Jharkhand News (पीयूष तिवारी, गढ़वा) : सरकारी बाबूओं की वजह से कैसे करोड़ों-अरबों की योजनाएं मझधार में फंस जाती है. इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश के अमवार में बन रहे डैम को देखा जा सकता है. गलती गढ़वा के भू-अर्जन विभाग की है और इसका खामियाजा यूपी सरकार भुगत रही है.
झारखंड सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के अमवार में कनहर नदी पर बन रहे डैम (लागत करीब 2400 करोड़) का काम लगभग पूरा किया जा चुका है. सिर्फ गेट लगाने का काम शेष रह गया है. लेकिन, भू- अर्जन कार्यालय, गढ़वा के पदाधिकारियों एवं बाबूओं की लापरवाही की वजह से गेट नहीं लगाया जा रहा है. चूंकि सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से गढ़वा जिले के धुरकी प्रखंड के 4 गांव भी इस डैम के डूब क्षेत्र में आये हैं.
डूब क्षेत्र के अंदर आनेवाले सभी ग्रामीणों को ना सिर्फ मुआवजा देना है, बल्कि उनका पुनर्वास कर दूसरे स्थान पर घर- जमीन देकर पूरी व्यवस्था के साथ बसाना भी है. इसके लिए यूपी सरकार ने प्रथम चरण में 70 करोड़ रुपये भी गढ़वा जिला प्रशासन को उपलब्ध करा दिया है.
बताया गया कि धुरकी प्रखंड के 4 गांव के अलावे झारखंड के वन क्षेत्र की कुल 799 एकड़ जमीन भी डूब रही है. डैम का निर्माण कार्य शुरू होने के साथ ही भू-अर्जन की कार्रवाई भी शुरू की गयी थी, लेकिन शिथिल व लापरवाह कार्यप्रणाली की वजह से डैम का निर्माण तो लगभग पूरा हो गया, लेकिन भू-अर्जन कार्यालय, गढ़वा लंबे समय से मुआवजा व पुनर्वास की स्थिति तय नहीं कर सका है. साथ ही 4 गांव के लोगों को कहां बसाया जाये, इसके लिए जमीन भी उपलब्ध नहीं की जा सकी है. जैसे ही अमवार डैम में गेट लगाया जायेगा, डूब क्षेत्र के गावों में पानी भरना शुरू हो जायेगा और लोगों को उसी स्थिति में गांव से पलायन करना पड़ेगाा. इसलिए गेट नहीं लगाया जा रहा है.
भू- अर्जन कार्यालय, गढ़वा की लापरवाही की वजह से सरकार को करोड़ों का चुना भी लग रहा है. साथ ही तकनीकी रूप से विभाग दिनों-दिन और पेचिदगी में फंस रहा है. डूब क्षेत्र की जमीन को लेकर पिछले साल 2020 के मार्च महीने में ही धारा-11 का प्रकाशन किया जा चुका है. नियमानुसार धारा-11 के प्रकाशन के तीन महीने के अंदर धारा-19 का प्रकाशन कर देना है. धारा-19 में रैयतों के नाम, खाता, प्लॉट सहित कुल रकबा आदि का विवरण रहता है़ इससे यह तय होता है कि किस रैयत को कितना मुआवजा का भुगतान करना है. लेकिन, भू-अर्जन विभाग में इसकी गणना करनेवाला कोई एक्सपर्ट ही नहीं है.
नियमानुसार धारा-11 के प्रकाशन के बाद जब तक रैयतों को मुआवजा नहीं दिया जाता है, तब तक उन्हें रेंट आदि भुगतान करना है. इस हिसाब से अब जब भू-अर्जन विभाग ने रैयतों के मुआवजा आदि को लेकर धारा-19 का प्रकाशन नहीं कराया है. इसलिए करीब 20 महीने का लाखों-करोड़ों रुपये का रेंट विभाग को रैयतों को देना होगा.
Also Read: सरायकेला का यह गांव कभी था नक्सलियों का गढ़, लेकिन ऑर्गेनिक हल्दी की खेती से बदल रही तस्वीर
चूकि यह लापरवाही या गलती गढ़वा जिले के भू-अर्जन विभाग की है. ऐसे में यूपी सरकार इस रकम को अपने मुआवजे में शामिल नहीं करेगी, फिर यह राशि रैयतों को कौन भुगतान करेगा. इस वजह से तकनीकी रूप से यहां विभाग फंसता हुआ नजर आ रहा है. साथ ही और जितना ज्यादा समय बीतेगा, विभाग इस मामले में और उलझता जायेगा़ बताया गया कि विस्थापितों के लिए व्यवस्था करने सहित मुआवजे की राशि तय करने में अभी से काम शुरू हो, तो भी कुछ साल लग सकते हैं. तब तक अमवार डैम का काम यूं ही लटका पड़ा रहेगा.
अमवार डैम के डूब क्षेत्र में गढ़वा जिले के भूमफोर, शरू, फेफसा व परासपानी गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं. इन गांव के कुल 89 रैयतों को चिह्नित किया गया है, जिन्हें मुआवजा देना है और पुनर्वास करना है़ यद्यपि ग्रामीण जिला प्रशासन के इस आंकड़े को सही नहीं मानते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि रैयतों की संख्या इससे ज्यादा है. यदि यह आंकड़ा सही भी है, तो इतने विस्थापितों को मुआवजा की रकम के अलावे डूब क्षेत्र के बदले दूसरे स्थान पर पक्का मकान, खेती युक्त जमीन, सड़क, स्वास्थ्य, विद्युत सुविधा, विद्यालय आदि के साथ रहने योग्य वातावरण देना होगा.
इस संबंध में जिला भू- अर्जन पदाधिकारी अमर कुमार ने बताया कि वे अभी इस विभाग में नये आये हैं, लेकिन वे इसे जल्द कराने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा कि विभाग के कर्मी अभी NH- 75 बाईपास के काम को खत्म करने में लगे हुए हैं.
Posted By : Samir Ranjan.