Kannur Tour: सुंदर ऐतिहासिक शहर
Kannur Tour: केरल के उत्तरी हिस्से या कहें मालाबार क्षेत्र में जाने का मौका कभी नहीं मिला था. इस बार कोच्चि जाने पर कन्नूर देखने का ख्याल आया. एयरपोर्ट बन जाने से वहां पहुंचना भी आसान था. कोच्चि से केवल 40 मिनट में कन्नूर पहुंच गयी
सुमन बाजपेयी
टिप्पणीकार
Kannur Tour: डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और मैसूर सल्तनत की छाप अभी भी यहां देखी जा सकती है. कन्नूर किले के रूप में विख्यात सेंट एंजेलो फोर्ट का निर्माण सन् 1505 में प्रथम पुर्तगाली वायसराय डॉन फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ने करवाया था.
कन्नूर का नाम कभी कैनानोर हुआ करता था
केरल के उत्तरी हिस्से या कहें मालाबार क्षेत्र में जाने का मौका कभी नहीं मिला था. इस बार कोच्चि जाने पर कन्नूर देखने का ख्याल आया. एयरपोर्ट बन जाने से वहां पहुंचना भी आसान था. कोच्चि से केवल 40 मिनट में कन्नूर पहुंच गयी. इसका नाम कभी कैनानोर हुआ करता था. वहां के निवासी मानते हैं ‘कन्नूर’ एक प्राचीन गांव कनाथुर से निकला है, जिसका नाम कन्नूर नगर पालिका के एक वार्ड में आज भी मौजूद है.
डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और मैसूर सल्तनत की छाप अभी भी यहां देखी जा सकती है
यह भी कहा जाता है कि कन्नूर ने अपना नाम हिंदू देवता कन्नन (भगवान कृष्ण) और उर (स्थान) के संयोजन से लिया होगा. शायद इसलिए कटलयई श्रीकृष्ण मंदिर के देवता कन्नूर के दक्षिण पूर्वी भाग में कटलयई कोट्टा के एक मंदिर में स्थापित किए गए थे. यहां विभिन्न संस्कृतियों की झलक देखने को मिलती है. डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और मैसूर सल्तनत की छाप अभी भी यहां देखी जा सकती है. बैकवाटर्स, स्मारक, प्राचीन मंदिर के अलावा 63 साल पुराने बुनकर केंद्र और बीड़ी केंद्र पर बीड़ी बनाती महिलाओं की कारीगरी देखना भी किसी आकर्षण से कम नहीं.
यहां मैनग्रोव या सदाबहार पेड़ों के रूप में एक अद्भुत सौंदर्य दिखता है
कव्वायी बीच की गिनती सबसे खूबसूरत बैकवाटर पर्यटक स्थलों में होती है. ये बैकवाटर्स उत्तरी केरल के सबसे बड़े वेटलैंड का निर्माण करते हैं. यहां पर कयाकिंग के साथ-साथ बोटिंग की भी सुविधा है. नरम रेत से गुजरते हुए ठंडे पानी में उतरने पर एक सुकून मिलता है. प्रदूषण रहित शांत वातावरण और पानी के असीम विस्तार में बोटिंग के साथ किनारों पर मैनग्रोव या सदाबहार पेड़ों के रूप में एक अद्भुत सौंदर्य दिखता है. ये पेड़ समुद्र तट के किनारे उगते हैं और इनकी जड़ें पानी के नीचे नमकीन तलछट में होती हैं. पूरा दिन केवल समुद्र तट के नाम था, इसलिए गाइड के कहने पर पेयांबलम बीच जा पहुंची.
