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गंगा के संस्कारों की कड़ी है झारखंड की कोयल नदी, जानें क्या है खासियत?

प्राचीन पर्वतों और आधुनिक स्थलाकृतियों का मिलान करने पर विंध्य पर्वत का पूर्वी भाग ऋक्ष पर्वत जो झारखण्ड के प्राचीन पठार से मिलता है. झारखण्ड प्रकृति की गोद में अपनी छोटी-छोटी नदियों, जलप्रपातों, गर्म जलधाराओं के साथ कोयला और खनिजों से समृद्ध है.

कुशाग्र राजेंद्र और विनीता परमार

‘महेन्द्रो मलयः सह्मः शुक्तिमानृक्षपर्वतः विंध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः’.

विष्णुपुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार भारत के सात ‘कुलपर्वत’ श्रेणियाँ हैं महेंद्र, मलय, सह्ह्य, शक्तिमान, ऋक्ष, निन्घ्य और पारियात्र. ऋक्ष पर्वत, विंध्य मेखला का पूर्वी भाग, जो बंगाल की खाड़ी से लेकर सोन नदी के उद्गम तक फैला हुआ है. इस पर्वत श्रृंखला में शोण नद के दक्षिण छोटानागपुर तथा गोंडवाना की भी पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं. प्राचीन पर्वतों और आधुनिक स्थलाकृतियों का मिलान करने पर विंध्य पर्वत का पूर्वी भाग ऋक्ष पर्वत जो झारखण्ड के प्राचीन पठार से मिलता है. झारखण्ड प्रकृति की गोद में अपनी छोटी-छोटी नदियों, जलप्रपातों, गर्म जलधाराओं के साथ कोयला और खनिजों से समृद्ध है.

उन्हीं नदियों में से एक ऐसी नदी जिसका नाम सुनते ही उत्तर दिशा से कोयल की मीठी बोली सुनाई देती है. ऊपर जाती कोयल नदी झारखण्ड की सबसे लंबी उत्तरगामिनी नदी है. कोयल नदी की इस कल-कल धार में घुलती कोयल की बोली मूलत: कोयल पक्षी की वजह से नहीं है. नदी के कछार में आदिम संस्कृति के वाहक कोल जनजाति के लोग रहते थे, जिससे उत्तर में बहने वाली यह कोल फिर कोइल और प्रकांतर में कोयल कहलाई. महाभारत, रामायण और पुराणों में वर्णित प्रोटो ऑस्ट्रियाड कोल जनजाति को 2003 में झारखण्ड की 32वीं अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला.

उत्तर कोयल मुख्य रूप से लातेहार और पलामू जिले की नदी है और इसका उद्गम स्थान गुमला जिले के पाट प्रदेश के दक्षिणी भाग के चैनपुर अंचल के एक निविड़ वन-प्रदेश कोचापानी और बाड़ाडीह के जंगल के बीच में है. दक्षिणी पाट प्रदेश के समतल भूमि का विस्तार अन्दर यानी पश्चिम की ओर काफी चौड़ी और विस्तृत है. वहीं बाहर यानी पूरबी भाग अपेक्षाकृत संकीर्ण है जिसे स्थानीय लोग क्रमशः ‘भीतरी बरवे’ और ‘बाहरी बरवे’ कहते है. ये विभाजन भौगोलिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. भीतरी बरवे से शंख नदी दक्षिणाभिमुख होकर बहती है वही बाहरी बरवे में नेतरहाट तक घाटी अपेक्षाकृत कम चौड़ी और संकीर्ण है जिससे उत्तराभिमुख होकर उत्तरी कोयल नदी बहती है. कोयल की एक और धारा कुटुआ से अपने साथ कई छोटी-छोटी नदियों का पानी लेकर ओरमार जंगल के उत्तर में मुख्य धारा से मिलती है.

