Jharkhand news: 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के गढ़वा जिले के एकमात्र शहीद रामपृत ठाकुर को राज्य सरकार के साथ-साथ गढ़वा जिला प्रशासन ने भुला दिया है. भारत-पाक का यह युद्ध 3 दिसंबर,1971 को शुरू हुआ था और 16 दिसंबर. 1971 को खत्म हुआ था. 13 दिनों तक चले इस युद्ध में गढ़वा जिले के मेराल प्रखंड स्थित खोरीडीह गांव निवासी रामपृत ठाकुर 8 दिसंबर, 1971 को शहीद हुए थे. भारत सरकार ने मरणोपरांत शौर्यचक्र से सम्मानित किया था. लेकिन, सरकार व प्रशासन ने इनके नाम से जिले में एक भी स्मारक व संस्थान नहीं बनाया.
शहीद रामपृत ठाकुर ऑपरेशन कैक्टस लीली का हिस्सा बने थे और इसी अभियान के लिए वे सेना के जवानों को सैनिक जीप (चालक के रूप में) से लेकर बांग्लादेश के ब्राह्मणबरिया की ओर जा रहे थे. जहां उनके ऊपर पाकिस्तानी सैनिकों ने बम से हमला किया, जिससे रामपृत ठाकुर सहित अन्य कई जवानों शहीद हुए थे. रामपृत ठाकुर के पिता अकल राम का निधन शहीद रामपृत के जन्म से पहले ही हो गया था. ऐसे में काफी संघर्ष करते हुए बड़े हुए एवं आर्मी की नौकरी ज्वाइन किये.
साल 1966 से वे आर्मी में सेवा दे रहे थे और 9 दिसंबर, 1971 तक उन्होंने देश की अलग-अलग सीमा पर बहादुरी से देश की सेवा की और फिर अपनी शहादत दी. उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया था. रामपृत ठाकुर का स्मारक बैंगलौर एसी सेंटर, गया बिहार एएसई नार्थ, बूटी मोड़ रांची व श्रीनगर में बनाया गया है, लेकिन गढ़वा जिले में उनके नाम पर एक भी स्मारक या संस्थान नहीं है. प्रशासन उनकी बरसी या अन्य तिथियों को कोई कार्यक्रम का आयोजन कर उन्हें याद तक नहीं करता.
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अपने पिता की शहादत को याद करते हुए उनके बड़े पुत्र सेवानिवृत आर्मी जवान ब्रजमोहन ठाकुर ने बताया कि इस घटना के करीब एक सप्ताह के बाद तार के माध्यम से उनके पिता की शहादत की सूचना उन्हें प्राप्त हुई थी. तब संचार का इतना माध्यम नहीं था. डाकिया उनके घर तार से प्राप्त संदेश लेकर आया हुआ था. तब वो मात्र 8 साल के थे. वो सभी अपने पिता का अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके. उनका शव घर नहीं लाया गया था.
महीने भर बाद गढ़वा रोड स्टेशन (रेहला) में उनके पिता का सारा सामान एक बक्से में कर पार्सल के रूप में भेजा गया था, जिसे वो वहां से छुड़ाकर लाये थे. उन्होंने बताया कि डाकिया से संदेश प्राप्त होने के बाद उनकी मां बेतहाशा रोने लगी थी, लेकिन उनकी मां सनकलिया देवी ने अपने हृदय को कड़ा किया और अपने तीनों पुत्रों का सही तरीके से लालन-पालन किया तथा उनमें से दो को देश की सेवा करने तथा सेना में दुश्मनों से लोहा लेने के लिए प्रोत्साहित कर आर्मी में भेजा. इसके लिए भारत सरकार ने उनकी मां को वीर नारी के खिताब से सम्मानित किया था.
ब्रजमोहन ठाकुर ने बताया कि वो एवं उनके छोटे भाई दोनों ने आर्मी में अपनी सेवा दी है तथा वहीं से सेवानिवृत्त हुए हैं. उन्होंने कहा कि वो आगे की पीढ़ी को भी सेना में भेजना चाहते हैं. 75 वर्षीय सनकलिया देवी आज भी अपने गांव खोरीडीह में एक आम महिला की तरह रहती है और अपने खेती-गृहस्ती का काम करती है.
रिपोर्ट-पीयूष तिवारी, गढवा.