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पारण के लिए शुभ समय, 11 सितम्बर दिन शुक्रवार
शुद्ध आश्विन कृष्णपक्ष अष्टमी आज रात 10 बजकर 47 मिनट के उपरांत नवमी हो जाएगी. वही, 11 सितंबर दिन शुक्रवार की रात 11 बजकर 22 मिनट के उपरांत दशमी तिथि हो जाएगी. आइये जानते हैं ज्योतिर्विद दैवज्ञ डॉ श्रीपति त्रिपाठी से आज 11 सितंबर के पंचांग के जरिए जितिया व्रत पारण करने के लिए आज की तिथि का हर एक शुभ मुहूर्त व अशुभ समय...
श्री शुभ संवत -2077,शाके -1942, हिजरीसन -1442-43
सूर्योदय-05:51
सूर्यास्त-06:09
सूर्योदय कालीन नक्षत्र- मृगशिरा उपरांत आद्रा, सिद्धि-योग, तै-कारण, सूर्योदय कालीन ग्रह विचार- सूर्य -सिंह, चंद्रमा-मिथुन, मंगल-मेष, बुध-कन्या, गुरु-धनु, शुक्र-कर्क, शनि-धनु, राहु -मिथुन,केतु-धनु,
11सितम्बर शुक्रवार, चौघड़िया
प्रात: 06:00 से 07:30 तक चर
प्रातः 07:30 से 09:00 तक लाभ
प्रातः 09:00 से 10:30 बजे तक अमृत
प्रातः10:30 बजे से 12:00 बजे तक काल
दोपहरः 12:00 से 01:30 बजे तक शुभ
दोपहरः 01:30 से 03:00 बजे तक रोग
दोपहरः 03:00 से 04:30 बजे तक उद्वेग
शामः 04:30 से 06:00 तक चर
जिउतिया व्रत का मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।
तीन दिनों तक होती है जितिया की पूजा
जितिया का व्रत तीन दिनों तक चलता है. जिसके क्रम में पहले दिन यानी की सप्तमी के दिन से ही इस व्रत की शुरुआत नहाए-खाए से शुरू हो चुकी है. आज यानी की अष्टमी को माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखेंगी और कल यानी की तीसरे दिन (नवमी के दिन) पारण किया जाएगा. इस व्रत में माताएं अपने संतान की लम्बी आयु, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए व्रत रखती हैं.
यहां देखे आरती Video
जानिए कब तक रखा जा सकता है व्रत
आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर हुआ. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहा. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा.
जीवित्पुत्रिका व्रत 2020 तिथि
नहाय खाय- सप्तमी, 9 सितंबर, बुधवार
निर्जला व्रत- अष्टमी, 10 सितंबर, गुरुवार
पारण- नवमी, 11 सितंबर, शुक्रवार
बेहद कठिन है जितिया व्रत
जितिया व्रत को संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है. तीन दिन तक चलने वाले इस व्रत के नियम बेहद कठिन होते हैं. इस व्रत में दूसरे दिन यानी कृष्ण पक्ष अष्टमी को पूजन होता है.
यहां सुने जितिया का पारंपरिक गीत
पुत्र की रक्षा के लिए होता है जितिया व्रत ।
पुत्र की रक्षा के लिए किया जाने वाला व्रत जीवित्पुत्रिका या जितिया आज है. आज के दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा और कुशलता के लिए निर्जला व्रत करती हैं. जीमूतवाहन के नाम पर ही जीवित्पुत्रिका व्रत का नाम पड़ा है.
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया की आरती
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप...
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप...
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप...
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप...
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप...
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप...
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप...
जिउतिया व्रत का मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।
ऐसी मान्यता है
ऐसी मान्यता है कि व्रती के परिजनों को भी कुछ नियमों का पालन करना चाहिए. खासकर इस दौरान भोजन में लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं करना चाहिए.
तीसरे दिन इस व्रत का विधिनुसार पारण किया जाता है
यह व्रत तीन दिनों का होता है. पहला दिन नहाए खाए कहलाता है. दूसरा दिन यानी आज जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन इस व्रत का विधिनुसार पारण किया जाता है.
पारण विधि
यह जीवित्पुत्रिका व्रत का अंतिम दिन होता हैं. जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता, इसलिए यह निर्जला व्रत होता है. व्रत का पारण अगले दिन प्रातः काल किया जाता है, जिसके बाद आप कैसा भी भोजन कर सकते है. जिउतिया व्रत का पारण करने का शुभ समय 11 सितम्बर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक रहेगा. व्रती महिलाओं को जिउतिया व्रत के अगले दिन 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण करना होगा.
यहां सुनें जितिया गीत
ये समाग्री करें जिउतिया माता को अर्पित
16 पेड़ा, 16 दुब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी, श्रृंगार का सामान मां को अर्पित किया जाता है.
