Jivitputrika Vrat 2021: जिउतिया व्रत की शुरुआत हो चुकी है. इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इसके बाद निर्जला उपवास पूरे दिन किया जाता है. यह व्रत महाभारत के समय से किया जाता है. इस दिन माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए करती है. आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन-दिवसीय त्योहार मनाया जाता है. इस दिन गौरी पूजन होता है. इस व्रत के दौरान जितिया व्रत कथा पढ़ने और सुनने का विशेष महत्व होता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक हिमालय के जंगल में रहते थे. दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे देखने की कामना की. उनके उपवास के दौरान, लोमड़ी भूख के कारण बेहोश हो गई और चुपके से भोजन कर लिया. दूसरी ओर, चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया. परिणामस्वरूप लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही खत्म हो गए और चील की संतान लंबी आयु के लिए धन्य हो गई.
इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे. जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए. एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्हें एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है. उन्होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा. इसपर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है. एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था.
उसकी समस्या सुनने के बाद जिमूतवाहन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित वापस लेकर आएंगे. तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का विचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं. तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है. उसे हैरानी होती है कि जिसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है. तब वह जिमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है. तब गरुड़ जिमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है. मान्यता है कि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए जितिया व्रत मनाया जाता है.
महाभारत युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था. वह पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गया और उसने पांच लोगों की हत्या कर दी. उसे लगा कि उसने पांडवों को मार दिया, लेकिन पांडव जिंदा थे. जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार आया है. यह सब देखकर अर्जुन ने क्रोध में अश्वत्थामा को बंदी बनाकर दिव्य मणि छीन ली.
अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई. उसने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया. लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था, इसलिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में ही फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से इस तरह उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका पड़ गया और तब से ही संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा दे.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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