आनंद मोहन, रांची :
धनबाद संसदीय सीट भाजपा का मजबूत गढ़ है. एक ऐसा अभेद किला, जिससे बहुत हांफने के बाद भी विरोधी ध्वस्त नहीं कर पाते हैं. रामजन्म भूमि के ज्वार के साथ धनबाद में भाजपा ने ऐसी पैठ बनायी कि इस क्षेत्र में कम्युनिस्ट के धाकड़ नेता स्व एके राय के सहारे संसद तक पहुंचा लाल झंडा भी उखड़ गया. 1984 के बाद जमीन से कांग्रेस ऐसे बेदखल हुई कि 20 वर्ष बाद 2004 (एक बार ही) में जीत पायी. मतलब साफ है कि धनबाद में जिसके हाथ कमल चुनाव चिह्न लगा, उसका दिल्ली पहुंचना तय माना जाता है.
वर्तमान सांसद पीएन सिंह लगातार तीसरी बार सांसद बने, तो उनसे पहले प्रो रीता वर्मा लगातार चार बार सांसद रहीं. वर्तमान सांसद पीएन सिंह के रास्ते इस बार विरोधी नहीं, बल्कि उनकी उम्र ही रोड़ा ना बन जाये. भाजपा के अंदर इसको लेकर चर्चा गरम है कि केंद्रीय नेतृत्व ने 75 वर्ष के उम्र की सीमा की जो लकीर खींची हैं, वह वर्तमान सांसद के संसदीय भविष्य का चैप्टर क्लोज न कर दे. इधर पीएन सिंह के टिकट के हां-ना के बीच भाजपा में कई दावेदारों हो गये हैं. कइयों को अपने-अपने समीकरण पर भरोसा है. धनबाद में जातीय समीकरण से लेकर बाहरी-भीतरी का फॉर्मूला है.
धनबाद से टिकट की दौड़ में चतरा संसदीय सीट से दो बार सांसद रहे सुनील सिंह भी हैं. कई विधायक भी दौड़ में हैं. वहीं पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल भी मजबूत दावेदार बन कर सामने आये हैं. धनबाद के विधायक राज सिन्हा टिकट के लिए धनबाद से लेकर दिल्ली तक गोटी चल रहे हैं. वह पूरे धनबाद संसदीय क्षेत्र में एक-दो वर्षों से घूम-टहल भी रहे हैं.
बोकारो के विधायक बिरंची नारायण के नाम की भी चर्चा धनबाद की राजनीति में हैं. विधायक ढुलू महतो गिरिडीह और धनबाद के बीच डोल रहे हैं. हालांकि ढुलू महतो की पहली प्राथमिकता गिरिडीह है. उधर चंदनकियारी से विधायक अमर बाउरी का अपना समीकरण है. पार्टी के कुछ नेता इनके साथ भी हैं, लेकिन धनबाद की राजनीति और जातीय समीकरण में टिकट हासिल करना आसान खेल नहीं है. पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल धनबाद की राजनीति के एक कोण रहे हैं.
मेयर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन उनका मजबूत आधार माना जा रहा है. पर पार्टी के अंदर के लोग ही इनका रास्ता काटने में लगे हैं. विधायक राज सिन्हा से उनकी तनातनी किसी से छिपी नहीं है. भाजपा नेत्री और पूर्व विधायक संजीव सिंह सिंह की पत्नी रागिनी सिंह (सिंह मेंशन) भी संसदीय चुनाव में भाग्य आजमाना चाहतीं हैं. धनबाद संसदीय चुनाव में कोल इंडिया के पूर्व चेयरमैन गोपाल सिंह भी अपनी दावेदारी प्रदेश के आला नेताओं के सामने समय-समय पर पेश कर रहे हैं. वह क्षेत्र में सक्रिय भी हैं.
धनबाद की राजनीति में रह-रह कर सरयू राय का नाम उछलता रहता है. हालांकि श्री राय खुद धनबाद से चुनाव लड़ने की बात को खारिज करते हैं, वहीं भाजपा के लोगों का कहना है कि उनकी घर वापसी आसान नहीं है. सरयू राय को भाजपा में शामिल होने से पहले कई बड़े नेताओं का विरोध झेलना होगा और शायद आलाकमान इसके लिए तैयार ना हो. वैसे हाल के दिनों में भाजपा के नेताओं से उनकी नजदीकी बढ़ी है.
उधर भाजपा के इस मजबूत गढ़ में यूपीए को दमदार उम्मीदवार की तलाश होगी. पिछले चुनाव में पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद पीएन सिंह से करीब पांच लाख वोटों से हारे थे. ऐसे में यूपीए गठबंधन के लिए यह सीट बड़ी चुनौती है. इस सीट से पूर्व सांसद ददई दुबे के बेटे अजय दुबे मजबूत उम्मीदवार माने जाते हैं. वह प्रभारी अविनाश पांडेय के करीबी भी हैं. वहीं झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने विधानसभा सीट जीत कर भाजपा को चुनौती खड़ा की थी. पूर्णिमा नीरज सिंह ऐसे में यूपीए की स्वाभाविक दावेदार हो सकतीं हैं. प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और जिला परिषद सदस्य रहे अशोक सिंह भी चुनावी दौड़ में शामिल माने जा रहे हैं.