गुमला के नक्सल प्रभावित गांवों में आज भी चलता है पंचायत का फरमान, एक दिन पहले तय होगा वोटिंग का फैसला
गुमला के नक्सल प्रभावित गांवों में अजीब सी खामौशी है. वोटर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं. वहीं, उम्मीदवार भी गांवों तक नहीं पहुंच रहे हैं. पहले चरण में रायडीह, सिसई और भरनो में चुनाव है. इसके बावजूद रायडीह और चैनपुर प्रखंड के कई गांवों में आज भी चुनाव को लेकर कोई हलचल नहीं दिख रही है.
Jharkhand Panchayat Chunav 2022: गुमला के नक्सल पीड़ित गांवों में अजीब सी खामौशी है. पंचायत चुनाव है. गांव की सरकार चुननी है. चहल-पहल होनी चाहिए, लेकिन रायडीह और चैनपुर प्रखंड के कई ऐसे गांव हैं. जहां अभी तक चुनावी हलचल शुरू नहीं हुई है. वोटर चुप हैं. उम्मीदवार भी पहाड़ी और जंगलों में बसे गांवों में नहीं घुस रहे हैं. गांवों की जो स्थिति है. माने चुनाव हो ही नहीं रहा.
पंचायतों के फरमान पर लिया जाएगा फैसला
कुछ गांवों का दौरा किया गया. लोगों से बात की. अधिकांश लोगों ने कहा कि पूर्वजों के समय से हमारे जंगल एवं पहाड़ी गांव में एक परंपरा और नियम चली आ रही है. जिस दिन वोट होगा. उसके एक दिन पहले गांव में पंचायती होगी. हरेक गांव की यही नियम है. सभी अपने-अपने गांव में बैठक करेंगे. इसके बाद वोट देने का निर्णय लिया जाता है. पंचायत का फरमान आयेगा. उस फरमान के आधार पर लोग अपने स्वयं विवेक से वोट देते हैं.
गांवों में विकास नहीं होने से वोटर्स में गुस्सा
गांवों के भ्रमण के दौरान पहाड़ पर बसे बहरेपाट गांव के 70 वर्षीय जगन सिंह से मुलाकात हुई. उनसे चुनाव के संबंध में बात की. शुरू में तो वे चुप हो गये. जब उन्हें बताया गया कि मैं पत्रकार हूं. तब उन्होंने खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि वोट तो देंगे, लेकिन परंतु अभी तय नहीं हुआ है. वोट से पहले गांव में बैठक होगी. उसमें वोट देने का निर्णय लिया जायेगा. वहीं, जगन सिंह ने कहा कि इसबार गांव के लोग गुस्सा भी हैं. विकास नहीं हुआ है. पानी की समस्या है. किसी ने दूर नहीं की. बैठक में तय होगा कि इसबार क्या करना है. गांव के मंगरू सिंह ने कहा कि गांव की सरकार तो हम ही चुनते हैं, लेकिन हमें क्या मिलता है. मुखिया और अधिकारी हमारी योजनाओं का पैसा खा जाते हैं. इस बार वोट देंगे या नहीं इसपर कड़ा निर्णय लेंगे.
बॉक्साइट के ऊपर बसा है बहेरापाट गांव
बहेरापाट से छह किमी की दूरी पर लालमाटी गांव है. बॉक्साइट के ऊपर यह गांव बसा है. चारों तरफ पथरीली सड़क व चढ़ान है. इस गांव के विमल कोरवा और महेंद्र कोरवा ने कहा कि पहले वोट देने के लिए किसी दूसरे (नक्सली) का फरमान गांव में जारी होता था. लेकिन, इसबार महीनों से जंगलों में घूमने वाले नक्सली नहीं आये हैं. इसलिए इसबार गांव के लोग खुद बैठक कर वोट देना है या नहीं. इसकी चर्चा करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि गांवों में कोई चुनाव प्रचार नहीं होता है. उम्मीदवारों का कोई प्रतिनिधि आता है. वोट देने की बात करता है और चला जाता है. एक दिन पहले वोट पर चर्चा होगी. पांच किमी दूर जाकर लुरू गांव में वोट देते हैं.
सोकराहातू इलाके में भी चुनाव की कोई हलचल नहीं
सोकराहातू इलाके में भी चुनाव को लेकर कोई हलचल नहीं है. ना ही उम्मीदवार वोट मांगने घूम रहे हैं. रायडीह में पहले चरण में मतदान है. नामांकन हो गया. स्क्रूटनी हो गयी. उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर गये हैं, लेकिन उम्मीदवार नक्सल प्रभावित गांवों में नहीं घुस रहे हैं. बैरटोली गांव के वृद्ध राजेंद्र कुजूर ने कहा कि वोटिंग के दो दिन पहले चुनावी माहौल बनता है. अभी सभी लोग अपने कामों में व्यस्त है. अगर उम्मीदवार आते भी हैं, तो शाम और रात को. दिन में थके-मांदे लोग गांव में बैठते हैं. सुख-दुख की बात करते हैं. तभी कोई उम्मीदवार आ जाता है और वोट मांगता है.
रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.