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Jharkhand: 38 साल पहले हुआ था तिरूलडीह गोलीकांड, सरकार अब तक नहीं बता पायी घटना के लिए जिम्मेदार कौन हैं?

सरायकेला के तिरूलडीह में 38 साल पहले 21 अक्टूबर 1982 को गोलीकांड हुआ था. इस गोलीकांड के लिए जिम्मेदार कौन थे? इसका खुलासा अब तक कोई सरकार नहीं कर सकी है. इस गोलीकांड में शहीद हुए अजीत व धनंजय महतो को आज भी याद किया जाता है. पर आश्रितों का कहना है शहीदों के नाम राजनीति हो रही है.

By Rahul Kumar | October 19, 2022 8:08 PM

Saraikela Kharsavan: सरायकेला के तिरूलडीह में 38 साल पहले 21 अक्टूबर 1982 को गोलीकांड हुआ था. इस गोलीकांड के लिए जिम्मेदार कौन थे? इसका खुलासा अब तक कोई सरकार नहीं कर सकी है. इस गोलीकांड के खुलासे का इंतजार अब भी यहां के लोग कर रहे हैं. इस गोलीकांड में क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के अजीत महतो और धनंजय महतो की मौत हो गई थी. आज भी इन्हें याद करते हुए शहादत दिवस मनाया जाता है. इस गोलीकांड की सच्चाई न तो बिहार सरकार सामने लायी और झारखंड सरकार इसे लेकर सजग है.

क्या हुआ था 21 अक्टूबर 1982 को

21 अक्टूबर 1982 को क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अपनी मांगों को लेकर अंचल कार्यालय पहुंचे थे. वे अधिकारी से लिखित आश्वासन ले रहे थे. तभी उनपर गोली चलाई गई. मोर्चा के सदस्य समझ नहीं पाए कि गोली कैसे और किसके आदेश से चली, जबकि अंचलाधिकारी खुद कार्यालय के अंदर मौजूद थे. इस गोलीकांड में मौजूद 42 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था. उस समय घटना की जांच के लिए एक कमिटी बनी थी. पर इस कमिटी ने जांच के बाद क्या रिपोर्ट दी यह आज 38 साल बाद भी सार्वजनिक नहीं की गयी है.

शहीदों के नाम पर बस राजनीति हो रही

घटना के दिन को याद करते हुए आज भी लोग शहादत दिवस मनाते हैं. इस गोलीकांड में शहीद हुए अजीत व धनंजय महतो को आज भी याद किया जाता है. लेकिन इस समारोह में शहीदों के नाम पर केवल राजनीति होती है. हर साल नेता आश्रितों के बीच घोषणा करते हैं, पर सब भूल जाते हैं. बताते चलें कि शहीद धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो को झारखंड मुक्ति मोर्चा की शिबू सोरेन सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था जो अबतक पूरा नहीं हुआ है. अब सूबे में एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और शहीद पुत्र नौकरी का इंतजार कर रहा है. उपेन महतो का कहना है कि उनके पिता ने समाज के लिए आंदोलन करते हुए अपनी जान दे दी. आज उनके नाम पर केवल राजनीति हो रही है.

पिता को नहीं मिला शहीद का दर्जा

इस गोलीकांड और शहीद लोगों को लेकर जो राजनीति चल रही है, उससे शहीद के परिजन नाराज हैं. उपेन महतो का कहना है कि गोलीकांड के तीन दशक से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी न तो गोलीकांड का खुलासा हो सका और न ही उसके पिता को शहीद का दर्जा मिल सका. ईचागढ़ के पूर्व विधायक साधु चरण महतो की मानें तो गोलीकांड की एफआइआर कॉपी से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने षडयंत्र के तहत अजीत महतो एवं धनंजय महतो के नाम को हटा दिया है.

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