बगोदर, कुमार गौरव. झारखंड के गिरिडीह जिला स्थित बगोदर के इतिहास में पहली बार झारखंड की संस्कृति से जुड़ी नृत्य पर आधारित राढ़ महोत्सव का आयोजन किया गया. घाघरा के स्कूल मैदान परिसर में अखड़ा पूजा के साथ इस महोत्सव की शुरुआत हुई. अखड़ा जगाने के लिए चोला राम तुरी के नेतृत्व में नटुआ नृत्य पेश किया गया. इस दौरान छऊ नृत्य भी पेश किया गया.
बगोदर जैसे कस्बे में झारखंड की संस्कृति पर आधारित नृत्य की एक मंच पर प्रस्तुति ने ग्रामीणों का मन मोह लिया. राढ़ महोत्सव में धनबाद के बलियापुर से गिरिडीह, हजारीबाग और बोकारो के स्थानीय कलाकारों ने चार चांद लगा दिया. महोत्सव में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार से सम्मानित बिनोद कुमार महतो ‘रसलीन’ की टीम ‘जागो जगाओ सांस्कृतिक कला मंच सिंहपुर कसमार’ ने झूमर व घोड़ा नाच की प्रस्तुति दी.
इतना ही नहीं, आईपीएल फेम प्रभात कुमार महतो, चोगा, ईचागढ़ की टीम ने पाईका नृत्य, अंतराष्ट्रीय नटुआ टीम हरि राम कालिंदी नटुआ ग्रुप, पुरुलिया ने मानभूम शैली नटुआ की प्रस्तुति दी. झारखंड झूमर जगत के जाने-माने कलाकार मिसिर पुनरिआर की टीम ‘दोहाय षष्टी गहदम अखड़ा’ के द्वारा पांता एवं झूमर नृत्य की प्रस्तुति दी गयी.
उस्ताद कार्तिक कर्मकार की अंतराष्ट्रीय छऊ टीम ‘रॉयल छऊ एकेडमी पुरुलिया’ ने छऊ नृत्य पेश किया. ढोलक वादन में नेशनल चैंपियन हेमली कुमारी एंड टीम ने ढोलक बजाकर लोगों का दिल जीता. वहीं. स्थानीय झूमर, नटुआ व पैका की माहिर टीमों ने अपनी कला और हुनर से द राढ़ महोत्सव की रात को रंगीन बना दिया.
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की सभ्यता और संस्कृति को बचाये रखने के लिए घाघरा गांव में इस महोत्सव का आयोजन किया गया. इसे देखने के लिए बगोदर प्रखंड के अलावा गिरिडीह, बोकारो, हजारीबाग, धनबाद समेत अन्य जिलों से लोग आये थे. आधा दर्जन से अधिक टीमों ने राढ़ महोत्सव में प्रस्तुति दी.
राढ़ महोत्सव में आये पूर्व विधायक नागेंद्र महतो, जिला परिषद के उपाध्यक्ष छोटे लाल यादव समेत अन्य गण्यमान्य अतिथियों को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया. पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने कहा है कि हमारी झारखंड की संस्कृति विलुप्त हो रही है. गांव में ऐसे आयोजन से लोग प्रेरित होंगे. कहा कि ‘राढ़’ झारखंड की संस्कृति का एक हिस्सा है. नटुआ और झूमर नृत्य हमें झारखंडी होने का अहसास कराती है.
उन्होंने कहा कि झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गयी. हमने अलग राज्य हासिल भी कर लिया. अब हमें झारखंड की संस्कृति को बचाये रखने के लिए भी पहल करनी होगी. इसके लिए गांव-गांव जाना होगा, अपनी संस्कृति के बारे में लोगों को बताना होगा. हमें अपनी संस्कृति पर गौरव करने की आदत डालनी होगी, तभी हम अपनी संस्कृति को बचाकर रख सकेंगे.