Jharkhand News, Chatra News, चतरा न्यूज (दीनबंधु) : झारखंड के चतरा जिले के टंडवा में एनटीपीसी से अपनी मांगों को लेकर 47 दिनों से रैयत धरना पर बैठे हुए हैं. चार दिनों से एनटीपीसी के संपूर्ण कार्य को ठप करा रखा है. 11 महिला-पुरूष रैयत छह दिनों से आमरण अनशन कर रहे हैं. पूरे परियोजना क्षेत्र में वीरानी छाई है. पहली बार यह मौका है जब पावर प्लांट का निर्माण कार्य ठप कराया गया है. अनशन पर बैठी महिलाओं की तबीयत बिगड़ गयी है. इन्हें पीएचसी में भर्ती कराया गया है. इधर, काम बंद होने के बाद कंपनियों ने नो वर्क नो पे लगा दिया है. पांच हजार में लगभग चार हजार से ज्यादा मजदूर कॉलोनी छोड़ वापस अपने गांव लौट चुके हैं.
अनशन पर बैठी महिलाओं की स्थिति खराब होने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया. आमरण अनशन में तिलेश्वर साहू, जतु गोप, प्रकाश पासवान, विशेश्वर यादव, अजीत नायक, किरण देवी, रूबी देवी, रेखा देवी, मुनिया देवी, राधा देवी, फोटोइया देवी बैठी हैं. चिकित्सा प्रभारी डॉ0 बलराम मुखी ने सभी के स्वास्थ्य की जांच की. धरना कार्यक्रम की अध्यक्षता धनंजय सोनी व संचालन कृष्णा साहू ने किया. मौके पर मनोज चंद्रा, कृष्णा साहू, जागेश्वर दास, अरबिंद पांडेय, निसार अहमद, द्रोपदी देवी, रीता देवी, संतोषी देवी, जसमुदिन अंसारी समेत कई उपस्थित थे.
एनटीपीसी के जनसंपर्क अधिकारी गुलशन टोप्पो ने कहा कि काम रोको आंदोलन से राष्ट्र को क्षति हो रही है. काम बंद होने से परियोजना लक्ष्य से काफी पीछे चली गयी है. परियोजना की एक यूनिट से बिजली उत्पादन का लक्ष्य अप्रैल माह में था, लेकिन कार्य बंद होने से परियोजना निर्माण कार्य तीन माह पीछे चला गया. अब बिजली उत्पादन जुलाई तक संभव हो पायेगा. आगे भी बंदी जारी रहा तो परियोजना लक्ष्य से काफी पीछे चली जायेगी. परियोजना निर्माण कार्य भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजार की वित्त संस्थाओं से कर्ज लेकर किया जा रहा है. कर्ज के बदले एनटीपीसी को प्रतिदिन लगभग डेढ़ करोड़ का ब्याज चुकाना पड़ता है. जिससे कंपनी को प्रतिदिन डेढ़ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसके अलावा एनटीपीसी में कार्यरत विभिन्न कंपनियों को प्रतिदिन एक करोड़ का अतिरिक्त नुकसान हो रहा है.
एनटीपीसी पावर प्लांट निर्माण कार्य में जिले ही नहीं बल्कि झारखंड समेत अन्य राज्यों के विभिन्न इलाकों के मजदूर लगे हुए हैं. निर्माण कार्य में पांच हजार से ज्यादा मजदूर लगे हुए हैं. काम बंद होने के बाद कंपनियों ने नो वर्क नो पे लगा दिया है. पांच हजार में लगभग चार हजार से ज्यादा मजदूर कॉलोनी छोड़ वापस अपने गांव लौट चुके हैं.
भू-रैयत तीन सूत्री मांगों को लेकर आंदोलित हैं. टंडवा के इतिहास में सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन बन गया है. रैयतों की मांगों में बड़कागांव एनटीपीसी कोल माइनिंग की तर्ज पर मुआवजा 25 लाख रुपए प्रति एकड़ व दस हजार प्रति एकड़ एन्युटी, अधिग्रहित क्षेत्र में छूटे हुई जमीन, पेड़, कुआं, तालाब, मकान का मुआवजा भुगतान, विस्थापित छह गांवों में विस्थापित परिवार को नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ, बिजली, पानी, सड़क आदि सुविधा बहाल करने समेत अन्य मांग शामिल हैं.
Posted By : Guru Swarup Mishra