झारखंड का एक गांव है लेबेद, जहां के ग्रामीणों की जिंदगी बारिश में हो जाती है कैद, ये है इनकी पीड़ा
Jharkhand News: करकरी नदी पर पुल नहीं होने के कारण किसी मरीज अथवा गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने में काफी परेशानी होती है. लेबेद के ग्रामीणों को अड़की तक पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि पुल बनने से उन्हें महज नौ किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी.
Jharkhand News: झारखंड के खूंटी जिले के अड़की प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव लेबेद और आसपास के गांव के लोगों को बरसात में कहीं जाना मुश्किल हो जाता है. लेबेद गांव एक टापू में बदल जाता है. दरअसल गांव के पास होकर बहने वाली करकरी नदी में कोई पुल नहीं है. जिसके कारण ग्रामीणों को काफी परेशानी होती है. ग्रामीण लंबे समय से करकरी नदी के बंदाबेड़ा हाडुमालडीह घाट में पुल की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन आज तक उनकी मांगें पूरी नहीं हुई हैं.
नदी पर पुल नहीं होने के कारण किसी मरीज अथवा गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने में काफी परेशानी होती है. लेबेद के ग्रामीणों को अड़की तक पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि पुल बनने से उन्हें महज नौ किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. ग्रामीणों ने बताया कि कई बाद लेबेद के टोला सारूआमदा, उलिलोर, पातड़ा, रूगडू, इचाडीह, बंदाबेड़ा में ग्राम सभा कर जनप्रतिनिधियों को मांगपत्र सौंपा गया है.
ग्रामीण गौर सिंह मुंडा कहते हैं कि गांव के लोगों की परेशानी से किसी को कोई मतलब नहीं है. चुनाव के समय पुल बनाने का आश्वासन मिलता है लेकिन आज तक नहीं बनाया गया, वहीं ग्रामीण पांडु मुंडा ने कहा कि ग्रामीणों द्वारा कई बार आवेदन देने के बाद भी किसी ने लेबेद गांव के लोगों की समस्या को दूर करने का किसी ने प्रयास नहीं किया.
ग्रामीण दुर्गा मुंड ने बताया कि बारिश के दिनों में गांव के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. ग्रामीण दुग्गा मुंडा ने कहा कि पुल बनने से हमें काफी सहूलियत होगी. हमारी समस्या को जल्द से जल्द दूर किया जाये. लेबेद और लेबेद गांव के सभी टोले के लोगों को बरसात में काफी परेशानी होती है.
रिपोर्ट: आशुतोष पुराण