Kalashtami 2022: हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है. इस साल माघ मास (Magh Month) में 25 जनवरी के दिन कालाष्टमी का व्रत किया जाएगा. इस साल की पहली कालाष्टमी के दिन द्विपुष्कर योग और रवि योग का संयोग बन रहा है.
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माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत- 25 जनवरी, मंगलवार को प्रात: 07 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगी.
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माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का समापन- 26 जनवरी, बुधवार को प्रात: 06 बजकर 25 मिनट तक मान्य रहेगी.
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साल का पहला कालाष्टमी व्रत 25 जनवरी को रखा जाएगा.
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कालाष्टमी के दिन द्विपुष्कर योग और रवि योग का संयोग बन रहा है.
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द्विपुष्कर योग- 25 जनवरी की सुबह प्रात: 07 बजकर 13 मिनट से सुबह 07 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.
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रवि योग- सुबह 07 बजकर 13 मिनट से सुबह 10 बजकर 55 मिनट तक होगा.
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कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.
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इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें.
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संभव हो तो किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव, भगवान शिव और मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें.
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भगवान भैरव की पूजा रात्रि के समय की जाती है, इसलिए पुनः रात्रि में भैरव भगवान का पूजन करें.
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रात्रि में धूप, दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से विधिवत पूजन और आरती करें.
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भगवान भैरव को भोग में गुलगुले, हलवा या जलेबी का भोग लगाना चाहिए.
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इस दिन पूजा के समय भैरव चालीसा पढ़ने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं, इसलिए पूजन के दौरान चालीसा का पाठ भी करना चाहिए.
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पूजन के बाद भोग लगी चीजों में से कुछ काले कुत्तों को भी खिलाना चाहिए या फिर कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं, क्योंकि कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना गया है.
काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है. कहते हैं कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव का पूजन करने से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और तंत्र-मंत्र का भी असर नहीं होता. इसके साथ ही व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है, उसे किसी भी प्रकार का डर भयभीत नहीं करता. माना जाता है कि काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से ही हुई है, जिनकी उपासना करने से भक्त का हर संकट दूर हो जाता है. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजन और व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।