बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली के वरिष्ठ रंगकर्मी एवं समाजसेवी जेसी पालीवाल (90 वर्ष) का बुधवार सुबह दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह कुछ समय से बीमार थे. उनके निधन की खबर सुनकर हर कोई हतप्रभ रह गया.लशहर के लोग काफी अफसोस में हैं. कबीर पुरस्कार से सम्मानित जेसी पालीवाल का जन्म 03 जुलाई को 1934 को आगरा के मेहरा चौधरी गांव में हुआ था. मगर अब यह गांव फिरोजाबाद जिले में आता है. वह 1946 में एयरफोर्स कर्मी अपने ताऊ सीताराम पाल के साथ बरेली आए थे. यहां पढ़ाई करने के बाद उनकी पूर्वोत्तर रेलवे में नौकरी लग गई. इसके बाद यहीं के होकर रह गए. मगर जेसी पालीवाल जाति और धर्म के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण को लेकर चिंता जताते थे.
उनका कहना था कि पहले न इतनी आबादी थी, और न लोगों की इतनी जरूरतें. लोगों का ध्यान चमक धमक से ज्यादा नैतिकता पर था. ऐसे नेताओं की भरमार थी, जो बंडी और धोती में ही चुनाव लड़ने निकल जाते थे. साईकिल पर चलने वाला तो बहुत दूर की बात, पैदल चलने वाला भी चुनाव जीत सकता था. प्रत्याशी चुनने में भी वोटर संवेदनशीलता दिखाता था. किसी की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में अगर पता चल जाता, तो लोग ऐसे प्रत्याशी को हिकारत की नजर से देखते थे. मगर, 90 का दशक आते-आते काफी कुछ बदला.जाति, और धर्म के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण आम बात हो गई.
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वरिष्ठ रंगकर्मी और समाजसेवी जेसी पालीवाल ने आजादी के बाद 1951 में देश का पहला चुनाव देखा था. उस वक्त उनकी उम्र 17 वर्ष थी. वह कहते थे कि अब बिना पैसे के चुनाव लड़ा ही नहीं जा सकता. मगर उस वक्त में उन्होनें अपने भाई को महज 336 रुपए में चुनाव लड़कर जीतते हुए देखा.
उनका कहना था कि पहले चुनाव को लेकर लोगों में एक तरह का उत्साह था. नेताओं का भी लोग सम्मान करते थे. क्योंकि उस वक्त जो नेता चुनाव में उतरे थे. उनमें से अधिकतर ने आजादी के लिए संघर्ष किया था. पहले होने वाले चुनाव के मुकाबले अब स्वरूप बिल्कुल बदल गया.
रिपोर्ट मुहम्मद साजिद, बरेली