उत्तरी कोयल नदी उद्गम से सोन नदी में मिलने तक गुमला, लातेहार और पलामू जिले से बहती हुई 260 किलोमीटर की दूरी तय करती है. जिसके आखिरी कुछ किलोमीटर छोड़कर सारा प्रवाह चट्टानी है और अपनी लगभग संपूर्ण जलधारा में नाव नहीं चलने के मलाल में यह नदी बहती जा रही है. मुख्य रूप से पठार के बीच से गुजरती है. इसकी पेटी पलामू और लातेहार जिले में काफी गहरी है. यहाँ उत्तर कोयल विशाल चट्टानों से टकराती आगे बढ़ती है. नदी के पूरे प्रवाह पथ को मुख्य रूप से तीन प्रभाग हैं. पहला भाग उद्गम से नेतरहाट की पूर्वी तलहटी में बसे रुड तक का जिसमें नदी बाहरी बरवे लगभग सपाट भू-भाग से बिना किसी चट्टानी बाधा के गुजरती है. दूसरे भाग में नदी रुड के आगे पठारी दर्रो से होकर उत्तर जाकर फिर अचानक से पश्चिम की ओर मुड़कर कुटकु तक जाती है, जहाँ से एक गोर्ज से होकर सीधे उत्तर की तरफ मुड़ जाती है. यह भाग काफी बीहड़ और सघन वन से घिरा है और नदी पूरब-पश्चिम दिशा से पटे पठारों के विन्यास से होकर गुजरती है. तीसरा और अंतिम भाग कुटकु दर्रे से आगे नदी के सोन में मिल जाने तक का है. यह भाग नदी का एकमात्र क्षेत्र है जहाँ खेती-बाड़ी होती है और इसकी दो प्रमुख सहायक नदिया औरंग और अमानत मुख्य नदी में संगम करती हैं.

उत्तर कोयल नदी प्रायः समस्त लातेहार और पलामू जिले के पर्वतीय और जंगली स्रोतों तथा कई छोटी-बड़ी नदियों को उदरस्थ करती है. अपने उद्गम नेतरहाट के पूर्वी भाग तक के बाहरी बरवे के समतल क्षेत्र से होकर अपने बहाव को छोड़कर बाकी का सम्पूर्ण रास्ता उत्तरी कोयल पठार को चीरती, पहाड़ को काटती, चट्टानों से टकराती, दर्रो के बीच से अपना रास्ता बनाती, आड़ी-तिरछी मुड़ती, ऊँचाई से गिरती संभालती सोन नदी से जा मिलती है, और इस उपक्रम में अनेक रमणीय, बीहड़ और रोमांचक घाटियों का निर्माण करती है. अपनी धारा के गर्भ में कठोर चट्टानों की उपस्थिति की वजह से ही बरसात में जब-जब चट्टानों से टकराती है नदी की धार पर लगी चोट भयंकर गर्जना करती है, और उस चोट से बेपरवाह नदी साँप सी सरपट भागती है.

उत्तरी कोयल नदी की धारा कई मायने में बाकी अन्य नदियों से भिन्न है. खासकर इसके बहाव की दिशा, उत्तरी कोयल का अपवाह तंत्र जो की उत्तर दिशा में है, जो छोटानागपुर पठार के दो दक्षिणगामिनी प्रमुख नदियाँ शंख और दक्षिणी कोयल के ठीक बीच से बह निकलती है. जहाँ पश्चिम में पाट प्रदेश की शंख नदी, छेछरी घाटी के दक्षिणी ढलान से उत्तरी कोयल के उद्गम को लगभग छूती हुई बहती है, वही पाट प्रदेश के पूर्वी ढलान, बांगुर पहाड़ से नीचे दक्षिण तक से दक्षिणी कोयल नदी राँची पठार से ओड़िसा की ओर निकल जाती है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे उत्तरी कोयल तलवार की धार पर बहती दक्षिणाभिमुख शंख और दक्षिणी कोयल नदियों के प्रवाहतंत्र के बीच से उत्तर की ओर बहती है.

