मन्नत मांगनेवाले और मन्नत पूरी होने पर मां के दर्शन करनेवाले दोनों शामिल होते हैं. वर्ष के दोनों नवरात्र के अलावा इस मंदिर में श्रावण मास में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐसे अवसरों के लिए मंदिर न्यास को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन का सहयोग लेना पड़ता है. शारदीय नवरात्रि के दौरान तो सप्तमी से दशमी के विसर्जन तक रोजाना यहां 50 हजार से ज्यादा भक्त पहुंचते हैं.
Also Read: झारखंड : इस जिले में अलग होती है दुर्गा पूजा की धूम, मां की प्रतिमा को पहनाए जाते हैं असली सोने के आभूषण
ऐतिहासिक गढ़देवी मंदिर में 109 वर्ष पहले मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की शुरुआत की जा रही है. बुजुर्गों की मानें, तो मां गढ़देवी मंदिर में पहली बार वर्ष 1914 में दुर्गा पूजा आयोजित की गयी थी. प्रथम पूजा के बारे में बताया जाता है कि गढ़वा गढ़ के राजा बाबू अमर दयाल सिंह ने पुत्र प्राप्ति की कामना को एक ब्राह्मण से परामर्श मांगा, तो उन्होंने बंगाली पद्धति से मां गढ़देवी मंदिर में दुर्गा पूजा करने की सलाह दी थी. इसके बाद से ही यह परंपरा अनवरत जारी है. दशमी को भक्त मां दुर्गा की प्रतिमा को अपने कंधों पर लेकर विसर्जित करने जाते हैं. उस दौरान मां की प्रतिमा को कंधा देने की होड़ मच जाती है.
वर्ष 1990 के दशक में तत्कालीन बिहार सरकार में मंत्री रहे और वर्तमान में विश्रामपुर विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी के प्रयास से न्यास का गठन किया गया. इसमें रामचंद्र चंद्रवंशी अध्यक्ष हैं, जबकि सीओ इसके पदेन सचिव होते हैं. समाजसेवी विनोद जायसवाल की अध्यक्षता में मंदिर निर्माण समिति का गठन किया गया है. इनकी देखरेख में मंदिर का काफी विस्तार हो चुका है. मां गढ़देवी मंदिर का गुंबद करीब 109 फीट ऊंचा है. मंदिर का एक एलबम भी बनाया गया है, जिसके गीतों में मां गढ़देवी की महिमा का बखान मिलता है.
मां गढ़देवी मंदिर में नवरात्र के दौरान नवमी तिथि को भैंसा को बलि देने की प्रथा थी. यह कई दशकों तक कायम रही. लेकिन मंदिर का ट्रस्ट बनने के बाद वर्ष 2000 से अध्यक्ष रामचंद्र चंद्रवंशी की पहल से भैंसा की बलि बंद कर दी गयी. यद्यपि इसको लेकर उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा था. हालांकि, बकरे की बलि की प्रथा आज भी कायम है.