Jharkhand Elephant Terror: बहरागोड़ा में ग्रामीणों के लिए आपदा बनकर आये हैं हाथी, वन विभाग नहीं कर रहा मदद
झारखंड में हाथियों का उत्पात जारी है. ताजा मामला पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा का है, जहां हाथियों का झुंड ग्रामीणों के लिए आपदा बनकर आया है. ग्रामीणों के मानें तो वन विभाग उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है.
बहरागोड़ा (पूर्वी सिंहभूम), गौरव पाल. पश्चिम बंगाल सीमा से सटे बहरागोड़ा प्रखंड के पूर्वांचल के इलाकों में गरमा धान की खेती करने वाले किसान जंगली हाथियों से परेशान हैं. खेतों में गरमा धान की फसल तैयार होते ही जंगली हाथियों का उपद्रव बढ़ गया है. जंगल से निकलकर जंगली हाथी गरमा धान की फसल को रौंदकर और खाकर नष्ट कर रहे हैं.
शाम होते ही उपद्रव मचाना शुरू कर देते हैं हाथी
बता दें कि बहरागोड़ा के दुदकुंडी इलाके में बड़े पैमाने पर किसानों ने गरमा धान की खेती की है. धान की फसल पकनी शुरू हो गई है और कहीं-कहीं कटाई भी हो रही है. इलाके की कई पंचायतें पश्चिम बंगाल की सीमा से सटी हुई है और यह इलाका जंगलों से भरा है.
बरसोल थाना क्षेत्र के खंडामौदा, जगरनाथपुर, कुमारडूबी, सांडरा, खेड़ुआ, भाडुआ, लुगाहरा इलाके में जंगली हाथियों का उपद्रव अधिक रहता है. शाम होते ही हाथी जंगल से निकलकर धान के खेतों में उपद्रव मचाने लगते हैं.
बीते 5 सालों से इस इलाके में जंगली हाथियों का उपद्रव लगातार बढ़ता जा रहा है. प्रत्येक साल किसानों को हाथियों के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ता है. यहां के किसानों के लिए जंगली हाथी किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं हैं. इस दौरान हाथियों ने 50 से 60 बीघा में तैयार होती फसल को बर्बाद कर दिया
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शंकर मुर्मू, राधानाथ किस्कू, दानी साहू, चितरंजन गिरी, अनूप नायक, गणेश मुंडा, गुरबा किस्कू, उत्पल नायक, सिपाई किस्कू, सुबोड मुर्मू, हाराधन हंसदा, सुनील टुडू समेत अन्य ग्रामीणों ने कहा कि यहां धान की खेती साल में दो बार होती है, जो ग्रामीणों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है. ऐसे में हाथियों के द्वारा क्षति पहुंचाने के बाद किसान और उसके परिवार के समक्ष काफी विपरीत परिस्थितियां बन जाती है. लोगों ने वन विभाग से आवश्यक पहल कर हाथियों को भगाने की मांग की है. ताकि लोगों को आर्थिक नुकसान न हो और विभाग को भी परेशानी न हो.
वन विभाग नहीं कर रहा है कोई सहायता
ग्रामीणों के मुताबिक, इस इलाके में जंगली हाथी पूरी तरह से हावी हो गए हैं, लेकिन वन विभाग कोई सहायता नहीं कर रहा है. ग्रामीणों को वन विभाग की तरफ से हाथी भगाने के लिए कोई भी उपक्रम नहीं दिया गया. जैसे कि हाथी भगाने के लिए पटाका, मशाल जलाने के लिए मोबिल, टार्च आदि कुछ भी सामान नहीं दिये गए हैं. हाथियों को सही स्थान पर ले जाने के लिए वन विभाग के पास फिलहाल कोई ठोस सामान उपलब्ध नहीं है.
दुदकुंडी गांव चारों तरफ से जंगल से गिरा हुआ है. धान की खेती और सब्जी की खेती जीविका उपार्जन के लिए गांव के लोगों का मुख्य साधन है. गांव की महिलाओं ने बताया कि हम लोग पूरे साल धान की खेती और सब्जी की खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं, लेकिन पिछले 2 साल पहले से जंगली हाथी गांव में हमेशा घुस जाते हैं और धान व सब्जी की खेती को रौंद कर चले जाते हैं. इस कारण हम लोग सही तरीके से परिवार भी नहीं चला पाते, जो ऋण लेकर खेती करते हैं, उसका पैसा भी सही समय पर नहीं चुका पाते हैं.
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दो सालों में वन विभाग की तरफ से आज तक नहीं मिला कोई भी मुआवजा
जंगली हाथियों द्वारा खेती नष्ट करने के बाद हमेशा वन विभाग द्वारा फॉर्म भरा जाता है ताकि मुआवजा मिल सके लेकिन आज तक ना ही मुआवजा दिया गया और ना ही कोई पैसा दिया गया. गांव के लोग हर साल महाजन की उधारी में डूबे हुए हैं कि इसे कैसे चुकाएंगे. जो की चिंता का विषय है.