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लातेहार के असुर जनजाति नहीं मनाते दुर्गापूजा, आज मना रहे हैं दशहरा करम पर्व, जानें क्या है मान्यता

लातेहार में निवास करने वाले असुर जनजाति के लोग दुर्गापूजा नहीं मानते हैं. लेकिन, विजयादशमी के दूसरे दिन दशहरा करम पर्व मनाते हैं. दुर्गापूजा नहीं मनाने के पीछे असुर जनजाति के लोगों की मान्यता है कि पूजा में शरीक होने पर परिवार पर दैवीय प्रकोप पड़ेगा. हालांकि, अब असुर परिवारों ने यह प्रथा छोड़ दी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2021 2:49 PM
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Jharkhand News (वसीम अख्तर, महुआडांड़, लातेहार) : देवी दुर्गा के महिषासुर वध के साथ दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत हुई थी. ये सब जानते हैं. हर वर्ष शारदीय नवरात्र के 9 दिन असुर वध को याद कर उत्सव मनाया जाता है, तो 10वें दिन असुरराज रावण के वध की याद में दशहरा मनाते हैं. हमारे और आपके लिए तो ये असुर-वध उत्सव है. मगर जरा असुर जनजाति के नजरिये से देखिए.

लातेहार के असुर जनजाति नहीं मनाते दुर्गापूजा, आज मना रहे हैं दशहरा करम पर्व, जानें क्या है मान्यता 2

आज के युग में असुर कहां हैं, तो आइए हम आपको मिलवाते हैं झारखंड के लुप्तप्राय असुर जनजाति से. झारखंड के जिला लातेहार में असुर जनजाति के कुछ परिवार आज बचे हैं. ये परिवार दशहरा के ठीक दूसरे दिन करम पर्व मनाते हैं एवं प्रकृति की पूजा करते हैं. इस जनजाति के लोग आज भी सामान्य जीवन जीते हैं. लेकिन, दुर्गा पूजा नहीं मनाते हैं. असुर जनजाति के लोग दशहरा के दिन घर से नही निकलते हैं. इसकी मान्यता है कि दुर्गा की पूजा कि तो परिवार पर दैवीय प्रकोप पड़ेगा. हालांकि, अब असुर परिवारों ने यह प्रथा छोड़ दी है.

मिलिए लातेहार जिला में बसी लुप्तप्राय: असुर जनजाति से

लातेहार जिला अंतर्गत महुआडांड़ प्रखंड के नेतरहाट पंचायत में पहाड़ों की तलहटी में बसे हुसम्बू ग्राम के ढोड़ीकोना गांव में असुर जनजाति के 50 परिवार रहते हैं. इनकी आबादी लगभग 300 की है. गांव के पंच निर्मल असुर ने बताया कि हमारे पूर्वजों द्वारा ही दुर्गापूजा नहीं मनाने की परंपरा रही है. पूर्वज मानते थे उत्सव मनाया, तो दैविक प्रकोप से आफत आ जायेगी. हालांकि, निर्मल असुर यह कहते हैं कि हाल-फिलहाल ऐसा कुछ नहीं हुआ. साथ ही कहते हैं कि दशहरा के ठीक दूसरे दिन हम दशहरा करम पर्व मनाते हैं. गांव के पुरुष गुमला गुदगुरी बॉक्साइट माइंस में मजदूरी करते हैं, तो महिलाएं स्थानीय बाजारों में जंगली फल और लकड़ी बेचती हैं.

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ढोड़ीकोना गांव मे रहने वाले असुर जनजाति परिवार की स्थिति काफी खराब है. प्रखंड मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ढोड़ीकोना गांव के असुर जनजाति को शुद्ध पेयजल तक मयस्सर नहीं है जबकि 2017 में सरकार द्वारा लाखों रुपये खर्च करके पानी टंकी लगाया गया है. फिर भी असुर जनजाति के लोग चुआं से पानी पीने को मजबूर हैं. अधिकतर नौजवान गांव से पलायन कर बाहर कमाने जाते हैं. जंगल में आदिकाल से रहने के बाद भी खेती के लिए प्रयाप्त मात्रा में जमीन नहीं है. आस-पास जो खेत हैं वो हुसम्बू गांव के उरांव जाति के है.

डाकिया योजना से भी नहीं मिल रहा लाभ

राज्य सरकार द्वारा डाकिया योजना के तहत असुर जनजाति को सहारा दिया गया है. जनजाति के अंतर्गत मिलने वाले पेंशन भी किसी-किसी का बंद है. हुसम्बू गांव में बिजली पोल, तार और ट्रांसफार्मर लगाया गया है, लेकिन आज भी ग्रामीण लालटेन और ढ़िबरी युग में ही रहते हैं.14वीं वित्तीय योजना के अंतर्गत दर्जनों सोलर लाइट हुसम्बू गांव में लगाया गया है, लेकिन ढोड़ीकोना में सोलर लाइट एक भी नहीं लगायी गयी है.

लंबे समय से बच्चों की शिक्षा प्रभावित

ढोड़ीकोना में 5 क्लास तक हुसम्बू प्राथमिक विद्यालय है. वही, लगभग 35 असुर जनजाति बच्चे इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं. कोरोना की वजह से लंबे समय से ये बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. इसका गहरा प्रभाव असुर जनजाति के बच्चों पर पड़ा है. प्राथमिक विद्यालय लंबे समय से बंद है.आनलाइन शिक्षा इनके लिए सपने जैसा है क्योंकि गांव में नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं है. ना इनके पास एंड्रॉयड मोबाइल है. वैसे तो रवि असूर कहते हैं कि गांव में कई लड़के इंटर की पढ़ाई कर चुके हैं जबकि चार लड़कियां मैट्रिक पास है. लेकिन, एक लड़की को छोड़कर किसी को सरकारी जाॅब नहीं मिल पाया है.

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हुसम्बू गांव के ग्राम प्रधान लाजरूस लकड़ा कहते हैं कि असुर जनजाति इस क्षेत्र में सदियों से रहते आ रहे हैं. यह सही है कि इनके पास खेती के अधिक जमीन नहीं है. इनके पूर्वज जंगल में पत्थर से लोहा निकालते थे. हमारे पूर्वज बताते थे कि ये असुर जनजाति कुछ दशक तक एक जगह पर रह कर जीविका के लिए खेत व मैदान बनाते थे. फिर उस जगह को छोड़कर दूसरे जगह चले जाते थे. इसी कारण इनकी जमीन नहीं है.

ग्राम प्रधान कहते हैं कि हुसम्बू गांव में नेटवर्क की सुविधा नहीं है. ढोड़ीकोना गांव में पानी टंकी लगने के बाद 10 दिन तक चला होगा फिर जो खराब हुआ वह खराब है. बिजली का कनेक्शन कर घरों में मीटर लगा दिया गया है, लेकिन आज तीन साल हो गये ग्रामीणों को बिजली का दर्शन तक नहीं हुआ है.

Posted By : Samir Ranjan.

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