जिउतिया माता के साथ गंगाजी की होती है पूजा
जिउतिया माता की पूजा शाम को की जाती है. जिउतिया माता की पूजा नदी किनारे करने की परंपरा है. व्रती महिलाएं आज शाम को गंगा नदी में स्नान करतीं है. इसके बाद थाली में मिठाई, फूल, सिंदूर, अगरबत्ती, कपूर, साड़ी समेत 16 श्रृंगार सजाकर पूजा करती है और जिउतिया माता को चढ़ाई जाती है. फिर दीपक जलाकर जिउतिया माता की आरती की जाती है. इसके बाद व्रती महिलाएं जिउतिया व्रत कथा सुनती है.
जानें पारण का शुभ समय
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं कल 11 सितंबर दिन शुक्रवार के सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी. उनको दोपहर से पूर्व पारण कर लेना चाहिए. कल सुबह से लेकर दोपहर तक पारण करने के लिए शुभ समय रहेगा.
जानें जितिया व्रत से संबंधित क्या हैं मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो महाभारत के युद्ध के दौरान पिता की मौत होने के बाद अश्वत्थामा को बहुत आघात पहुंचा था. वे क्रोधित होकर पांडवों के शिविर में घुस गए थे और वहां सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था. ऐसी मान्यता है कि वे सभी संतान द्रौपदी के थे. इस घटना के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा गिरफ्त में ले लिया और उनसे दिव्य मणि छीन ली थी.
अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में भी पल रहे बच्चे को मार डाला. ऐसे में अजन्मे बच्चे को श्री कृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से पुन: जीवित कर दिया. जिस बच्चे का नामांकरण जीवित्पुत्रिका के तौर पर किया गया. इसी के बाद से संतान की लंबी उम्र हेतु माताएं मंगल कामना करती हैं और हर साल जितिया व्रत को विधि-विधान से पूरा करती हैं.
व्रत में बेहद जरूरी हैं ये महत्वपूर्ण बातें
व्रत कोई भी हो उसका अर्थ हमेशा ही संयम होता है. व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म की शुद्धता बेहद जरूरी है, इसलिए मन और शरीर को संयमित रखें. किसी के भी प्रति न तो गलत सोचें और न ही बोलें. अन्यथा व्रत से मिलने वाला पुण्य फल नष्ट हो जाता है. वहीं अगर गर्भवती महिलाएं यह व्रत करना चाहें तो घर की बुजुर्ग महिलाओं से राय जरूर ले लें. बेहतर यही होगा कि आप अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत करने की बजाए केवल पूजा कर लें. गर्भवती महिलाओं के लिए यह भी व्रत रखने के बराबर ही है.
ये कथा है प्रचलित
जितिया व्रत के महत्व को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. एक समय की बात है, एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे. तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा एवं कथा सुनी. उस समय चील ने इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक देखा, वही लोमड़ी का ध्यान इस ओर बहुत कम था. चील के संतानों एवं उनकी संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुंची, लेकिन लोमड़ी की संतान जीवित नहीं बची. इसलिए इस व्रत को हर माता अपनी संतान की रक्षा के लिए करती है.
घर पर जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा करने की विधि
- आज सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें.
- इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें.
- तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ाकर कर दें.
- अब शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें.
- अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं.
- अब उन्हें भोग लगाएं.
- अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं.
- दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें.
- अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना करें.
- इसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें.
]जितिया व्रत आरती (Jitiya Vrat Aarti)
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ओम जय कश्यप॥
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ओम जय कश्यप॥
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ओम जय कश्यप॥
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ओम जय कश्यप॥
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ओम जय कश्यप॥
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ओम जय कश्यप॥
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ओम जय कश्यप॥
आज संतान की दीर्घायु के लिए मताएं रखीं है निर्जला व्रत
आज जितिया व्रत है. आज मताएं संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखीं है. व्रत के दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन पारण तक कुछ भी ग्रहण नहीं करतीं.
जानें पूजा करने का शुभ समय
पंडित सुनिल सिंह की मानें तो जितिया व्रत इस वर्ष 10 सितंबर को पड़ रहा है. जिसका शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से शुरू हो जायेगा. जो अगले दिन यानि 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. इस व्रत को पारण के द्वारा तोड़ा जाएगा जिसका शुभ समय 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक होगा.
तीनों दिन की व्रत विधि
नहाय खाय
छठ की तरह ही जिउतिया में नहाय खाय होता है. महिलाएं सुबह गंगा स्नान करती हैं. इस दिन सिर्फ एक बार ही सात्विक भोजन करना होता है. नहाय खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है.
निर्जला व्रत
इसे खुर जितिया कहा जाता है. निर्जला व्रत होता है.
