Indian Railways News, Jharkhand News: रांची : भारत और चीन के सीमा विवाद के बीच ड्रैगन को ‘चुनौती’ देने के लिए झारखंड के श्रमिक बॉर्डर पर जाने वाले हैं. पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने जब झारखंड के मुख्यमंत्री से लॉकडाउन पर चर्चा की, उसी दौरान उन्होंने हेमंत सोरेन से श्रमिकों को सीमा पर भेजने के बारे में भी बात की. बताया जा रहा है कि प्रदेश से जो लोग सीमा पर भेजे जायेंगे, उनमें अधिकतर दुमका जिला से ही हैं.
गृह मंत्री अमित शाह ने 22 मई को भारतीय रेलवे को इस संबंध में चिट्ठी भी लिख दी. हालांकि, झारखंड के श्रम मंत्री के हवाले से यह खबर चली थी कि प्रदेश के श्रमिकों को सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का काम करने के लिए नहीं भेजा जायेगा, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसका खंडन किया है. उन्होंने कहा है कि इस संबंध में अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है.
बहरहाल, रिपोर्ट है कि दारबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ), रोहतांग टनल और मनाली एवं जंस्कार घाटी को लेह से जोड़ने वाली सामरिक महत्व की एक और सड़क के निर्माण की जिम्मेदारी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) को सौंपी है. यह सड़क लद्दाख सेक्टर में बननी है.
रक्षा मंत्रालय ने चाहता है कि जल्द से जल्द 11,815 श्रमिकों को सड़क निर्माण के क्षेत्र में पहुंचा दिया जाये. इसलिए गृह मंत्रालय ने भारतीय रेलवे से आग्रह किया है कि वह श्रमिकों को चीन की सीमा से सटे निर्माण स्थलों (जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश) पर पहुंचाने के लिए 11 स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था करे, ताकि निर्माण कार्य में तेजी आये.
चीन की सीमा से सटे इलाकों में भारत सरकार ने सड़कों का जाल बिछाने का फैसला किया है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बीआरओ को सामरिक महत्व की 61 सड़कों का निर्माण करने के लिए बीआरओ को कहा गया है. इसके तहत भारतीय सीमा में 3,409 किलोमीटर लंबी सड़क बननी है. इनमें से 981.17 किलोमीटर लंबी 28 सड़कों का निर्माण वर्ष 2018 में ही पूरा हो चुका है. शेष 27 सड़कों को एक-दूसरे से जोड़ा जा चुका है.
इस वक्त बीआरओ पूर्वोत्तर की बेहद अहम परियोजनाओं पर काम कर रहा है. खासकर सेला टनल पर. यह टनल ब्रह्मपुत्र नद में भारतीय रेल की मदद से बीआरओ बनायेगा, जो असम और अरुणाचल को जोड़ेगा. इस टनल का निर्माण पूरा हो जाने के बाद असम के गुवाहाटी और अरुणाचल प्रदेश के तवांग के बीच सालों भर लगातार संपर्क बना रहेगा. इसे ऑल वेदर टनल कहा जा रहा है.
ज्ञात हो कि पिछले दिनों भारत की सीमा में तीन किलोमीटर अंदर तक घुस आयी चीन की सेना लद्दाख के गालवां क्षेत्र में भारत सरकार की ओर से बनायी जा रही 255 किलोमीटर लंबी दारबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी रोड से सकते में आ गयी है. यह सड़क देश के आखिरी सैनिक पोस्ट काराकोरम पास तक जाती है. यह सड़क अक्साई चिन के करीब है और चीन को डर है कि इस सड़क की मदद से भारतीय सेना ल्हासा-काशगर हाइवे के जरिये उसे चुनौती दे सकती है.
भारतीय सेना 17 हजार फुट की ऊंचाई पर इस सड़क का निर्माण पूरा होने के बाद महज 6 घंटे में लेह से दौलत बेग ओल्डी तक पहुंच जायेगी. इस वक्त सेना को यहां पहुंचने में दो दिन का वक्त लग जाता है. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि इतनी ऊंचाई पर कुछ ही दिनों तक काम हो पाता है. लद्दाख के इस दुर्गम क्षेत्र में मई से नवंबर तक ही काम हो पाता है. सामरिक महत्व के इस क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका बेहद अहम होती है.
भारत सरकार ने यह कदम ऐसे वक्त में उठाया है, जब भारतीय और चीनी सैनिक लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने आ गये. चीन ने लद्दाख सेक्टर में विवादित सीमा के पास 5,000 सैनिकों और तोपों की तैनाती की है. लद्दाख प्रशासन ने 15 मई को बीआरओ को लिखा था कि उसे आगे के क्षेत्रों में काम के लिए शामिल किये जा रहे श्रम बल से कोई आपत्ति नहीं है.
इसमें कहा गया है कि 14 दिन तक लद्दाख पहुंचने के बाद मजदूरों को छोड़ दिया जायेगा और निर्माण कार्य के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का सख्ती से पालन किया जायेगा. प्रवासी श्रमिक बीआरओ के कार्यबल का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में सामरिक महत्व की सड़कों के निर्माण में शामिल हैं.
इस विषय में पूरी जानकारी के लिए prabhatkhabar.com ने श्रम एवं प्रशिक्षण विभाग के मंत्री सत्यानंद भोक्ता एवं श्रम सचिव राजीव अरुण एक्का से बात करने के लिए उन्हें फोन किया, लेकिन किसी ने इसका जवाब देना उचित नहीं समझा.
Posted By : Mithilesh Jha