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झारखंड: गिरिडीह के विज्ञान भवन में महान वैज्ञानिक जेसी बोस ने ली थी अंतिम सांस, कई महत्वपूर्ण शोध भी यहीं किये

महान वैज्ञानिक डॉ (सर) जगदीश चंद्र बोस का गिरिडीह से गहरा लगाव था. यहां बरगंडा स्थित विज्ञान भवन में रह कर वह पेड़-पौधों पर शोध किया करते थे. 23 नवंबर 1937 को यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली.

By Prabhat Khabar News Desk | November 23, 2023 12:37 PM

मृणाल कुमार, गिरिडीह : महान वैज्ञानिक डॉ (सर) जगदीश चंद्र बोस का गिरिडीह से गहरा लगाव था. यहां बरगंडा स्थित विज्ञान भवन में रह कर वह पेड़-पौधों पर शोध किया करते थे. 23 नवंबर 1937 को यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली. सर जेसी बोस का जन्म बंगाल प्रेसिडेंसी के मेमनसिंह (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. तब गिरिडीह भी बंगाल प्रेसिडेंसी के अंतर्गत ही था. यहां जगदीश चंद्र बोस के रिश्तेदार रहते थे. गिरिडीह जंगलों और तरह-तरह के पेड़-पौधों से घिरा इलाका था. चूंकि जगदीश चंद्र बोस का अहम शोध पेड़-पौधों पर ही केंद्रित था, इसलिए उनका यहां से खास लगाव था. वह न सिर्फ गिरिडीह लगातार आते रहते थे, बल्कि माना जाता है कि उनके एकांत वैज्ञानिक शोध का बड़ा वक्त यहीं गुजरा था. उनके जीवन के आखिरी वर्ष गिरिडीह में ही गुजरे थे.

रेडियो विज्ञान के जनक

सर जेसी बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को बंगाल के ढाका जिले के फरीदापुर के मेमनसिंह में हुआ था. उनके पिता भगवान चंद्र बासु ब्रह्मो समाज के नेता थे. जेसी बोस को भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था. उन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया. उन्होंने वनस्पति विज्ञान में कई शोध भी किये थे. अमेरिकी पेटेंट हासिल करनेवाले वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे. उन्हें रेडियो विज्ञान का जनक माना जाता है.

रहस्यमय तिजोरी से कब उठेगा पर्दा

गिरिडीह के विज्ञान केंद्र में डॉ बोस की एक तिजोरी रखी हुई है. इसे लेकर चर्चा होती रहती है. वर्ष 1996-97 में तत्कालीन डीसी केके पाठक ने तत्कालीन बिहार सरकार से सर बोस की तिजोरी को खोलने के लिए पहल की थी. लेकिन बिहार सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. आज भी यह तिजोरी रहस्य ही बनी हुई है. पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के गिरिडीह आने का कार्यक्रम भी बना था. कुछ कारणवश वे यहां नहीं आ सके. लोगों का मानना है कि तिजोरी खोले जाने से कुछ चमत्कृत करने वाली बातें सामने आ सकती हैं.

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जिसके हकदार थे, वह सम्मान नहीं मिला

सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक करने के बाद बोस लंदन चले गये और वहीं से विश्वविद्यालय में चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की. 1917 में सर बोस को नाइट की उपाधि प्रदान की गयी तथा राॅयल सोसायटी लंदन के फैलो चुने गये. ऐसी विभूति के मृत्यु स्थल को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. उनके निधन के करीब 86 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक इस स्थल को वह सम्मान नहीं मिला, जिसका वह हकदार है.

1997 में किया गया आवास का अधिग्रहण

यहां झंडा मैदान के पास स्थित जिस मकान में वह रहते थे, उसके बारे में पहले बहुत कम लोगों को पता था. बाद में यह जानकारी सरकार के संज्ञान में आयी, तो गिरिडीह के पूर्व डीसी केके पाठक के कार्यकाल में इसका अधिग्रहण कर लिया गया. इस भवन को जगदीश चंद्र बोस स्मृति विज्ञान भवन का नाम दिया गया. 28 फरवरी 1997 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने इसका उद्घाटन किया था.

पेटेंट नहीं ले पाने के कारण रेडियो के आविष्कारक का दर्जा नहीं मिला

जगदीश चंद्र बोस ने अपने जीवन में फिजिक्स, बायोलॉजी और बॉटनी में कई सफल शोध किये. इटली के वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी को रेडियो का आविष्कारक माना जाता है, पर सर बोस ने उनसे सालों पहले इसकी खोज कर ली थी. उन पर लिखे कई शोधपत्रों से पता चलता है कि मार्कोनी ने 1901 में दुनिया के सामने पहली बार इसका मॉडल पेश किया था, जिससे अटलांटिक महासागर के पार रेडियो संकेत प्राप्त हुए थे. इससे पहले ही सन 1885 में जेसी बोस ने रेडियो तरंगों के बेतार संचार को प्रदर्शित किया था. बस उन्होंने अपने इस आविष्कार का पेटेंट हासिल नहीं किया था और इस कारण से रेडियो का आविष्कारक का दर्जा मार्कोनी को मिल गया. इसके लिए उन्हें 1909 में नोबेल पुरस्कार भी मिला. इसके बाद ही जेसी बोस पेड़-पौधों के अध्ययन में लग गये. उन्होंने दुनिया को बताया कि पेड़-पौधे इंसानों की तरह सांस लेते हैं और दर्द महसूस कर सकते हैं. उनके इस प्रयोग ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान करके रख दिया. उन्होंने पौधों की वृद्धि को मापने के लिए ‘क्रेस्कोग्राफ’ का आविष्कार किया था.

पीसी महालनोबिस व रवींद्रनाथ तक का रहा है गिरिडीह से लगाव

सर जेसी बोस के अलावा भारतीय सांख्यिकी के जनक पीसी महालनोबिस का भी गिरिडीह आना-जाना लगा रहता था. इन्हीं के कारण गिरिडीह में भारतीय सांख्यिकी संस्थान स्थापित हुआ और कई प्रकार के शोध शुरू हुए. इसी प्रकार महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर का भी गिरिडीह से गहरा लगाव रहा है. वे भी यहां के स्वच्छ वातावरण से प्रभावित होकर यहां प्रवास करते थे. बताया जाता है कि यहां रहकर उन्होंने कई रचनाएं कीं.

सर जेसी बोस स्मृति दिवस पर व्याख्यानमाला आज

सर जेसी बोस की पुण्यतिथि के मौके पर 23 नवंबर को देश के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के स्मृति दिवस पर साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने सर जेसी बोस मेमोरियल व्याख्यानमाला का आयोजन किया है. व्याख्यानमाला की यह चौथी कड़ी है. यह कार्यक्रम मकतपुर हाई स्कूल में आयोजित होगा. इस बाबत संस्था के महासचिव सह संपादक वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल, जमशेदपुर डीएनएस आनंद ने बताया कि गिरिडीह स्थित उनके घर में ही उनका निधन हुआ था. बताया कि इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में गिरिडीह कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अली इमाम खां के अलावे कई गण्यमान्य लोग शामिल होंगे.

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