गोड्डा लोकसभा सीट: भाजपा की धुरी निशिकांत दुबे, कांग्रेस में कई दावेदार
निशिकांत ने अपने विकास कार्यों, तेवर और मुद्दों से यहां विरोधियों को उलझा कर रखा है. विरोधी खेमा में वही दावेदार माना जाता है, जो सांसद निशिकांत के समीकरण को भेद सके.
आनंद मोहन, रांची :
झारखंड की राजनीति की तपिश बढ़ानेवाली संसदीय सीट है, गोड्डा. राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले धुरंधर इस सीट में भिड़ते रहे हैं. गोड्डा संसदीय सीट और भाजपा की धुरी सांसद निशिकांत दुबे हैं. झारखंड से लेकर दिल्ली तक विपक्ष पर गरजने-बरसनेवाले सांसद ने अपनी आक्रामक छवि बनायी है. विकास कार्यों को लेकर भी उनकी अलग पहचान बनी है. वह भाजपा का मजबूत चेहरा बनकर उभरे हैं. तीन बार गोड्डा लोकसभा चुनाव जीत कर उन्होंने अपनी धाक जमायी है.
वर्ष 2009 से निशिकांत लगातार सांसद चुने जा रहे हैं. एनडीए खेमा में राजनीति इनके इर्द-गिर्द घुमती है. इस फोल्डर से कोई दूसरा चेहरा गोड्डा संसदीय सीट पर विरोधियों को टक्कर देनेवाला सामने नहीं है. निशिकांत ने अपने विकास कार्यों, तेवर और मुद्दों से यहां विरोधियों को उलझा कर रखा है. विरोधी खेमा में वही दावेदार माना जाता है, जो सांसद निशिकांत के समीकरण को भेद सके.
इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते रही है. पहले फुरकान अंसारी इस सीट पर प्रबल दावेदार हुआ करते थे, लेकिन पिछले चुनाव में प्रदीप यादव ने झाविमो में रहते हुए इस सीट को कांग्रेस के पॉकेट से निकाल कर निशिकांत के सामने अपने को खड़ा किया. यहां से प्रदीप एकबार भाजपा की टिकट से वर्ष 2002 का उपचुनाव जरूर जीत चुके हैं. इसके बाद इनको इस सीट से जीत हाथ नहीं लगी.
इधर कांग्रेस में शामिल होने के बाद प्रदीप की चुनौतियां और बढ़ गयी हैं. प्रदीप यादव के सामने अब उनकी ही पार्टी की महगामा से विधायक दीपिका पांडेय सिंह दावेदार बन कर उभरी हैं. इस सीट को लेकर दीपिका पांडेय ने अपनी सक्रियता बढ़ायी है. गोड्डा का समीकरण अपने पक्ष में करने में जुटी हैं. प्रदीप को चुनाव में निशिकांत से जूझने से पहले संभवत: पार्टी के अंदर ही ताकत दिखानी होगी.
पार्टी के गलियारे में दीपिका पांडेय की दलील है कि वह भाजपा के वोट बैंक में भी सेंधमारी कर पायेंगी. दीपिका और प्रदीप दोनों की ही केंद्रीय नेतृत्व में अच्छी पैठ है. आने वाले दिनों में कांग्रेस के सामने भी मुश्किल होगी, दोनों में किसको टिकट थमाया जाये. पार्टी ने फिलहाल गोड्डा के विवाद को शांत रखने के लिए रास्ता भी निकाला है. प्रदीप और दीपिका में से किसी को गोड्डा लोकसभा का प्रभारी नहीं बनाया गया है.
उधर गोड्डा से सांसद रहे फुरकान अंसारी टिकट के जुगाड़ में हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट झाविमो को देकर फुरकान को ही घाव दिया था. अब फुरकान हिसाब बराबर करना चाहते हैं. गोड्डा में अल्पसंख्यक और इंडिया गठबंधन के परंपरागत वोट के सहारे वह चुनाव लड़ना चाहते हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कृष्णानंद झा भी टिकट के लिए अपना दांव चलते रहते हैं. लेकिन वह हमेशा टिकट की रेस में बाहर होते रहे हैं. कुल मिलाकर एनडीए की तस्वीर साफ है, लेकिन इंडिया गठबंधन की राजनीति में शह-मात का खेल बाकी है.
चार पर इंडिया गठबंधन, दो पर भाजपा का कब्जा :
गोड्डा संसदीय सीट में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इसमें चार पर पूर्व की यूपीए और वर्तमान में इंडिया गठबंधन के दलों का कब्जा है. जरमुंडी से कांग्रेस, मधुपुर से झामुमो, पोडैयाहाट से कांग्रेस और महगामा से कांग्रेस के विधायक हैं. वहीं देवघर और गोड्डा सीट पर भाजपा ने कब्जा किया था.
फ्लैश बैक
2009
निशिकांत दुबे, भाजपा 189526
फुरकान अंसारी, कांग्रेस 183119
निशिकांत दुबे, भाजपा 380500
फुरकान अंसारी, कांग्रेस 319818
निशिकांत दुबे, भाजपा 637610
प्रदीप यादव, झाविमो 453383