Jharkhand Panchayat Chunav 2022: झारखंड पंचायत चुनाव की तपिश तेज है. इस बीच कभी गोलियों की आवाज से थर्राने वाले गांव में आज ग्रामीण बेखौफ चुनावी चर्चा कर रहे हैं. गढ़वा जिले के रमकंडा प्रखंड का उग्रवाद प्रभावित गांव है गोबरदहा. एक समय था जब नक्सलियों की गोलियों से यह आदिम जनजाति बहुल गांव थर्रा उठता था. नक्सलियों का भय इतना था कि लोग चौक-चौराहों पर एकजुट तक नहीं होते थे, लेकिन आज इस गांव के लोग गोबरदहा चौक पर बेख़ौफ चुनावी चर्चा कर रहे हैं.
नक्सलियों का लगता था जमावड़ा
झारखंड पंचायत चुनाव को लेकर विभिन्न पदों के प्रत्याशियों के बारे में चर्चा कर चुनावी आकलन कर रहे हैं. अपने पंचायत क्षेत्र के विभिन्न पदों के प्रत्याशियों को मिलने वाले जातिगत वोट का आकलन कर प्रत्याशियों की हार- जीत तय करने में लगे हैं. ग्रामीण बताते हैं कि करीब 10 वर्ष पहले इस गांव में माओवादी का जबरदस्त प्रभाव था. इसके अलावा अन्य नक्सली संगठनों का गांव में ही जमावड़ा हुआ करता था. दूसरे क्षेत्रों से लौटकर नक्सली गांव के ही पपरा नदी में नहाकर गांव में ही भोजन बनवाते थे, वहीं एक दूसरे के बीच दर्जनों बार मुठभेड़ की घटना भी हो चुकी है, लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल गयी.
तीन बूथ अतिसंवेदनशील
गोबरदहा गांव रमकंडा प्रखंड की बलिगढ़ पंचायत के अधीन है. इस बार के पंचायत चुनाव में यहां नौ मुखिया, चार पंचायत समिति सदस्य व ग्राम पंचायत सदस्य(वार्ड सदस्य)पद के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. नौ जिला परिषद सदस्य पद के उम्मीदवार शामिल हैं. इन्ही प्रत्याशियों में से पंचायत के 3999 मतदाता अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करेंगे. इनमें बलिगढ़ 2080 पुरूष व 1919 महिला मतदाता हैं. निर्वाचन आयोग ने यहां के 16 मतदान केंद्रों में तीन मतदान केंद्रों को अतिसंवेदनशील की श्रेणी में रखा है. शांतिपूर्ण मतदान को लेकर इन मतदान केंद्रों पर सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था रहेगी.
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नक्सली नेताओं की शरणस्थली था
गोबरदाहा गांव बड़े नक्सलियों और उग्रवादियों की शरणस्थली हुआ करता था. भाकपा माओवादी के राजेन्द्र, भानु, टीपीसी के अर्जुन सिंह, नितांत सिंह, टीपीसी टू के रोशन, महेंद्र सहित कई बड़े उग्रवादी का ठिकाना था. सिर्फ रात ही नहीं, दिन में भी यहां आपको नक्सली दस्ता आराम करते, खाना खाते दिख जाता था. कई बार नक्सली संगठनों में आपस में भिड़ंत भी हो जाती थी. गोलियों से पूरा गांव गूंज उठता था. ग्रामीण दहशत में जीने को विवश थे. वर्ष 2015-16 में पुलिस व नक्सलियों के बीच कई बार मुठभेड़ भी हुई. हालांकि धीरे-धीरे पुलिस की सक्रियता से नक्सली गतिविधियां कम हो गयी हैं. ग्रामीणों को अब लोकतंत्र में अपनी भूमिका निभाने की आजादी मिल गयी है.
रिपोर्ट : मुकेश तिवारी, रमकंडा, गढ़वा