Jharkhand Panchayat Chunav 2022: झारखंड पंचायत चुनाव की सियासी सरगर्मी तेज है. इस बीच छोटू लाल साव बताते हैं कि 1979 में मात्र 370 रुपये खर्च कर वे बाघमारा का सरपंच बने थे. एकीकृत बिहार में बाघमारा प्रखंड में मात्र 28 पंचायत हुआ करती थी. इसमें बाघमारा पंचायत भी शामिल थी. बिहार का विभाजन के साथ जैसे ही झारखंड प्रदेश का गठन हुआ. बाघमारा पंचायत का अस्तित्व ही प्रशासनिक अधिकारियों ने खत्म कर दिया, लेकिन एकीकृत बिहार का अंतिम पंचायत चुनाव 1979 में हुआ था. इस चुनाव को अभी तक लोग नहीं भूल पाए हैं. बाघमारा की जनता आज भी इस कालखण्ड को अपने दिल में संजोकर रखी है. लोग बताते हैं कि ये चुनाव माफिया, रंगदारों के खिलाफ था क्योंकि एक दबंग ने अपने अंगरक्षक को मुखिया प्रत्याशी एवं एक समर्थक को सरपंच बनाकर बाघमारा की जनता को गुलाम बनाने की योजना बनायी थी, लेकिन यहां की जनता ने इनके मंसूबे पर पानी फेर दिया था.
पंचायत चुनाव में मंसूबे पर फेर दिया पानी
डुमरा राजवाड़ी मैदान में ग्रामीणों की एक सभा हुई, जिसमें कई नामों पर चर्चा हुई. कोई चुनाव से हटने का नाम नहीं ले रहा था. इसी बीच दबंग के समर्थकों ने बाघमारा के कुछ युवकों को मार कर घायल कर दिया. लोग दहशत में थे ही. आतंक का नया दौर शुरू हो गया था. चुनाव के दिन दबंग के समर्थकों ने पंचायत के कई बूथों पर जबरन कब्जा कर चुनावी गणित को अपने कब्जे में करने का पूरा प्रयास किया, लेकिन बाघमारा-डुमरा के बुद्धिजीवियों ने फैसला लेते हुए सभी उम्मीदवारों को दरकिनार करते हुए मुखिया पद पर गोकुल पांडेय एवं सरपंच पद पर छोटू लाल साव के पक्ष में मतदान के लिए प्रेरित किया और दबंग के मंसूबे पर पानी फेर दिया. इसके बाद दबंग परिवार का आतंक काफी बढ़ने लगा, तो इनके खिलाफ जनता गोलबंद होने लगी.
10 पंचायतों के लोगों की हुई आम सभा
माफिया एवं रंगदारों के खिलाफ एक आम सभा बाघमारा राजस्थानी सेवा सदन में स्व उपप्रमुख सह नदखुरकी पंचायत के मुखिया बासुदेव पांडेय की अध्यक्षता में हुई. बैठक में तत्कालीन घोराठी पंचायत के मुखिया स्व नागेश्वर पांडेय, बाघमारा पंचायत के मुखिया स्व गोकुल पांडेय, निचितपुर पंचायत के मुखिया स्व सुनील कुमार त्रिगुणायत, नवागढ़ के मुखिया स्व राजेन्द्र लाला आदि थे. बैठक में रणनीति बनी कि किसी भी स्थिति में रंगदारी, गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जायेगी. एक आवाज़ पर लोग अपने काम छोड़ कर रंगदारों के खिलाफ निकले. इस बैठक में तत्कालीन डुमरी विधायक शिबा महतो की भूमिका महत्वपूर्ण थी. इस बैठक में ही रंगदारों का सामाजिक बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया इससे रंगदारों ने बाघमारा-डुमरा आना छोड़ दिया, लेकिन एक सप्ताह के बाद रंगदारों की टीम बाघमारा हरवे-हथियार के साथ पहुंची. बम धमाका किया.
विधायक भी दबे पांव लौट गए
सामाजिक गतिविधियों के लिए बने कार्यालय पर झंडा फहराया. लौटने के क्रम में इन रंगदारों की घेराबंदी की गई, जिसमें ग्रामीणों की तरफ से स्व राम दास साव, स्व लालजी सिंह, स्व तेजपाल खंडेलवाल ने बाजार की छतों से तीर-धनुष से कड़ा मुकाबला किया. घटना के बाद तत्कालीन एसपी मैकू राम बाघमारा पहुंचे. इन्होंने ग्रामीणों से रंगदारों के खिलाफ हर मदद का आश्वासन दिया. इन रंगदारों से लड़ने के लिए तुरंत ऑन स्पॉट अम्बिका प्रसाद सिंह, छोटू लाल साव, निरंजन हेलिवाल, नंदलाल पोद्दार, कालू राम हेलिवाल सहित कई लोगों को बंदूक का लाइसेंस देने की घोषणा की और इन्हें एक सप्ताह में बंदूक का लाइसेंस दिया गया. मामले को लेकर रंगदारों की टोली ने आरा के तत्कालीन विधायक वीर बहादुर सिंह से संपर्क किया और वे यहां आये भी, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता के बाद वे लौट गए.
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बाघमारा कॉलेज का निर्माण
निजी कोयला खदान से निकलने वाले वाहनों से धन संग्रह हुआ था. निजी कोयला खदान सदरियाडीह एवं ब्रम्हमंगोंडा से निकलने वाली सभी कोयला लदे वाहनों से प्रति ट्रक 10 रुपये की वसूली की गई थी. बाद में इस कमिटी के लोगों में शक्ति प्रसाद, स्व द्वारिका चौधरी नागपुर जाकर वर्तमान में कॉलेज की जमीन पर एमएसीएल कैम्प से सभी भवनों को दान देने का प्रस्ताव दिया, जिसे कंपनी ने स्वीकार कर लिया. बाद में ये जमीन खानुडीह के जमींदार स्व नागेश्वर पांडेय तत्कालीन मुखिया एवं भाई सोमनाथ पांडेय ने 10 एकड़ जमीन राज्यपाल (बिहार) को निबंधन केवाला के माध्यम से दान दिया.
तब 370 रुपये खर्च कर बने थे सरपंच
बाघमारा में 1979 में छोटू लाल साव सरपंच बने थे. तब इतना खर्च चुनाव में नहीं होता था. इन्होंने सिर्फ 370 रुपये चुनाव में खर्च किये थे. श्री साव ने बताया कि एक ठेला में एक माइक-चोंगा बांध कर मिले चुनाव चिन्ह ऊंट की मूर्ति बांध कर प्रचार किया था और लोगों से घर-घर जाकर संपर्क किया था.
रिपोर्ट : रंजीत सिंह