जानकारी हो कि छोटानागपुर पठार, हिमालयी और प्रायद्वीपीय भारत के बीच सेतु की तरह है और इस सेतु बंध में उत्तरी कोयल एक महत्वपूर्ण कड़ी है. जहाँ शंख और दक्षिणी कोयल नदी पाट प्रदेश और राँची पठार का पानी महानदी बेसिन से जोड़ती है, वही उत्तरी कोयल दोनों शंख और दक्षिणी कोयल के अपवाह तंत्र के बीच से पाटप्रदेश के दक्षिण और पूरब का बचा-खुचा पानी सोन नदी के माध्यम से हिमालयी गंगा बेसिन में उड़ेलती है. नदियों के जल विभाजन का ऐसा गुत्थम-गुत्था तंत्र बिरले ही कहीं मिले, जो पाट प्रदेश के नदी तंत्र को अनोखा बनाती है. यह नदियों का सिर्फ़ बहना नहीं उसके किनारे बसे लोगों की सभ्यता, संस्कृति और भाषा का संवहन है, या यूँ कह लें प्रायद्वीपीय भारत और हिमलायी संस्कृतियों का सम्मिलन है. अगर छतीसगढ़, झारखण्ड, मध्य-प्रदेश, बिहार, पूर्वांचल के जन्म-मृत्यु, विवाह, लोक-कथा, लोक-नृत्य को सूक्ष्मता से देखी जाए तो थोड़े-थोड़े बदलाव के साथ एक-दूसरे की तरह ही है.

उत्तरी कोयल के नदी तंत्र के अनोखेपन के कई कारणों में एक कारण मुख्य नदी सहित सहायक नदियों की बहाव दिशा, सारी की सारी पूर्ण या आंशिक रूप उत्तराभिमुख होना है, पर एक मुख्य सहायक नदी ऐसी भी है जो उत्तराभिमुख कोयल के सीधे उलट दक्षिण की तरफ बहकर कोयल में मिलती है, घर्घरी नदी. यह नदी उत्तरी कोयल की सबसे पहली मुख्य सहायक नदी है जो नेतरहाट के पठार के दक्षिण भाग बीरपोखर से सीधे दक्षिण, शंख नदी के समान्तर दक्षिण दिशा में बहती हुई कोयल मे समाहित होती है.

उत्तरी कोयल नदी के अपवाह तंत्र में दाहिने भाग में मिलने वाली सहायक नदियों का बोलबाला, बायें भाग में मिलने वाली सहायक नदियों के मुकाबले में ज्यादा है. उद्गम से नेतरहाट की तलहटी तक नदी बायें भाग में, घर्घरी नदी को छोड़कर मुख्य रूप से पानी के छोटे-छोटे जंगली स्रोत ही नदी में मिलते हैं, क्योंकि नदी के बायें भाग में ‘बाहरी बरवे’ के समान्तर बीरपोखर और नेतरहाट का पठार है, जहाँ से छोटे-छोटे पानी के अनेक स्रोत पूर्व की ओर ढलकर उत्तरी कोयल में तुरंत ही मिल जाती है, वही ऊपर बीरपोखर के संकीर्ण पठार के बहाव को घर्घरी नदी रास्ता देती है, जबकि नेतरहाट के पूरब और उतर ढलने वाली तमाम जलराशी कोयल में मिलती है. जबकि नदी के दाहिने तरह पाट का विस्तृत प्रदेश है, जहाँ से अनेक पानी के स्रोत किसी न किसी नदी के सहारे उत्तरी कोयल में मिलती है.

