झारखंड के लिए काफी गर्व की बात है, क्योंकि यहां के युवा फिल्मकार निरंजन कुजूर की शॉर्ट फिल्म ‘तीरे बेंधो ना’ को 22वें ढाका अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘शॉर्ट एंड इंडिपेंडेंट’ खंड में प्रदर्शित होने के लिए चुना गया है. ये महोत्सव 20 से 28 जनवरी, 2024 तक ढाका में आयोजित किया जाएगा. फेस्टिवल रेनबो फिल्म सोसाइटी की ओर से किया जाता है, जो बांग्लादेश के फिल्म समाज आंदोलन में सबसे सक्रिय फिल्म संस्थाओं में से एक है. अब शॉर्ट फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर निरंजन कुजूर से खास बातचीत के कुछ अंश…
आपकी फिल्म 22वें ढाका अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की स्क्रीनिंग के लिए चुना गया, इसके बारें में क्या कहना है?
यह दूसरी बार है जब मेरी किसी फिल्म का चयन ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में चयन हो रहा है. इससे पहले 2019 में ‘दिबी दुर्गा’ का प्रदर्शन हुआ था. ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, बांग्लादेश की सबसे प्रतिष्ठित फिल्म महोत्सव है, जिसमें दुनिया भर से लगभग 70 देशों की फिल्में भाग लेती हैं और इस बार तो इस महोत्सव में ईरान के सबसे बड़े फिल्मकारों में शुमार माजिद मजीदी भी मास्टर क्लास लेने के लिए शिरकत कर रहे हैं, तो जाहिर है मैं बहुत खुश हूं. ढाका जाने की तैयारी कर रहा हूं.
क्या कभी आपने सोचा था कि ढाका तक आपकी फिल्म का डंका बजेगा?
जी, फिल्में तो यह सब सोच कर नहीं बनाई जाती की फिल्म कहां तक जाएगी, पर इतना पता होता है कि अगर आप पूरी शिद्दत से फिल्म करते हैं तो किसी ना किसी स्तर पर सफलता हाथ लगती ही है. आपके लिखे कहानी और किरदारों को पसंद किया जाए तो अच्छा लगता है. अब तक यह फिल्म भारत के कई फिल्म महोत्सवों के साथ-साथ फ़्रांस, नेपाल में भी दिखाई जा चुकी है. अब बांग्लादेश में भी दिखाई जाएगी. कुल मिलाकर हर छोटी-बड़ी सफलता खुशी देती है.
झारखंड से इतने बड़े प्लेटफॉर्म तक पहुंचने तक के सफर में क्या मुश्किलें आई? फिल्म को बनाने में कितनी मेहनत लगी
यह फिल्म कोविड काल के तीसरे वेव के शुरुआती दिनों में शूट की गई थी. तब लॉकडाउन नहीं लगा था. शूटिंग खत्म होते ही पता चला कि टीम के कई सदस्य कोविड पॉजिटिव हैं. इनमें हमारे लीड एक्टर अर्घ्य रॉय, फिल्म के एडिटर ज्योति रंजन रथ और मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर शेषांक जायसवाल भी थे. हम सब डरे हुए थे, क्योंकि तीसरा वेव घातक रहा था. शुक्र है सभी एक महीने बाद स्वस्थ हो गये. जहां तक झारखंड से होने के नाते मेरी अबतक की फिल्मी सफर की बात है, तो मुश्किलें अब भी हैं, कुछ खास बदलाव सिनेमा के क्षेत्र में नहीं दिखलाई पड़ता है. सिनेमाई दौड़ में झारखंड संसाधनों और सपोर्ट के अभाव में अब भी काफी पीछे है. पर फिर भी मैं पॉजिटिव हूं की आने वाले समय में कुछ ठोस होगा.
आपने तीरे बेंधो ना के बारे में कैसे सोचा था
तीरे बेंधो ना की कहानी एक बांग्ला समाचार पत्र में छपे एक समाचार पर आधारित है. फिल्म के सिनेमेटोग्राफर जयदीप भौमिक ने जब यह खबर पढ़ी तो वह उन्हें मेरे पास ले आए. हमें लगा कि इस घटना पर फिल्म बननी चाहिए, क्योंकि अमूमन इस मुद्दे पर फिल्म करने से लोग घबराते हैं. इसी कहानी के इर्द गिर्द मैंने किरदारों को बुनकर पटकथा लिखी है.
फिल्म किस-किस जगह शूट हुई है?
फिल्म की ज्यादातर शूटिंग पश्चिम बंगाल के फ्रेजरगंज इलाके में हुई है. जहां की मूल आबादी समुंदर में मछली पकड़कर अपना जीवन यापन करते हैं. वहीं पर बक्खाली नाम का बीच है, जहां सैलानियों का आना जाना लगा रहता है. शेष भाग को हमने कोलकाता में फिल्माया है.
आप अपने बारे में कुछ बताइए, पढ़ाई से लेकर फिल्म तक का सफर
मेरी दसवीं तक की स्कूलिंग रांची के बिशप वेस्टकोट बॉयज स्कूल में हुई. उसके बाद मैंने अपनी 12+2 की पढ़ाई डीएवी हेहल में की है. मास कॉम की पढ़ाई करने मैं कर्नाटक चला गया और उसके बाद मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, कोलकाता से निर्देशन और पटकथा लेखन में की.