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गांव की सरकार : 125 वोट से जीत कर किसान से मुखिया बने थे नकुल महतो, अमलो पंचायत में हुए कई विकास कार्य

jharkhand panchayat chunav 2022: बोकारो जिला अंतर्गत अमलो पंचायत के मुखिया नकुल महतो को आज भी लोग श्रद्धा से याद करते हैं. 25 सितंबर, 1978 के चुनाव में श्री महतो 125 वोट से जीतकर मुखिया बने थे. अपने कार्यकाल में उन्होंने विकास के कई कार्य किये.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2022 4:25 PM

Jharkhand Panchayat Chunav 2022: बोकारो जिला अंतर्गत बेरमो प्रखंड के अमलो पंचायत में वर्ष 1978 में मुखिया का चुनाव काफी दिलचस्प हुआ था. इस चुनाव में किसान परिवार से संबंध रखनेवाले नकुल महतो ने मुखिया का चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया था. वहीं, कांग्रेस के उस वक्त के युवा नेता महेंद्र कुमार विश्वकर्मा को पहली दफा सरपंच बनने का शौभाग्य प्राप्त हुआ था. इसके बाद से श्री विश्वकर्मा सरपंच के नाम से मशहूर हो गये.

मुखिया पद के लिए नकुल महतो के नाम का प्रस्ताव

नकुल महतो के पूर्वज काफी वर्ष पूर्व से ही अमलो बस्ती में रह रहे थे. उनके पिता खागो महतो भी एक किसान थे. जिस वक्त नकुल महतो ने मुखिया पद का चुनाव लडा उस वक्त वे अपने पुस्तैनी गांव अमलो में ही खेती-बारी किया करते थे. यही उनका और उनके परिवार की जीविका का एकमात्र साधन था. जब मुखिया पद के तौर प्रत्याशियों की चर्चा गांव में होनी शुरू हुई, तो गांव के कई लोगों ने मुखिया पद के लिए नकुल महतो के नाम का प्रस्ताव रखा.

सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर नकुल महतो लेते थे हिस्सा

नकुल महतो गांव में ही सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेनेवाले डुमरी के तत्कालीन विधायक लालचंद महतो से भी उनके काफी घनष्ठि संबंध थे. इसलिए उनके मन में मुखिया का चुनाव लड़ने की इच्छा जागृत हुई. पंचायत में अपने समर्थक और ग्रामीणों की सहमति के बाद उन्होंने मुखिया पद का चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिया. उस वक्त मुखिया पद पर नकुल महतो के अलावा सीसीएलकर्मी राजेंद्र सिंह, त्रिभुवन सिंह, रवींद्र सिंह, कामता सिंह सहित कई लोग खड़ हुए थे. लेकिन, मुख्य मुकाबला नकुल महतो और राजेंद्र सिंह के बीच ही था.

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पैदल ही गांव-गांव घूमकर मांगते थे वोट

इसी तरह सरपंच पद पर महेंद्र कुमार विश्वकर्मा, हरिपद भारती, योगेंद्र सिंह, जगदीश मुखर्जी के अलावा कई लोग खड़े थे. किसान परिवार से जुड़े रहने के कारण नकुल महतो का चुनाव प्रचार काफी सादगीपूर्ण ढंग से हुआ. वह पैदल ही पूरे पंचायत में घूम-घूमकर वोट मांगते थे. नकुल महते के पक्ष में हरिपद भारती, रतनलाल गौड़, मोहन महतो, जगनारायण महतो, मानिक महतो, कन्हाई साव, जयलाल महतो सहित कई लोगों ने काफी सक्रिय होकर काम किया था. वहीं, मुख्य पद के प्रत्याशी राजेंद्र सिंह भी पैदल घूम-घूमकर वोट मांगा करते थे. उनके पक्ष में भी अमलो पंचायत के विभिन्न जगहों से कई लोग सक्रिय होकर काम कर रहे थे.

चुनाव में नकुल महतो का 800 और महेंद्र विश्वकर्मा का 600 रुपये हुआ था खर्च

सरपंच पद के प्रत्याशी महेंद्र कुमार विश्वकर्मा के पक्ष में एचसी बोस, रवींद्र सिंह, बाबूलाल रवानी, एस थामस, पीएन तिवारी आदि सक्रिय थे, जबकि सरपंच पद पर ही श्री विश्वकर्मा के प्रतिद्वंद्वी योगेंद्र सिंह के पक्ष में भी कई लोग गोलबंद थे. इस चुनाव में मुखिया पद के प्रत्याशी नकुल महतो का 800 रुपये तथा सरपंच पद के प्रत्याशी महेंद्र कुमार विश्वकर्मा का चुनाव में 600 रुपये खर्च हुआ था.