तैराकी और बोटिंग की सुविधा है
यहां पहुंचने के लिए एक छोटे से पुल को पार करना भी एक अनोखा अनुभव था. यह एक नहर के ऊपर बना है. पुल के दाईं ओर राजनीतिक हस्तियों के कई महत्वपूर्ण स्मारक दिख रहे थे. किनारे पर ताड़ के पेड़ों की कतारें थीं. यहां भी तैराकी और बोटिंग की सुविधा है. नीलेश्वर बैकवाटर्स पर हाउसबोट की सैर जरूर करें- गाइड की यह बात सुन करीबन 55 किलोमीटर की यात्रा करना अखरा नहीं.
हाउसबोट पर लोग दो दिन तक रह भी सकते हैं
तेजस्विनी नदी को मलयालम में ‘करियांकोडे पूझा’ भी कहा जाता है. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक नदी में हाउसबोट में बैठने का आनंद शब्दों में बयान करना मुश्किल है. इसके चारों ओर केले के पेड़ लगे हैं. पानी एकदम स्वच्छ था और वातावरण में एक अलौकिक खामोशी थी. तभी संध्या आरती का समय हो गया और किनारे बने छोटे से मंदिर में दीए जलने लगे. हाउसबोट पर लोग दो दिन तक रह भी सकते हैं. नहीं रहना हो, तो 300 रुपये देकर हाउसबोट की सैर का लुत्फ उठा सकते हैं.
अगले दिन सेंट एंजेलो फोर्ट देखने की योजना थी. अरब सागर के ठीक सामने स्थित यह फोर्ट कन्नूर से मात्र तीन किलोमीटर दूर है. कन्नूर किले के रूप में विख्यात सेंट एंजेलो फोर्ट का निर्माण सन् 1505 में प्रथम पुर्तगाली वायसराय डॉन फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ने करवाया था. लैटेराइट पत्थरों से निर्मित किले को बनाने का मुख्य उद्देश्य बाहरी आक्रमणों से रक्षा करना था. जब डच आए तो 1660 के दशक में इस किले के भीतर कुछ और गढ़ों का निर्माण किया. फिर उन्होंने इसे अरक्कल के शाही परिवार को बेच दिया.
अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तोपों को देख सकते हैं
फिर अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया. मालाबार में अंग्रेजों का यह प्रमुख सैन्य ठिकाना था. इतनी संस्कृतियों की छाप इसे एक विलक्षण पहचान देती है और देखने वालों को अभिभूत करती है. अब यह फोर्ट एक संरक्षित स्मारक के रूप में सूचीबद्ध है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण प्रशासन इसकी देखरेख करता है. जगह-जगह काई से ढके होने के बावजूद बहुत बड़ा न होने पर भी किले में एक तिलिस्म है जो आपको खींचता है. प्रवेश करते ही अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तोपों को देख सकते हैं.
इतिहास की परतों को उलटने-पलटने के बाद वापसी के वक्त रास्ते में एक और समां अपनी ओर खींचने को आतुर था. रात को बारिश हो चुकी थी, इसलिए ठंडी हवा और रास्ते में चारों ओर दिखने वाले पेड़ों को पार करते हुए, जहां कार रुकी वहां का दृश्य प्रकृति की तमाम खूबसूरती से सराबोर था. केरल के एकमात्र ड्राइव-इन बीच पर उस वक्त बहुत भीड़ नहीं थी. मुजप्पिलंगड समुद्र तट एशिया का सबसे लंबा ड्राइव-इन बीच है. चार किलोमीटर लंबे इस समुद्र तट पर ड्राइव करते हुआ घूमा जा सकता है. बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जाकर बैठा जा सकता है जो एक तरह से इसकी सुरक्षा करती प्रतीत होती हैं.
कैसे पहुंचें
कन्नूर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. बसें यातायात का सबसे अच्छा और सस्ता माध्यम हैं. कन्नूर से अन्य शहरों के लिए केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) की और निजी बसें भी चलाती हैं. कन्नूर रेलवे स्टेशन (3 किमी) गंतव्य तक पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है. इसके अलावा, कन्नूर भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. कन्नूर एयरपोर्ट से कई स्थानों के लिए विमान सेवा है.