पारण का दिन
आखिरी दिन पारण किया जाता है. दान दिया जाता है.
मिथिला पांचांग के अनुसार जितिया व्रत
बुधवार 9 सितंबर को नहाय-खाय, रात्रि में शुद्घ भोजन करना है. भोर में सरगही. गुरुवार, 10 सितंबर को उदया तिथि अष्टमी में व्रत किया जाएगा. शाम को पूजन होगा. शुक्रवार, 11 सितंबर को सूर्योदय के उपरांत प्रात: काल में पारण होगा.
इन पकवानों का होता है सेवन
मुख्य रूप से पर्व के तीसरे दिन झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी साग खाया जाता है. अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है.
कुछ ऐसा होता है जितिया व्रत
जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जागकर स्नान करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन निर्जला रहती हैं. दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन व्रत रखती हैं. व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं. सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं अन्न ग्रहण कर सकती है.
ये सामान होता है मां को समर्पित
16 पेड़ा, 16 दुब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी, श्रृंगार का सामान मां को अर्पित किया जाता है.
तीन दिन तक चलता है व्रत
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है. पहला दिन नहाए-खाए, दूसरा दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जाता है.
उत्तर पूर्वी भारत का प्रसिद्ध त्योहार है जिउतिया
जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहा जाता है. सुहागिन स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास करती हैं. महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस व्रत को रखती हैं. यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के कई क्षेत्रों में किया जाता है. उत्तर पूर्वी राज्यों में जीवित्पुत्रिका व्रत बहुत लोकप्रिय है.
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है. अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरुरी था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
ऐसे करें जीवित्पुत्रिका की पूजा
स्नान से पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ कर दें. साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बना लें. तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें. शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के पात्र में स्थापित कर दें. फिर उन्हें पीली और लाल रुई से अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं. उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिन्दूर लगा दें. अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए. इसके पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत एवं महात्म्य की कथा का श्रवण करना चाहिए.
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है. अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरुरी था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया. गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
पारण का समय
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 11 सितंबर दिन शुक्रवार के सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी. उनको दोपहर से पूर्व पारण कर लेना चाहिए.
जीवित्पुत्रिका व्रत पारण का समय
09 सितंबर दिन बुधवार को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से हो रहा है, जो 10 सितंबर दिन गुरुवार को दोपहर 03 बजकर 04 मिनट तक है. व्रत का समय उदया तिथि में मान्य होगा, ऐसे में जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सिंतबर को होगा. जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 11 सितंबर दिन शुक्रवार के सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी. उनको दोपहर से पूर्व पारण कर लेना चाहिए.
मिथिला में मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की है परंपरा
नहाय खाय के दिन मिथिला में मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की परंपरा है. जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचलवासियों में भोजन में मड़ुआ की रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है.
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया की आरती
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप...
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप...
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप...
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप...
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप...
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप...
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप...
सतपुतिया की सब्जी
इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी/ सतपुतिया की सब्जी भी खाई जाती है. सतपुतिया आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं. सतपुतिया उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रों में अधिक होती है.
आज नोनी का साग खाने की है परंपरा
इस व्रत में नोनी का साग बनाने की परंपरा और खाने की परंपरा है. नोनी में केल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है. ऐसे में इसे लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की शिकायत नहीं होती है. और पाचन भी ठीक रहता है, इसलिए नहाय-खाय के दिन ही नोनी का साग खाया जाता है, और पारण के दिन भी नोनी का साग खाया जाता है.
आज मरूआ की रोटी खाने की है परंपरा
इस व्रत से पहले नहाय-खाय के दिन गेंहू की बजाय मरूआ के आटे की भी रोटी बनाने का भी प्रचलन है. इन रोटियों को खाने का भी प्रचलन है. मरूआ के आटे से बनी रोटियों का खाना इस दिन बहुत शुभ माना गया है, और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
जानें इस दिन मछली खाने की क्यों है परंपरा
जितिया व्रत से एक दिन पहले नहाय खाय के दिन मछली खाने की परंपरा है. मछली खाना वैसे तो पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार को वर्जित माना गया है, लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में, जैसे कि मिथलांचल में जितिया व्रत के उपवास की शुरुआत मछली खाकर की जाती है, इसके पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा है. इस कथा के आधार पर मान्यता है कि मछली खाने से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए. और यहां मछली खाकर इस व्रत की शुरुआत करना बहुत शुभ माना जाता है.
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास की अष्टमी को रखा जाता है. आज सप्तमी है. सप्तमी से जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत होती है. इस दिन नहाय-खाय की पूरी प्रक्रिया पूरी की जाती है. इसका उत्सव तीन दिनों का होता है. अष्टमी को निर्जला उपवास रखना होता है. व्रत का पारण नवमी के दिन किया जाता है. वहीं अष्टमी को शाम प्रदोषकाल में संतानशुदा स्त्रियां माता जीवित्पुत्रिका और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और व्रत कथा सुनती या पढ़ती है.
