JNU छात्र नेता आइशी घोष पर लगा 10 हजार रुपये का जुर्माना, जबरन ताला लगा यूनियन ऑफिस खुलवाने का आरोप
छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. यह कार्रवाई नई चीफ प्रॉक्टर कार्यालय नियमावली के तहत की गई है. बता दें कि आइशी पर जबरन ताला लगा दरवाजा खोलने के लिए जुर्माना लगाया गया है.
JNU Bans Protest: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन ने छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. यह कार्रवाई नई चीफ प्रॉक्टर कार्यालय नियमावली के तहत की गई है. बता दें कि आइशी पर जबरन ताला लगा दरवाजा खोलने के लिए जुर्माना लगाया गया है. साथ ही यह भी कहा गया कि आइशी घोष का यह कृत्य गंभीर प्रकृति का है, जो एक छात्र के लिए अशोभनीय है. जेएनयू और उसके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग करता है. हालांकि, उनके करियर की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, सक्षम प्राधिकारी ने इस मामले में कुछ हद तक नरम रुख अपनाया है.
आदेशों की निंदा करते हुए आइशी घोष ने आरोप लगाया कि कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित
और जेएनयू प्रशासन जुर्माने के जरिए अपनी जेबें भर रहा है.
गंभीर अन्याय होने पर भी कोई विरोध नहीं होता
आइशी के वीडियो संदेश के हवाले से कहा कि छात्रों को दयनीय और बिगड़ते बुनियादी ढांचे और शैक्षणिक गुणों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है और छात्रों द्वारा अपनी असहमति व्यक्त करने का एकमात्र तरीका हो रहे अन्याय के खिलाफ विरोध करना है. अंत में, जुर्माना भी इस तरह से लगाया जाता है कि समग्र असहमति को खत्म किया जा सके. अंकुश लगाया जा रहा है और एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जा रहा है जहां गंभीर अन्याय होने पर भी कोई विरोध नहीं होता है.
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जेएनयू ने शैक्षणिक भवनों में रोक
जेएनयू कार्यकारी परिषद ने नवंबर में संशोधित चीफ प्रॉक्टर ऑफिस (सीपीओ) मैनुअल को मंजूरी दे दी. मैनुअल के मुताबिक, जेएनयू ने शैक्षणिक भवनों और कक्षाओं के 100 मीटर के दायरे में विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है. नए नियमों का उल्लंघन करने वालों को 20,000 रुपये तक का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. इसके अलावा देश विरोधी नारे लगाने और धर्म, जाति या समुदाय के प्रति असहिष्णुता भड़काने पर 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा. जेएनयू छात्र संगठन की नेता आइशी घोष ने मैनुअल पर सवाल उठाते हुए कहा कि दस्तावेज को कार्यकारी समिति की बैठक में पारित किया गया था. जिसमें कोई छात्र प्रतिनिधि नहीं था और अकादमिक परिषद में भी बिना किसी चर्चा के हुआ है.
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