‘बाहरी बरवे’ के सम्पूर्ण प्रवाह में उत्तरी कोयल के दाहिने तरफ से मिलने वाली सहायक नदियों के एक बड़ी श्रृंखला है, जो कोयल घाटी के पूर्व में पाट प्रदेश के दक्षिणी कोयल नदी के जल विभाजक रेखा तक से पानी के प्रवाह को पश्चिम में कोयल नदी की ओर मोड़ लाती है. सबसे पहले ओरमारा के वन के ऊपर उत्तरी कोयल की दूसरी धारा मिलती है, जिसे अक्सर कोयल नदी की मूल धारा मान लिया जाता है, जो कुटवा से निकलती है. अब नदी वन्य प्रदेश से निकलकर अपेक्षाकृत गोलाकार समतल प्रदेश में आती है, जहाँ दाहिने भाग में नेतरहाट के दक्षिणी भाग से बिरपोखर पहाड़ से उतरती उपरोक्त घर्घरी नदी आकर कोयल से मिलती है. नदी अब अपनी अवस्था बदलती है और आगे उत्तर की तरफ बहते हुए कोयल पहाड़ी के साथ मिलकर एक दर्रा बनाती है, और चोतम नामक जगह पर नदी पहुँचती है वहाँ उससे मिलने के लिए बाईं ओर से जोरी नदी बाँह फैलाये खड़ी रहती है. नदियों का यह बहनापा एक-दूसरे के उफान से मिल जाती हैं. बरसात के दिनों की खुशी नदियाँ मिलकर प्रकट करती हैं, चट्टानों से टकराती है, गरजती है. कटते जंगल, टूटते पहाड़ और भरते पाट बरसात को कम करने के साथ नदियों की आवाज़ भी अब थोड़ी कम हो गई है. फिर सलमी पहाड़ के घने जंगल से गुजरती कोयल अपने दाहिने भाग में एक सुन्दर नामवाली नदी फूलझर से आकर मिलती है. यह छोटी नदी कुटुवन, सरगाँव तथा चन्द्रगो के वनों से गुजरते हुए आकर कोयल से मिलती है. जोरी और फुलझर नदी पाट प्रदेश के आखिरी पहाड़ी से जल की धार को गंगा बेसिन तक मोड़ लाती है. इसके बाद उत्तर कोयल में एक छोटी नदी सेरका मिलती है. यहाँ विशुनपुर तीन दिशाओं में बहनेवाले जलस्रोतों क्रमशः फुलझर (दक्षिण), उत्तरी कोयल (पश्चिम) और सेरका (उत्तर) से घिरा हुआ पाता है.एक छोटे क्षेत्र का तीन तरफ से तीन अलग-अलग नदियों द्वारा भौगोलिक रूप से घिरा होना, मैदानी इलाको के लिए तो आम बात है पर पठारी प्रदेश के लिए एक विलक्षण संयोग है. सेरका नदी का स्रोत विशुनपुर के पूर्व दिशा से निकलता है और सेरका जलप्रपात बनता है.

बाहरी बरवे के समतल भू-भाग में बहती नदी झारखण्ड के सबसे रमणिक स्थलों में एक नेतरहाट पहुँचती है. जंगलों और पहाड़ों के बीच में नेतरहाट की सुन्दरता अपने दुर्गम पहाड़ों और कठिन रास्ते की वजह से थोड़ी बची हुई है. नेतरहाट के आस-पास की खूबसूरती पहाड़ों से गिरती पानी की धार पत्थरों को चोट मारती और चोट खाती प्रकृति का संगीत उत्पन्न करती है. आगे बाहरी बरवे प्रदेश में कोई बड़ी नदी कोयल में नहीं मिलती बल्कि नदी के दोनों तरफ छोटे-छोटे बरसाती नाले से मिलती है. जिसमें तीसी नाला प्रमुख है जो बाहरी बरवे की उत्तरी सीमा के आसपास के बायीं जल स्रोतों का नदी में संगम कराती है. अपनी यात्रा के प्रथम चरण लगभग एक-तिहाई दूरी को पूर्ण करते हुए उत्तर कोयल नदी यौवनावस्था में पहुँच अपनी नियति चट्टानों और पहाड़ों के बीच से गुजरती हुई पाती है. अगली यात्रा में पहाड़ों से गिरती अन्य नदियों से मिलती है या खुद पहाड़ों की ऊँचाईं से पत्थरों को चीर आगे बहती है. भले ही इन चट्टानों पर फिसलन पैदा करनेवाली काई जम जाए लेकिन यह नदी अपने पारदर्शी जल से एकबारगी रोक लेती है. मनमोहक और चुंबकीय नदी की अगली यात्रा निश्चय ही प्रकृति के साथ की यात्रा होगी.

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