इसके साथ ही अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा भी दी जाती है. इस व्रत में सूर्योदय से पहले खाया पिया जाता है. सूर्योदय के बाद पानी भी नहीं पिया जाता है. इसके साथ ही सूर्योदय को अर्द्ध देने के बाद कुछ खाया या पिया जाता है. वहीं व्रत के आखिरी दिन भात, मरुला की रोटी और नोनी का साग बनाकर खाने की परंपरा है.
जितिया व्रत का महत्व
संतान की मंगल कामना व उसकी लंबी उम्र के लिए ये व्रत रखा जाता है. ये निर्जला व्रत होता है. ये उपवास तीन दिन तक चलता है. इसे संतान की सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जो इस व्रत की कथा को सुनता है वह जीवन में कभी संतान वियोग नहीं सहता है.
जानें आज नहाय-खाय के दिन क्या-क्या खाने की है मान्यताएं
कल जिउतिया व्रत है. इस व्रत से एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि को नहाय-खाय होता है. जबकि अष्टमी के अगले दिन नवमी तिथि को जितिया व्रत का पारण किया जाता है. व्रत का पहला दिन जिउतिया व्रत के पहले दिन को नहाई खाई कहा जाता है, इस दिन महिलाएं प्रातः काल जल्दी जागकर पूजा पाठ करती है और एक बार भोजन करती है. भोजन में बिना नमक या लहसुन आदि के सतपुतिया (तरोई) की सब्जी, मंडुआ के आटे के रोटी, नोनी का साग, कंदा की सब्जी और खीरा खाने का महत्व है. ठेकुआ और पुआ भी बनता है. उसके बाद महिलाएं दिन भर कुछ भी नहीं खातीं.
पूजन की विधि
पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है. इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है. जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजन समाप्त होने के बाद जिउतिया व्रत की कथा सुनी जाती है. पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती है. कहते है जो महिलाएं पुरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है.
तीनों दिन की व्रत विधि
नहाय खाय
आज नहाय-खाय के साथ जिउतिया व्रत शुरू हो होगा. जिउतिया व्रत में नहाय खाय की विशेष महत्व होता है. महिलाएं इस दिन सुबह गंगा स्नान करती हैं. इस दिन सिर्फ एक बार ही सात्विक भोजन करना होता है. नहाय खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है.
निर्जला व्रत
इसे खुर जितिया कहा जाता है. निर्जला व्रत होता है.
पारण का दिन
आखिरी दिन पारण किया जाता है. दान दिया जाता है.
मिथिला पांचांग के अनुसार जितिया व्रत
9 सितंबर दिन बुधवार को नहाय-खाय, रात्रि में शुद्ध भोजन करना है. भोर में सरगही गुरुवार 10 सितंबर को उदया तिथि अष्टमी में व्रत किया जाएगा. शाम को पूजन होगा. 11 सितंबर दिन शुक्रवार को सूर्योदय के उपरांत प्रात: काल में पारण होगा.
तीन दिन तक चलता है यह व्रत
यह व्रत तीन दिन तक चलता है. पहला दिन नहाए खाए , दूसरा दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जाता है. इस साल जितिया व्रत 10 सितंबर, बृहस्पतिवार को किया जाएगा. इसका पहला दिन नहाए खाए के रूप में मनाते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.
जितिया व्रत पूजन विधि (Jitiya Vrat 2020, puja vidhi)
तीज और छठ पर्व की तरह जितिया व्रत की शुरूआत भी नहाय-खाय के साथ ही होती है. इस पर्व को तीन दिनों तक मनाये जाने की परंपरा है. सप्तमी तिथि को नहाय-खाय होती है. उसके बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की उन्नति और आरोग्य रहने की मंगलकामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं, तीसरे दिन अर्थात नवमी तिथि को व्रत को तोड़ा जाता है. जिसे पारण भी कहा जाता है.
व्रत का शुभ मुहूर्त (Jivitputrika Vrat 2020 Puja Muhurat)
पंडित सुनिल सिंह की मानें तो जितिया व्रत इस वर्ष 10 सितंबर को पड़ रहा है. जिसका शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से शुरू हो जायेगा. जो अगले दिन यानि 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. इस व्रत को पारण के द्वारा तोड़ा जाएगा जिसका शुभ समय 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक होगा.
आज है नहाय-खाय
जितिया व्रत के पहले दिन यानी नहाए खाए को सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए. ऐसा करने से व्रत खंडित हो जाता है. इसका फल संतान को मिलता है तो व्रत खंडित होने पर बुरे प्रभाव भी संतान को झेलने पड़ते हैं.