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आंदोलनों का दस्तावेज है यह किताब, जानें कैसे पैदा होते हैं सामाजिक आंदोलन

सामाजिक आंदोलन कैसे पैदा होते हैं और इसकी सफलता या विफलता के क्या कारण रहते हैं? ऐसे कौन से कारक हैं, जिनकी वजह से आंदोलनों में अचानक से भीड़ जुट जाती है और एक साथ बड़ी संख्या में लोग संघर्ष के लिए उत्तेजित हो जाते हैं?

भारत कई आंदोलनों का गवाह रहा है. इनके कारण देश ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बड़े बदलावों को देखा है. वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और लेखक अकु श्रीवास्तव की नयी पुस्तक ‘उत्तर-उदारीकरण के आंदोलन’ ऐसे अनगिनत आंदोलनों का एक दस्तावेज है. वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 384 पन्ने की यह पुस्तक आंदोलनों के राजनैतिक और उनके सामाजिक प्रभावों के बारे में बारीकी से समझने में मदद करती है. पुस्तक लोगों के बीच पनप रहे गुस्से, बेचैनी और उनमें पैठ बना रहे असंतोष के परिणामस्वरूप आंदोलनों का बारीकी से अध्ययन कराती है.

कैसे पैदा होते हैं सामाजिक आंदोलन

सामाजिक आंदोलन कैसे पैदा होते हैं और इसकी सफलता या विफलता के क्या कारण रहते हैं? ऐसे कौन से कारक हैं, जिनकी वजह से आंदोलनों में अचानक से भीड़ जुट जाती है और एक साथ बड़ी संख्या में लोग संघर्ष के लिए उत्तेजित हो जाते हैं? क्या सभी आंदोलन संगठित होते हैं या बिना किसी संगठन के भी सरकार की नींव हिलाकर ये अपनी बात मनवाते हैं? ऐसे कई सवालों के जवाब इस पुस्तक में निहित हैं. इसके अलावा, यह पुस्तक मौजूदा सरकार और उसके कार्यकाल में आंदोलनों के खिलाफ चलने वाली मुहिम की भी पड़ताल करती है. लेखक ने पुस्तक को पांच खंडों में बांटा है.

  • पहले भाग में सामाजिक आंदोलनों के कारक, भूमंडलीकरण : आयाम बनाम तनाव, भारत में उदारीकरण के पहले दशक (1990-2000) के दौरान डंकन प्रस्ताव के विरोध में 45 संगठनों और व्यापार संघों द्वारा आजादी बचाओ आंदोलन, मंडल आंदोलन, मंदिर आंदोलन, कश्मीरी पंडितों पर हमले के खिलाफ हुए आंदोलनों का जिक्र है.

  • पुस्तक के दूसरे भाग में दलितों में रही शांत क्रांति, नामकरण की सियासत: आंदोलनों से सत्ता तक दलित, अलग-अलग राज्यों में होने वाले आंदोलन जैसे-झारखंड आंदोलन, उत्तराखंड आंदोलन और तेलंगाना आंदोलन पर प्रकाश डाला गया है. साथ ही महिला सशक्तिकरण से जुड़े आंदोलन, अन्ना आंदोलन का भी जिक्र है.

  • तीसरे हिस्से में नागरिकता संशोधन विधेयक, सीएए-एनआरसी, जेएनयू का छात्र आंदोलन और शाहीन बाग आंदोलन को भी सरल भाषा में समेटने का प्रयास किया गया है.

  • वहीं, पुस्तक का चौथा हिस्सा किसान केंद्रित आंदोलनों से जुड़ा है.

  • पुस्तक के पांचवें हिस्से में दुनियाभर में हुए छात्र आंदोलनों के इतिहास और घटनाक्रम के बारे में बताया गया है. इनमें साल 1229 में हुए पेरिस विश्वविद्यालय का छात्र आंदोलन, जर्मन भाषा थोपने के खिलाफ हुए आंदोलन, साल 1956 में हुए बुखारेस्ट आंदोलन आदि शामिल हैं.

पुस्तक : उत्तर-उदारीकरण के आंदोलन

लेखक : अकु श्रीवास्तव

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली

-देवेंद्र कुमार

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