नकुल महतो को 3000 से अधिक मिले थे वोट

चुनाव के लिए लगभग 10 बूथ बनाये गये थे. जिस बूथ में चुनाव हुआ था, उसी बूथ पर वोटों की गिनती हुई जबकि परिणाम दूसरे जगह घोषित की गई. चुनाव में मुखिया पद के उम्मीदवार नकुल महतो ने अपने प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र सिंह को करीब सवा सौ मतों के अंतर से पराजित किया था. श्री महतो को तीन हजार से ज्यादा मत मिला था. वहीं, सरपंच पद के प्रत्याशी श्री विश्वकर्मा को भी लगभग तीन हजार वोट प्राप्त हुआ था, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी योगेंद्र सिंह को ढाई हजार मत मिला था.

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चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे नकुल महतो

उस चुनाव में अमलो पंचायत अंतर्गत अमलो बस्ती, ताराबेडा, कर्माटांड, सुभाषनगर नया व पुराना वन बी-वन ए, रांचीधौड़ा, फल्डिक्वायरी आदि क्षेत्र आता था. इस चुनाव में मुखिया पद का चुनाव जीतने के बाद नकुल महतो कांग्रेस में शामिल हो गये थे. वर्ष 2003 में उनका निधन हुआ. चुनाव जीतने के बाद अमलो पंचायत में ब्लॉक के माध्यम से उन्होंने विकास के कई काम किये. आदिवासी बहुल गांव ताराबेडा में कुआं बनवाया था. इसके अलावा अन्य जगहों पर सामुदायिक भवन, पीसीसी पथ व पेड़ों के नीचे चबूतरा बनवाया. नकुल महतो के तीन पुत्र तुलसी प्रसाद महतो, मनोज कुमार महतो और महेश महतो हैं.

पंचायत क्षेत्र में रही अलग पहचान

अमलो बस्ती में सीसीएल द्वारा उनकी जमीन अधिग्रहण के बाद तीनों पुत्रों को सीसीएल में नियोजन मिला. मुखिया नकुल महतो व उनके पिता खागो महतो एक साधारण किसान थे. पूरे अमलो पंचायत में आज भी नकुल महतो का नाम लोग काफी श्रद्धा और आदर से लेते हैं. नकुल महतो का ग्रामीणों के बीच एक अलग ही रुतबा हुआ करता था. पंचायत के हर लोगों के साथ उनका आत्मीय जुड़ाव रहा.

पहले गांव में बैठा करती थी ग्राम कचहरी

पूर्व सरपंच और कांग्रेस के वरीय नेता महेंद्र कुमार विश्वकर्मा बातचीत के क्रम में कहते हैं कि पहले मुखिया और सरपंच पद पर खड़े होने वाले प्रत्याशियों में किसी तरह का लोभ-लालच नहीं हुआ करता था. मूलत: लोग आमलोगों की सेवा करने के उद्देश्य से ही चुनाव में खडे होते थे. वोटरों में भी किसी तरह का प्रलोभन नही था. प्रचार-प्रसार का माध्यम भी आजतक की तरह इतना हाईटेक नही था. लोग पैदल घूम-घूमकर वोट मांगते थे. नील से दिवाल पर लिखा जाता था. हैंड बिल भी ज्यादातर लोग नहीं छपवाते थे. कहते हैं कि पहले पंचायत में ग्राम कचहरी बैठा करती थी. जिसमें लोगों की समस्याओं को सुनकर तत्काल उसका निष्पादन किया जाता था. 25 सितंबर, 1978 को मुखिया और सरपंच का चुनाव हुआ था. उन्होंने 1111 वोटों के अंतर से सरपंच पद का चुनाव जीता था.

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अमलो पंचायत अब बन गया है फुसरो नप का वार्ड

बेरमो प्रखंड अंतर्गत आनेवाला अमलो पंचायत अब फुसरो नगर परिषद क्षेत्र में आ गया है. अमलो पंचायत के तहत कुल चार वार्ड आते हैं. जिसमें अमलो फुसरो नप के वार्ड नंबर छह में आता है. इसके अलावा अन्य तीन वार्ड में पुराना अमलो पंचायत को काटकर शामिल किया गया है.

रिपोर्ट : राकेश वर्मा, बेरमो, बोकारो.

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