फिल्म ‘टीकू वेड्स शेरू’ इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम कर रही है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अवनीत कौर स्टारर इस फिल्म की निर्मात्री कंगना रनौत हैं. निर्मात्री के तौर पर यह कंगना का ओटीटी डेब्यू भी है. अभिनेत्री के बाद निर्माता, निर्देशिका और लेखिका के तौर पर भी उनकी कोशिश इंडस्ट्री को बेहतरीन फिल्में देने की रहेगी. बतौर निर्मात्री उनकी इस फिल्म से जुड़ी चुनौतियों सहित कई पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
फिल्म ‘टीकू वेड्स शेरू’ से जुड़ने का कोई वजह?
मुझे लगता है कि समाज में हमने सफलता को इतना अधिक महत्व दे दिया है कि असफलता एक ऐसी चीज मानी जानी लगी है, जिसकी जीवन में अनुमति ही नहीं है. इतना भी समझ नहीं पाते कि असफलताओं के बाद ही हम सफल होते हैं. हमने इसे अपने जीवन में सामान्य नहीं किया है, इसलिए नयी पीढ़ी अधीर हो रही है. यह जरूरी है कि वे जाने कि संघर्ष और असफलताएं हमारे जीवन का एक हिस्सा हैं. जिन लोगों को अवसर मिलता है और भाग्य उनका साथ देता है, वे समाज में बहुत कुछ पा लेते हैं. मगर जो लोग इंडस्ट्री में कड़ी मेहनत कर रहे हैं, बावजूद इसके संघर्षरत हैं. उन्हें नीचा नहीं देखा जाना चाहिए. आपको भीड़ में कई प्रतिभाशाली लोग मिल सकते हैं, जो अधिक समझदार और भावुक होते हैं. उनमें आपको एक टीकू और एक शेरू मिल सकता है.
यह फिल्म संघर्षरत लोगों की बात को सामने लाती है. अक्सर सफलता के लिए प्रतिभा, कड़ी मेहनत के साथ-साथ किस्मत भी बहुत मायने रखती है. आप इस बात को कितना मानती हैं?
कड़ी मेहनत जरूरी है, लेकिन साथ ही मैंने मैजिक भी देखा है. मैंने इसे अपने करियर में कई बार देखा है. मैं इसकी मौजूदगी को नकार नहीं सकती हूं. जब अनुराग बसु ने ऑडिशन देने वाली लड़कियों के बीच फिल्म ‘गैंगस्टर’ में मुख्य भूमिका निभाने के लिए मुझे चुना, तो वह मेरे लिए एक जादुई पल था. मुझे पता था कि मैं एक बेहतरीन अभिनेत्री हूं, पर जब मैं ऑडिशन के लिए जाती थी, तो कई लोग कहते थे कि आप एक अच्छी अभिनेत्री हैं, पर सभी शीर्ष अभिनेत्रियों को देखें. आपको डांस करना भी आना चाहिए, तभी आप ए लिस्टर बन सकती हैं. वे कहते थे कि क्या तुम्हें स्मिता पाटिल बनना है, इतना अच्छा अभिनय मत करो. मैं कभी नहीं समझ पायी कि वे मुझसे क्या चाहते हैं. पर धीरे-धीरे समय बदला और फिर फिल्म‘क्वीन’ आयी और मेनस्ट्रीम एंटरटेनर और समानांतर सिनेमा की जुगलबंदी का दौर शुरू हुआ. जो हर अच्छे कलाकार के लिए एक जादुई पल था. इरफान खान और नवाज सर जैसे अभिनेता उसी दौर की देन हैं.
अभिनेत्री के तौर पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ कोई फिल्म करना चाहती हैं?
मुझे नवाज सर के साथ काम करके बहुत खुशी मिलेगी. ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उनके किरदार की मैं बहुत बड़ी फैन हूं. उनका मीम अपुन ही भगवान है. हमारे फैमिली ग्रुप में काफी प्रसिद्ध है. वैसे इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगी कि मैं नवाज सर को रोमांटिक फिल्म में देखना पसंद करूंगी.
‘टीकू वेड्स शेरू’ कहीं ना कहीं रोमांटिक फिल्म है. कभी लगा नहीं कि नवाज के साथ मैं ही ये फिल्म कर लूं?
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगा. इस फिल्म को अगर आप देख लेंगी, तो आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगी कि टीकू के किरदार के लिए एक नयी लड़की की जरूरत थी. वैसे मेरी इस फिल्म के अलावा इंडस्ट्री को भी नये चेहरे और टैलेंट की जरूरत है और मेरी कोशिश अपने प्रोडक्शन हाउस से ज्यादा से ज्यादा नये टैलेंट को इंडस्ट्री से जोड़ने की रहेगी.
आप इंडस्ट्री की एक सफल अभिनेत्री हैं. आपके करियर का यह अहम पहलू किस तरह से निर्देशक व निर्माता के तौर पर आपकी मदद करता है?
मैंने अभी फिल्मों का निर्देशन और निर्माण शुरू किया है. मुझे अभी खुद को एक सफल निर्माता या निर्देशक के रूप में साबित करना बाकी है. जहां तक सफल अभिनेत्री होने से जुड़े मददगार पहलू की बात है, तो मुझे लगता है क्योंकि मैं एक सफल अभिनेत्री हूं, इसलिए मुझे ऐसी फिल्म बनाने और ऐसी फिल्म लिखने की आजादी मिलती है, जिसे मैं बनाना चाहती हूं. अगर नहीं होती, तो परिस्थितियां कुछ ऐसा बनाने के लिए मजबूर कर सकती थीं, जो बनाना नहीं चाहती थी.
आप एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर व लेखिका भी हैं. सबसे चुनौतीपूर्ण किस रोल को करार देंगी?
मुझे लगता है कि प्रोड्यूसर का काम सबसे कठिन होता है. इंडस्ट्री में सबसे कम आंका जानेवाला बेचारा निर्माता होता है और हमारे यहां जो स्टार कल्चर है, वहां निर्माता सचमुच कुचले जाते हैं. बतौर प्रोड्यूसर मैं शुरुआत में डरी हुई थी. दरअसल, प्रोडक्शन की दुनिया खूबसूरत नहीं होती. प्रोड्यूसर्स को हमेशा स्टार्स के मूड पर निर्भर रहना पड़ता है. उन पर दबाव यह होता है कि क्या वह फिल्म को बजट के भीतर पूरा कर सकते हैं. मैं लकी हूं कि मुझे ‘टीकू वेड्स शेरू’में बहुत अच्छी टीम मिली.
‘टीकू वेड्स शेरू’ की आप निर्मात्री हैं. कभी लगा नहीं कि फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी भी संभाल लूं?
बेशक मैं निर्देशक कर सकती थी, लेकिन यह साईं कबीर का प्रोजेक्ट था और उन्होंने इसे लिखा था. हमें लगा कि वे इस विषय को बेहतर तरीके से हैंडल करेंगे. मुझे हमेशा लगता है कि लिखने वाले निर्देशक हमेशा अच्छे निर्देशक होते हैं. लेखकों की अपनी दुनिया होती है. वह उस दुनिया को अच्छी तरह से जानते हैं. इसलिए मुझे लगा कि वह फिल्म के साथ न्याय करेंगे.