Jharkhand News: वैज्ञानिकों ने बारिश से लेकर सुनामी और क्लाइमेंट चेंज की संभावना को लेकर अध्ययन किया है. बदलाव को लेकर दावे भी किए. उनके दावे अधिकांश सच भी साबित हुए हैं. लेकिन देश में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी वैज्ञानिक ने भूस्खलन की संभावना को लेकर दावा किया है. वैज्ञानिकों ने टीम ने न केवल दावा किया है,बल्कि 12 स्पॉट भी चिन्हित करते हुए उन्हें दुरूस्त करने की सलाह भी दी है. ऐसा किया है राज्य के एकमात्र आईआईटी, आईआईटी-आईएसएम धनबाद के अप्लाइड जियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ मृणाल कांति मुखर्जी और उनकी टीम ने.
भूस्खलन के इस बेहद दिलचस्प अध्ययन को प्रो डॉ मृणाल कांति मुखर्जी और उनकी टीम ने नेशनल हाइ्रवे ऑथोरिटी के लिए उत्तराखंड में किया है. टीम ने अध्ययन से धरासू उत्तरकाशी खंड के 12 स्थानों पर भूधंसान की भविष्यवाणी की है. विशेषज्ञों ने किया भूस्खलन के संभावित प्वांइट्स को चिह्नित भी किया है. इन 12 में से तीन प्वाइंट्स को रिसर्च टीम ने बेहद खतरनाक श्रेणी में रखा है. जहां उन्होंने जमीन को स्थिर बनाने के लिए उपाय करने का सुझाव भी दिया है. टीम ने अपने अध्ययन के बाद एनएच 108 धरासू उत्तरकाशी खंड में डेंजर प्वाइंट को चिह्नित किया है. इन्हें खतरनाक श्रेणी में रखा है. अध्ययन में इन प्वाइंट्स के पास जमीन और पहाड़ी ढलानों को काफी अस्थिर पाया गया है.
यह अध्ययन संस्थान के डिपार्टमेंट ऑफ अप्लाइड जियोलॉजी के विभागाध्यक्ष व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मृणाल कांति मुखर्जी और इसी विभाग में रिसर्च स्कॉलर अनिल कुमार गुप्ता ने मिलकर किया है. डॉ मृणाल कांति मुखर्जी बताते हैं कि देश में पहली बार किसी भी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित भूस्खलन संभावित जगहों की पहचान के लिए यह अध्ययन किया गया है. इस दौरान रॉक माइक्रोस्ट्रक्चरल पैरामीटर, दरारों की पहचान, भू यांत्रिक तकनीक से ढलानों की स्थिरता का अध्ययन किया गया.
रिसर्च के विषय में प्रो मुखर्जी ने बताया कि इन क्षेत्रों के अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि राजमार्ग के किनारे के स्थान भूस्खलन और सड़क के धंस जाने की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. इन समस्याओं में छोटी ब्लॉक वाले ढलान, शिखर के धंसने, बड़े और उथले चट्टान के फिसलना शामिल है. इनकी वजह से राजमार्ग का निर्माण और रखरखाव चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इस समस्या से निबटने के लिए पहले ही चेतावनी प्रणाली विकसित करने के लिए तकनीक इजाद करना होगा. उनकी टीम अब ऐसे तकनीक को विकसित करने पर रिसर्च कर रही है.
डॉ मृणाल कांति मुखर्जी बताते हैं कि भूस्खलन के लिहाज से यह क्षेत्र काफी खतरनाक है. यहां कुछ मीटर से लेकर 800 मीटर लंबी सड़क भूस्खलन की चेपट में आकर पहले धंस चुकी है. इस सड़क मार्ग के इन चिह्नित प्वाइंट्स के पास ढलान काफी अस्थिर है. क्योंकि इन ढलनों पर ठोस चट्टान नहीं है. वह मिट्टी और पत्थरों का मिश्रण है. इस कारण वह अस्थिर हैं. एनएच 108 पर धरासू – उत्तरकाशी खंड काफी महत्वपूर्ण हैं. यह राजमार्ग यमनोत्तरी के साथ कुम्हलागढ़ को जोड़ता है. राजमार्ग के इस खंड पर मार्च से अगस्त तक बड़ी संख्या में तीर्थ यात्रियों आना जाना होता है. इस दौरान भूस्खलन की घटना से जानों माल के नुकसान की काफी संभावनाएं बनी रहती है.